कोणीय संवेग संरक्षण का नियम (सिद्धांत)
यदि किसी अक्ष के परितः घूमते हुए पिंड पर कोई बाह्य बल आघूर्ण का आरोपित न हो, तो उस पिंड का कोणीय संवेग नियत रहते हैं इसे कोणीय संवेग संरक्षण का नियम कहते हैं। अर्थात
J = Iω = नियतांक
उत्पत्ति –
कोणीय संवेग तथा बल आघूर्ण के संबंध से हमने पढ़ा है कि घूर्णन अक्ष के परितः किसी पिंड के कोणीय संवेग परिवर्तन की दर, उस पिंड पर आरोपित बाह्य बल आघूर्ण के बराबर होती है अतः
τ = \( \large \frac{dJ}{dt} \)
यदि बाह्य बल आघूर्ण शून्य हो तो τ = 0
\( \large \frac{dJ}{dt} \) = 0
तथा dJ = 0 (चूंकि समय शून्य नहीं हो सकता है)
अर्थात् J = नियतांक
यह कौन है संवेग संरक्षण का नियम (सिद्धांत) है।
उदाहरण
1. यदि हम किसी हल्के पिंड को धागे से बांधकर एवं धागे को हाथ से इस प्रकार क्षैतिज तल में घुमाया जाए, कि धागा उंगली पर लिपट रहा हो। जैसे चित्र में दिखाया गया है। तब इस स्थिति में पिंड का कोणीय वेग (ω) बढ़ता जाता है। क्योंकि धागा लिपटते समय पिंड तथा उंगली के बीच की दूरी कम होती जाती है। इससे पिंड अधिक तेजी से घूमने लगता है इसलिए पिंड का घूर्णन अक्ष के परितः जड़त्व आघूर्ण (I) घटता जाता है।
अतः संवेग संरक्षण के नियम से पिंड का कोणीय वेग भी बढ़ता जाता है।
2. जब कोई तेराक (गोताखोर) ऊंचाई से जल में कूदता है तो वह अपने शरीर को सीधा रखने की बजाय अपने हाथ पैरों को सिकोड़ लेता है जिससे उसका जड़त्व आघूर्ण (I) कम हो जाता है। चूंकि कोणीय संवेग (Iω) का मान नियत रहता है। अतः जड़त्व आघूर्ण के घटने से कोणीय वेग (ω) का मान बढ़ जाता है। तथा जल में गिरने के कुछ समय पहले ही वह गोताखोर अपने शरीर को सीधा कर लेता है।
3. डांसिंग बोर्ड पर स्केट्स (पहिये लगे जूते) पहनकर नाचने वाला व्यक्ति(या लड़की) नाचते समय अपने हाथों को सिकोड़ लेता है जिससे उसका जड़त्व आघूर्ण (I) का मान कम हो जाता है। परिणामस्वरूप कोणीय वेग बढ़ जाता है। जिस कारण पर व्यक्ति(या लड़की) तेजी से घूमने लगता है।
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