श्लेष अलंकार
परिभाषा:
श्लेष अलंकार वह अलंकार है जिसमें एक ही शब्द का प्रयोग एक ही स्थान पर किया जाता है, लेकिन उसका एक से अधिक अर्थ निकलता है। इस अलंकार का मुख्य उद्देश्य काव्य में गूढ़ता, सौंदर्य और गहराई लाना होता है। यह शब्दालंकार का एक प्रमुख प्रकार है।
विशेषताएँ:
- एक शब्द, एक स्थान:
श्लेष अलंकार में एक ही शब्द का एक ही स्थान पर प्रयोग होता है। - अनेक अर्थ:
वह शब्द एक ही स्थान पर प्रयोग होकर एक से अधिक अर्थ प्रकट करता है। - गूढ़ता और रोचकता:
काव्य में गहराई और चमत्कार उत्पन्न करता है। - साहित्यिक सौंदर्य:
यह काव्य में भाषाई सुंदरता और अर्थ की व्यापकता को बढ़ाता है।
उदाहरण:
- काव्य पंक्ति:
“सारस सरस जल में खेल रहा है।”- पहला ‘सारस’ का अर्थ है पक्षी।
- दूसरा ‘सरस’ का अर्थ है सुंदर।
- काव्य पंक्ति:
“गिरिधर ने गिरि को धरा।”- ‘गिरिधर’ का पहला अर्थ है भगवान श्रीकृष्ण।
- ‘गिरि’ का अर्थ है पर्वत।
- ‘धरा’ का अर्थ है उठाना।
(यहां श्रीकृष्ण ने पर्वत को उठाया, दोहरे अर्थ की वजह से श्लेष अलंकार बना।)
- काव्य पंक्ति:
“मूरख नर को समझा कौन, मन ही मन मन मान।”- पहला ‘मन’ का अर्थ है विचार।
- दूसरा ‘मन’ का अर्थ है हृदय।
(यहां ‘मन’ शब्द के अलग-अलग अर्थ श्लेष अलंकार को दर्शाते हैं।)
- काव्य पंक्ति:
“चंद्र प्रकाश से चंद्रमुख खिला।”- पहला ‘चंद्र’ का अर्थ है चंद्रमा।
- दूसरा ‘चंद्र’ का अर्थ सुंदरता।
श्लेष अलंकार का महत्व:
- भाषा का चमत्कार:
श्लेष अलंकार के प्रयोग से काव्य में शब्दों के प्रयोग का चमत्कार दिखाई देता है। - पाठक को आकर्षित करता है:
एक ही शब्द के विभिन्न अर्थ पाठक को गहराई से सोचने पर मजबूर करते हैं। - साहित्यिक सौंदर्य:
यह अलंकार काव्य में सुंदरता और रोचकता बढ़ाने में सहायक होता है। - काव्य की गहराई:
श्लेष अलंकार से रचना की अर्थवत्ता और गहराई कई गुना बढ़ जाती है।
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