विविधता में एकता या ‘एक में अनेक’
समृद्ध विविधता
- भारत की यात्रा: रेल यात्रा में बदलते भूदृश्य, परिधान, भोजन, भाषाएँ (25 लिपियों में 325 भाषाएँ), और रीति-रिवाज देखने को मिलते हैं।
- जनसंख्या: 1.4 अरब से अधिक लोग (विश्व का 18% हिस्सा)।
- सर्वेक्षण: भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण (20वीं शताब्दी) – 4,635 समुदायों का अध्ययन, अनेक भारतीय प्रवासी।
- गतिविधि: 5 सहपाठियों और उनके माता-पिता के जन्म स्थान, मातृभाषा व अन्य भाषाओं की सूची बनाएँ। विविधता पर चर्चा करें।
- विंसेंट स्मिथ: “भारत की अचंभित करने वाली विविधता में एकता है।”
सभी के लिए भोजन
- विविध व्यंजन: भारत में हजारों प्रकार के व्यंजन।
- मुख्य अनाज: चावल, गेहूँ, बाजरा, ज्वार, रागी, दालें (मूंग, मसूर, चना, अरहर आदि) पूरे भारत में उपयोग।
- मसाले: हल्दी, जीरा, इलायची, अदरक आदि सामान्य।
- एकता और विविधता: एक सामग्री से अनगिनत व्यंजन बनते हैं।
गतिविधि:
घर में उपयोग होने वाली भोजन सामग्रियों की सूची बनाएँ।
एक हरी सब्जी से बनने वाले व्यंजनों की सूची बनाएँ।
वस्त्र एवं परिधान
विविधता: हर क्षेत्र की अपनी वस्त्र शैली।
साड़ी:
सामान्य परिधान, कपास, रेशम या कृत्रिम धागों से बनी।
प्रकार: बनारसी, कांजीवरम, पैठनी, पाटन पटोला, मूगा, मैसूर आदि।
डिजाइन: बुनाई या छपाई से।
इतिहास: वैशाली (बिहार) में शताब्दी सा.सं.पू. की उकेरी गई आकृति।
ऐतिहासिक तथ्य:
भारत ने महीन सूत का उत्पादन किया, यूरोप तक निर्यात।
17वीं शताब्दी में ‘छींट’ कपड़ा यूरोप में लोकप्रिय, आयात पर प्रतिबंध लगा।
त्योहारों की विविधता
त्योहारों में विविधता, पर एकता।
उदाहरण: मकर संक्रांति (14 जनवरी के आस-पास), फसल कटाई का पर्व, अलग-अलग नामों से मनाया जाता है।
गतिविधि:
- अपना प्रिय त्योहार और उसके क्षेत्रीय रूप बताएँ।
- अक्टूबर-नवंबर के त्योहारों और उनके नामों की सूची बनाएँ।
महाकाव्य का विस्तार
पंचतंत्र:
2,200 वर्ष पुराना संस्कृत संग्रह।
50+ भाषाओं में 200+ रूपांतरण।
नैतिक कहानियाँ, विश्व भर में प्रसिद्ध।
रामायण और महाभारत:
संस्कृत महाकाव्य, धर्म की पुनर्स्थापना की कथा।
रामायण: राम, रावण से सीता को बचाते हैं।
महाभारत: पांडव, कौरवों से राज्य के लिए युद्ध।
अनगिनत लोक संस्करण।
उदाहरण:
तमिलनाडु में महाभारत के 100+ लोक स्वरूप।
जनजातियों (भील, गोंड, मुंडा) के अपने संस्करण।
के. एस. सिंह: “लोककथाओं के अनुसार, शायद ही कोई स्थान हो जहाँ पांडव न गए हों।”
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