बाबर (1526 ई0-1530 ई0)
बाबर
बाबर का पिता तैमूर के तुर्क वंश का था और उसकी माता चंगेज खां के मंगोल वंश की थी। बाबर का पिता उमर शेख मिर्जा मध्य एशिया की छोटी सी रियासत फरगना का शासक था। यह एक उपजाऊ प्रदेश था । हरे-भरे चरागाह, उत्तम जलवायु एवं फलों के बागान यहाँ की मुख्य विशेषता थी। अपने पिता की मृत्यु के बाद बाबर फरगना का शासक बना। उस समय उसकी आयु लगभग ग्यारह वर्ष थी। सिंहासन पर बैठते ही बाबर को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। वह अपने पूर्वज तैमूर के राज्य समरकन्द को भी जीतना चाहता था। उसने काबुल पर अपना अधिकार जमाया और वहाँ से वह भारत की ओर आकर्षित हुआ।
बाबर का भारत पर आक्रमण
इब्राहिम लोदी के विरोधी बाबर की सहायता से अपना स्वतन्त्र साम्राज्य स्थापित करने की योजना बनाने लगे। उधर बाबर स्वयं भारत पर अधिकार करना चाहता था। इसके लिए उसने अपनी सेना को भली-भाँति तैयार किया। उसने अपना तोपखाना भी सुसज्जित कराया। इसी समय पंजाब के गवर्नर दौलत खाँ लोदी ने उसे दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया। 1526 ई० में पानीपत के मैदान में बाबर का सामना इब्राहिम लोदी से हुआ। बाबर के पास तोपें थीं जो भारत के शासकों के पास नहीं थीं। उसके पास कुशल घुड़सवार भी थे। उसकी सेना छोटी थी परन्तु अच्छी तरह प्रशिक्षित थी। बाबर एवं उसकी सेना को अनेक युद्धों के अनुभव थे। उसने बड़ी कुशलता से अपनी सेना का संचालन किया, बाबर की विजय हुई। इब्राहिम लोदी लड़ाई में मारा गया। इसी के साथ लोदी वंश का अंत हो गया और भारत में एक नए वंश मुगलवंश की स्थापना हुई।
बाबर और राजपूत
चित्तौड़ के महाराणा संग्राम सिंह बाबर के सबसे शक्तिशाली शत्रु थे। ये राणा सांगा के नाम से अधिक प्रसिद्ध थे। बाबर ने स्वयं राणा सांगा के बारे में लिखा था कि “राणा सांगा ने अपनी वीरता के बल पर भारत में उच्च स्थान प्राप्त किया था।
खानवा का युद्ध 1527
खानवा का युद्ध बाबर व राणा सांगा के मध्य हुआ जिसमे बाबर विजय हुआ | इस युद्ध का मुख्य कारण बाबर का भारत में रुकने व साम्राज्य स्थापित करने का निर्णय था, क्योकि राणा सांगा यह समझता था कि अन्य मध्य एशियाई लुटेरों की तरह बाबर भी भारत को लूटकर चला जाएगा | इसके अतिरिक्त राणा सांगा ने अफगानों हसन खां मेवाती, महमूद लोदी व आलम खां लोदी को अपने राज्य में शरण दी थी | इसके बाद बाबर ने चन्देरी के शासक मेदनीराय को चन्देरी के युद्ध (1528 ई) में तथा अफगान सरदारों को घाघरा (1529 ई) के युद्ध में पराजित कर भारत में मुगल साम्राज्य को सुदृढं बनाया ।
बाबर का चरित्र
बाबर एक कुशल प्रशासक और महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति था। उसने एक छोटी सी रियासत से बढ़कर अनेक लड़ाइयाँ जीतकर भारत में मुगल साम्राज्य की नींव डाली। बाबर बहुत साहसी और वीर लड़ाकू सिपाही था। कठिन परिस्थिति में भी वह घबराता नहीं था। बाबर एक अच्छा साहित्यकार था। उसने तुर्की भाषा में अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-बाबरी’ लिखी।। बाबर को बगीचों का बहुत शौक था। उसने आगरा और लाहौर में बगीचे लगवाए।
हुमायूँ (1530-1540 ई0 तथा 1555-1556 ई0)
बाबर की मृत्यु के पश्चात हुमायूँ ने 1530 में भारत की राजगद्दी संभाली सिंहासन पर बैठते ही हुमायूँ को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उसकी सबसे बड़ी कठिनाई उसके शत्रु थे जिनमें पश्चिम में गुजरात के शासक बहादुरशाह और पूर्वी भारत का शेरशाह मुख्य थे। ये दोनों भारत में अपनी शक्ति को बढ़ा रहे थे और मुगल शासक हुमायूँ को भारत से भगाने के लिए प्रयत्नशील थे। इन्हीं के साथ हुमायूँ के सगे सम्बन्धी भी उसके लिये कठिनाई उत्पन्न कर रहे थे।
बाबर बगीचे, बाबरनामा
हुमायूँ और बहादुरशाह
बहादुरशाह गुजरात का शासक था। बहादुरशाह दिल्ली का साम्राज्य प्राप्त करना चाहता था। उसने सन् 1534 ई० में चित्तौड़ पर आक्रमण कर उसे अपने अधीन कर लिया। अतः हुमायूँ एवं बहादुरशाह के बीच युद्ध की सम्भावना बढ़ने लगी। अंततः हुमायूँ एवं बहादुरशाह के मध्य युद्ध हुआ जिसमें बहादुरशाह की पराजय हुई। हुमायूँ से बचते हुए बहादुरशाह ने पुर्तगाली द्वीप दीव में शरण ली। हुमायूँ गुजरात विजय कर अपनी राजधानी वापस चला गया। इस मौके का लाभ उठाकर बहादुरशाह ने पुर्तगालियों की मदद से गुजरात पर पुनः अधिकार कर लिया। हुमायूँ की विजय के विरुद्ध जनविद्रोह के चलते मुगलों के हाथ से गुजरात निकल गया।
हुमायूँ और शेरशाह
1538 ई0 में हुमायूँ ने शेरशाह से चुनार जीत लिया। शेरशाह ने गौड़ (बंगाल) पर विजय प्राप्त की और बंगाल पर अधिकार कर लिया। हुमायूँ मुंगेर के पास गंगा को पार करके शेरशाह की ओर बढ़ा । 1539 ई0 में चौसा नामक स्थान पर हुमायूँ तथा शेरशाह के मध्य भीषण युद्ध हुआ। युद्ध में परास्त हुमायूँ ने किसी तरह अपनी जान बचायी। अपनी पराजय का बदला लेने के लिए हुमायूँ ने अपनी सेना के साथ कन्नौज नामक स्थान पर शेरशाह मुकाबला किया। इस युद्ध में हुमायूँ की पराजय हुई। शेरशाह ने आगरा तथा दिल्ली पर अपना अधिकार से कर लिया तथा वह, शेरशाह सूरी के नाम से भारत का शासक बना। हुमायूँ सिन्ध होते हुए फारस चला गया।
हुमायूँ की वापसी (1555 ई०)
शेरशाह द्वारा स्थापित साम्राज्य शेरशाह की मृत्यु के बाद दिन प्रति दिन कमजोर होता गया। हुमायूँ ने दिल्ली को पुनः प्राप्त करने के लिए प्रयास शुरू कर दिए। फारस के शासक की मदद से हुमायूँ ने कंधार, पंजाब, आगरा और दिल्ली पर कब्जा कर लिया। हुमायूँ ने दिल्ली में एक मदरसा तथा ग्वालियर में तराशे हुए पत्थरों का किला बनवाया। 1556 ई० में जब वह शेर-ए-मंडल पुस्तकालय की सीढ़ियों से उतर रहा था, तभी लड़खड़ा कर गिर गया और उसकी मृत्यु हो गई।
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