मध्य प्रदेश में औद्योगिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। राज्य सरकार और विभिन्न एजेंसियों द्वारा पर्यावरणीय नियमों और प्रदूषण नियंत्रण की पहलें की जा रही हैं ताकि औद्योगिक विकास पर्यावरण के अनुकूल हो सके।
पर्यावरणीय नियम और औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण
- पर्यावरण संरक्षण कानून:
- जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974: इस अधिनियम के तहत राज्य सरकार ने विभिन्न उपाय किए हैं ताकि जल स्रोतों का प्रदूषण रोका जा सके।
- वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981: इस अधिनियम के तहत वायु गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए औद्योगिक इकाइयों पर कड़े मानक लगाए गए हैं।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986: इस अधिनियम के अंतर्गत राज्य सरकार ने विभिन्न नियम और दिशा-निर्देश जारी किए हैं ताकि पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित हो सके।
- मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPPCB):
- MPPCB उद्योगों की निगरानी करता है और यह सुनिश्चित करता है कि वे पर्यावरणीय नियमों का पालन करें।
- प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों की स्थापना और उनके संचालन की नियमित जांच की जाती है।
- औद्योगिक क्लस्टरों में प्रदूषण नियंत्रण:
- औद्योगिक क्लस्टरों में कॉमन इफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (CETP) की स्थापना की गई है ताकि उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट जल का सामूहिक रूप से उपचार किया जा सके।
- वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए उद्योगों को एमीशन कंट्रोल सिस्टम्स (ECS) स्थापित करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA)
- EIA की प्रक्रिया:
- नए औद्योगिक परियोजनाओं के लिए EIA अनिवार्य है। इसके तहत पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन किया जाता है और उनकी रोकथाम के उपाय सुझाए जाते हैं।
- परियोजना स्वीकृति से पहले EIA रिपोर्ट की समीक्षा की जाती है और सार्वजनिक सुनवाई आयोजित की जाती है।
- EIA रिपोर्ट के घटक:
- पर्यावरणीय मानचित्रण: परियोजना क्षेत्र की पर्यावरणीय स्थिति का आकलन।
- प्रभाव आकलन: परियोजना के संभावित पर्यावरणीय प्रभावों का विश्लेषण।
- शमन उपाय: पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के उपाय।
स्थायी और पर्यावरण अनुकूल औद्योगिक प्रथाएँ
- ग्रीन टेक्नोलॉजी:
- उद्योगों में ग्रीन टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जा रहा है जिससे ऊर्जा की खपत कम होती है और प्रदूषण भी कम होता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग बढ़ाया जा रहा है।
- वेस्ट मैनेजमेंट:
- सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के लिए उद्योगों में प्रभावी प्रथाएँ अपनाई जा रही हैं।
- रीसाइक्लिंग और पुन: उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- जल प्रबंधन:
- उद्योगों में जल संरक्षण और जल पुन: उपयोग की प्रणालियाँ स्थापित की जा रही हैं।
- वर्षा जल संचयन प्रणाली (रेन वाटर हार्वेस्टिंग) को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
- कार्बन फुटप्रिंट को कम करना:
- उद्योगों को ऊर्जा दक्षता बढ़ाने और कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
- कार्बन क्रेडिट और कार्बन ट्रेडिंग की अवधारणाएँ लागू की जा रही हैं।
- सामाजिक उत्तरदायित्व:
- उद्योगों को उनके सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत सामुदायिक विकास और पर्यावरण संरक्षण में योगदान देने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
- CSR (Corporate Social Responsibility) गतिविधियों के माध्यम से पर्यावरणीय पहलें की जा रही हैं।
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