Notes For All Chapters Hindi Vasant Class 6
सारांश
प्रस्तुत गीत साहिर लुधियानवी द्वारा लिखा गया है। यह गीत ‘नया दौर’ फिल्म के लिए लिखा गया था। यह गीत आजादी के कुछ समय बाद लिखा गया था। यह गीत सभी को मिलजुलकर काम करने की प्रेरणा देता है। इस गीत के द्वारा कवि ने बताने का प्रयास किया है कि जब भी हम मनुष्य ने मिलजुलकर काम किया है तब उसने हर मुश्किल को आसानी से पार किया है। परिश्रमी मनुष्य जब मिलकर कार्य करते हैं तो समंदर में भी राह निकल आती और पर्वत को भी पार किया जा सकता है। कवि के अनुसार सुख-दुःख का चक्र जीवन में हमेशा आता रहता है। हमें हर परिस्थिति में हमेशा अपनी मंजिल की ओर बढ़ते रहना चाहिए। दुनिया में हर बड़ा चीज़ छोटे-छोटे चीजों से मिलकर ही बना है।
भावार्थ
साथी हाथ बढाना
एक अकेला थक जाएगा, मिलकर बोझ उठाना
साथी हाथ बढाना।
हम मेहनत वालों ने जब भी, मिलकर कदम बढ़ाया
सागर ने रस्ता छोडा, परबत ने सीस झुकाया
फ़ौलादी हैं सीने अपने, फ़ौलादी हैं बाँहें
हम चाहें तो चट्टानों में पैदा कर दें राहें
साथी हाथ बढ़ाना
नए शब्द/कठिन शब्द
साथी- साथ देने वाला
हाथ बढ़ाना- मदद करना
बोझ- भारी वस्तु
मेहनतवाले- परिश्रमी
कदम बढ़ाना- आगे चलना
परबत- पर्वत
सीस- सिर
फ़ौलादी- लोहे की तरह मजबूत
सीना- छाती
चट्टान- बड़े पत्थर
पैदा कर दें राहें- रास्ता निकाल दें
भावार्थ– प्रस्तुत पंक्तियों के द्वारा कवि ने लोगों को साथ मिलकर काम करने को प्रेरित किया है। गीत की इन पंक्तियों में कवि बताते है कि अकेला व्यक्ति अगर कुछ पाने का प्रयास करे तो थक जाता है परंतु अगर सब मिल-जुलकर के कार्य करे तो बड़े से बड़े लक्ष्य तक आसानी से पहुँच सकते हैं। इसलिए कवि चाहते हैं कि भारत निर्माण में सभी हिस्सेदार बने। कवि कहते हैं कि मेहनती लोगों ने जब भी मिलजुलकर काम किया है सागर और पर्वतों को भी पार कर दिया है। कवि कहते हैं हमारी बाहें और सीने फौलाद के बने हैं, बस जरुरत है तो सबको साथ मिलकर काम करने की जरुरत है।
मेहनत अपनी लेख की रेखा, मेहनत से क्या डरना
कल गैरों की खातिर की, अब अपनी खातिर करना
अपना दुःख भी एक है साथी, अपना सुख भी एक
अपनी मंजिल सच की मंजिल, अपना रास्ता नेक
साथी हाथ बढ़ाना
नए शब्द/कठिन शब्द
लेख की रेखा- भाग्य की रेखा
गैरों- परायों
खातिर- के लिए
मंजिल- लक्ष्य
नेक- भलाई
भावार्थ– कवि प्रेरणा देते हुए कहता है कि मेहनत ही हमारी नियति है। अत: इससे क्या डरना। अभी तक दूसरों के लिए परिश्रम करते थे अब परिश्रम करने की बारी अपने लिए आई है। यहाँ पर कवि का तात्पर्य लोगों को याद दिलाने से है कि कल तक गैरों (अंग्रेजों) के लिए काम किया अब अपने लिए अर्थात् आजाद भारत के निर्माण के काम करना है।
साथ ही कवि ने सुख-दुःख को लोगों का साथी बताया है क्योंकि यह तो एक क्रम की तरह जीवन में चलता ही रहता है। अत: अपनी मंजिल की ओर बढ़ते रहना चाहिए।
एक से एक मिले तो कतरा, बन जाता है दरिया
एक से एक मिले तो ज़र्रा, बन जाता है सेहरा ज़र्रा
एक से एक मिले तो राई, बन सकती है पर्वत
एक से एक मिले तो इंसाँ, बस में कर ले किस्मत
साथी हाथ बढ़ाना
नए शब्द/कठिन शब्द
दरिया- नदी
ज़र्रा- कण
सेहरा- रेगिस्तान
राई- सरसों
भावार्थ– प्रस्तुत पंक्तियों में कवि एकता की ताकत को स्पष्ट करते हुए बताते हैं कि एक-एक बूंद मिलकर दरिया ब जाता है। छोटे-छोटे जर्रा से मिलकर सेहरा बन जाते हैं। छोटे राई के दाने मिलकर पर्वत बना देने की क्षमता रखते हैं। उसी प्रकार यदि प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करें तो भाग्य को भी पलट कर रख सकते हैं।
Leave a Reply