Notes For All Chapters Hindi Vasant Class 7
सारांश
खानपान की बदलती तस्वीर लेखक प्रयाग शुक्ल द्वारा लिखा गया प्रसिद्ध निबंध हैं।
निबंध का सार कुछ इस प्रकार है-
पिछले 10-15 वर्षों से हमारी खानपान की संस्कृति में बड़ा बदलाव है। इडली, डोसा, सांभर, रसम न केवल दक्षिण भारत तक सीमित न होकर पूरे देश में प्रसिद्ध हो गया है। इसके साथ ही ढाबा संस्कृति भी लगभग पूरे देश में फैल चूकी है। आपको कहीं भी रोटी, दाल, साग प्राप्त हो जाएगा। फास्टफूड में बर्गर, नुडल्स सभी के नाम आज आम हो चुके हैं। टू मिनट नूडल्स, नमकीन के कई प्रकार घर-घर में जगह बनाते जा रहे हैं। गुजराती ढोकला, गाठिया अब देश के कई हिस्सों में स्वाद लेकर खाया जाता है। बंगाली मिठाइयाँ पहले की तुलना में कई शहरों में उपलब्ध है। स्थानीय व्यंजनों के साथ ही अन्य प्रदेशों के व्यंजन पकवान भी हर क्षेत्र में मिलने लगे हैं और मध्यम वर्गीय जीवन में भोजन विविधता में अपनी जगह बना ली है।
ब्रेड जो अंग्रजों के राज में केवल साहब लोगों तक सीमित थी। वह अब कस्बों तक नाश्ते के रूप में लाखों भारतीय के घरों में आपको देखने के लिए आसानी से मिल जायेगी। खानपान की बदलती संस्कृति से नयी पीढ़ी ज्यादा प्रभावित है। स्थानीय व्यंजन अब घटकर कुछ चीजों तक ही सीमित होकर राह गए हैं। बंबई की पावभाजी हो या दिल्ली के छोले- कुलचे की दुनिया अब सीमित हो गई है। मथुरा के पेडों नमकीन की माँग कम होती जा रही है। गृहणियाँ भी उन व्यंजनों में रूचि लेती हैं जो कम समय में तैयार हो जाय। शहरी जीवन की भागमभाग और मंहगाई ने भी लोगों को कई चीजों से वंचित कर दिया है।
खानपान की मिश्रित संस्कृति का सकारत्मक पक्ष यह है कि महिलाएँ जल्दी तैयार हो जाने वाले व्यंजन बनाना पसंद करती हैं। स्वतंत्रता के बाद उद्योग-धंधों, नौकरियों-तबादलों का विस्तार हुआ है जिसके कारण एक जगह का खानपान दूसरी जगह पहुँचा है। खानपान की मिश्रित संस्कृति ने राष्ट्रीय एकता के बीज भी विकसित किये हैं। इसके साथ ही उस क्षेत्र की बोली-बानी, भाषा-भूषा आदि को भी स्थान दिया जाना चाहिए। आज हम आधुनिकता के चले कई स्थानीय व्यंजनों को छोड़ चुके हैं। पश्चिम की नकल में कई ऐसे चीजों को अपना रहें हैं जो हमारे अनुकूल है ही नहीं। खानपान की मिश्रित संस्कृति हमें कुछ चीजें चुनने का अवसर देती है, जिसका लाभ हम उठा पा रहे हैं। अत: हमें विकसित संस्कृति को हमेशा जाँचते परखते रहना चाहिए।
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