अनुप्रास अलंकार
परिभाषा:
अनुप्रास अलंकार वह अलंकार है जिसमें काव्य की पंक्तियों में एक ही ध्वनि, अक्षर या वर्ण का बार-बार प्रयोग किया जाता है। इसका उद्देश्य काव्य में मधुरता, लय और संगीतात्मकता लाना है। अनुप्रास मुख्य रूप से शब्दालंकार के अंतर्गत आता है।
विशेषताएँ:
- एक ही ध्वनि की आवृत्ति:
एक ही अक्षर या ध्वनि का क्रमिक रूप से बार-बार उपयोग होता है। - संगीतात्मकता:
अनुप्रास अलंकार से काव्य में लय और मधुरता उत्पन्न होती है। - सौंदर्य वृद्धि:
यह काव्य में सौंदर्य और आकर्षण बढ़ाने का कार्य करता है।
उदाहरण:
- “चंचल चपल चितवन चुराई।”
- यहां ‘च’ ध्वनि की आवृत्ति अनुप्रास अलंकार को दर्शाती है।
- “कनक कांचन कांति करे, चंचल चित चोर।”
- ‘क’ और ‘च’ ध्वनियों की पुनरावृत्ति अनुप्रास अलंकार है।
- “मीठे बोल बोले मयूर।”
- यहां ‘म’ ध्वनि की आवृत्ति अनुप्रास अलंकार को दिखाती है।
अनुप्रास के प्रकार:
अनुप्रास अलंकार को ध्वनि और शब्दों के आधार पर तीन प्रकारों में बांटा जाता है:
- वर्णानुप्रास:
जब एक ही अक्षर या वर्ण बार-बार प्रयुक्त हो।- उदाहरण: “चमके चंद्रमा चमचम चमचम।”
- यहां ‘च’ अक्षर की आवृत्ति वर्णानुप्रास का उदाहरण है।
- पदानुप्रास:
जब एक ही शब्द का बार-बार प्रयोग हो।- उदाहरण: “जल पर जल में जल भर जल थल।”
- यहां ‘जल’ शब्द बार-बार प्रयोग में लाया गया है।
- लाटानुप्रास:
जब किसी ध्वनि का प्रभाव पूरे काव्य में दिखाई दे।- उदाहरण: “गगन में घन गरज रहे, गर्जन कर घनश्याम।”
- ‘ग’ और ‘घ’ ध्वनियों की आवृत्ति लाटानुप्रास का उदाहरण है।
अनुप्रास अलंकार का महत्व:
- काव्य में मधुरता और लय:
अनुप्रास से काव्य अधिक लयबद्ध और मधुर बनता है। - पाठक को आकर्षित करना:
ध्वनि की आवृत्ति से पाठक या श्रोता का ध्यान खिंचता है। - सौंदर्य और प्रभाव:
अनुप्रास अलंकार का उपयोग काव्य को सौंदर्यपूर्ण और प्रभावशाली बनाता है। - रचनात्मकता:
अनुप्रास के प्रयोग से रचनाकार अपनी काव्यकला और भाषाई सौंदर्य को प्रस्तुत करता है।
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