Meri Maa Class 6 Summary in Hindi
पाठ “मेरी माँ” रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ की आत्मकथा का एक अंश है, जिसमें उन्होंने अपनी माँ के प्रति अपनी भावनाओं और कृतज्ञता को व्यक्त किया है। इस पाठ में रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ अपनी माँ की महानता, उनके साहस, और उनके द्वारा दिए गए संस्कारों का उल्लेख करते हैं।
रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ अपनी माँ को एक साहसी और दृढ़ निश्चयी महिला के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जिन्होंने न केवल अपने जीवन में कठिनाइयों का सामना किया, बल्कि अपने बेटे को भी जीवन के संघर्षों से निपटने के लिए तैयार किया। उनकी माँ एक अनपढ़ गाँव की लड़की थीं, जो कम उम्र में विवाह करके शहर आईं और धीरे-धीरे अपने घर-परिवार के कामकाज को समझा और संभाला। उन्होंने अपनी रुचि और जिज्ञासा के चलते हिंदी पढ़ना-लिखना भी सीखा, जो उस समय की ग्रामीण महिलाओं के लिए असामान्य था।
माँ ने उन्हें हमेशा सत्य, ईमानदारी और नैतिकता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। जब रामप्रसाद ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया, तब भी उनकी माँ ने उनका पूरा समर्थन किया, भले ही यह उनके लिए आसान नहीं था। उनकी माँ का यह कहना कि “कभी किसी के प्राण नहीं लेने चाहिए, चाहे वह शत्रु ही क्यों न हो,” उनके विचारों की उदारता और उच्च नैतिकता को दर्शाता है।
माँ के संस्कार और उनके दिए हुए शिक्षाओं ने रामप्रसाद को एक मजबूत और साहसी इंसान बनाया। उन्होंने बताया कि उनकी माँ ने उन्हें कभी गलत काम करने के लिए नहीं कहा और हमेशा सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा दी। इस पाठ में यह भी स्पष्ट किया गया है कि उनकी माँ ने न केवल उन्हें जीवन के व्यावहारिक सबक सिखाए, बल्कि उन्हें धार्मिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन भी दिया।
इस पाठ में रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ ने अपनी माँ के प्रति अपनी कृतज्ञता को बहुत ही भावुक और सम्मानपूर्वक तरीके से व्यक्त किया है। वे मानते हैं कि जो कुछ भी वे बन पाए, उसमें उनकी माँ का सबसे बड़ा योगदान है। यह पाठ हर उस माँ को समर्पित है, जो अपने बच्चों के लिए त्याग और समर्पण का प्रतीक है। रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ की आत्मकथा का यह अंश एक माँ के अनमोल योगदान की कहानी है, जो अपने बेटे के जीवन में मार्गदर्शक बनकर उसे सही राह पर चलने के लिए प्रेरित करती है।
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