प्रगामी तरंगे तथा अप्रगामी तरंगे, विशेषताएं, अंतर, उदाहरण
प्रगामी तरंग
जब किसी माध्यम में लगातार तरंगे उत्पन्न की जाती हैं तो माध्यम के कण भी लगातार कंपन करते रहते हैं। अतः इस दशा में, माध्यम में उत्पन्न हुए विक्षोभ को प्रगामी तरंग (progressive wave) कहते हैं।
प्रगामी तरंग के उदाहरण
तलाब के जल की ऊपरी सतह पर उत्पन्न तरंगे, दीवार से बंधी रस्सी में उत्पन्न तरंगे आदि।
प्रगामी तरंग का समीकरण
यदि कोई तरंग x-अक्ष की धन दिशा में गतिमान है तो उस प्रगामी तरंग का समीकरण
\( y = asin2π (\frac{t}{T} – \frac{x}{λ}) \)जहां y = विस्थापन
a = तरंग का आयाम
t = तरंग का समय अंतराल
T = आवर्तकाल
x = मूलबिंदु से दूरी
λ = तरंगदैर्ध्य यदि x-अक्ष की ऋण दिशा में प्रगामी तरंग संचरित है तो उसका समीकरण
\( { y = asin2π (\frac{t}{T} + \frac{x}{λ}) } \) कालांतर तथा पथांतर में संबंध का समीकरण
\( { ∆Φ = \frac{2π}{T} × ∆t } \)जहां ∆Φ = कालांतर (Φ1 – Φ2)
∆t = समयांतराल (t1 – t2)
T = आवर्तकाल है।
अप्रगामी तरंग
जब दो एकसमान अनुप्रस्थ अथवा अनुदैर्ध्य प्रगामी तरंगे एक ही चाल से परंतु विपरीत दिशाओं में गति करती हैं। तो इन तरंगों के अध्यारोपण के फलस्वरुप एक नयी तरंग माध्यम में स्थिर प्रतीत होती है अतः इस नयी स्थिर तरंग को अप्रगामी तरंग (stationary waves) कहते हैं।
अप्रगामी तरंगों में माध्यम के कण अपने स्थान पर स्थिर रहते हैं। इस प्रकार के कणों को निस्पंद कहते हैं। एवं इनके विपरीत कुछ कण ऐसे भी होते हैं जिनका विस्थापन अधिकतम होता है उन्हें प्रस्पंद कहते हैं।
अप्रगामी तरंग का समीकरण
\({ y = 2acos \frac{2πx}{λ} sin \frac{2πt}{T} – \frac{x}{λ}) } \) \({ y = – 2asin \frac{2πx}{λ} cos \frac{2πt}{T} – \frac{x}{λ}) } \)अप्रगामी तरंगों की विशेषताएं
1. यह तरंगे माध्यम में आगे नहीं बढ़ती हैं बल्कि एक ही स्थान पर छोटी व बड़ी होती रहती हैं। अर्थात् ऊपर-नीचे होती रहती हैं।
2. दो क्रमागत निस्पंद अथवा दो क्रमागत प्रस्पंद के बीच की दूरी \( \frac{λ}{2} \) होती है।
3. निस्पंद को छोड़कर माध्यम के सभी कण कंपन करते हैं। लेकिन इन कंपनों का आयाम निस्पंदों पर शून्य तथा प्रस्पंदों पर अधिकतम होता है।
4. किसी क्षण जब निस्पंद के दोनों ओर के कणों का कलांतर 180° होता है तब निस्पंद के दोनों ओर के कण विपरीत कला में होते हैं।
प्रगामी एवं अप्रगामी तरंगों में अंतर
1. प्रगामी तरंगे माध्यम में एक निश्चित वेग से आगे बढ़ती हैं। जबकि अप्रगामी तरंगे किसी भी दिशा में आगे नहीं बढ़ती हैं बल्कि एक ही स्थान पर छोटी व बड़ी होती रहती हैं।
2. प्रगामी तरंगों में माध्यम के सभी का कंपन करते हैं। जबकि अप्रगामी तरंगों में निस्पंदों को छोड़कर सभी कण कंपन करते हैं।
3. प्रगामी तरंगों में सभी कंपित तरंगों का आयाम बराबर होता है। जबकि अप्रगामी तरंगों में कणों के कंपन का आयाम भिन्न भिन्न होता है।
4. प्रगामी तरंगों द्वारा माध्यम में ऊर्जा का संचरण होता है। जबकि अप्रगामी तरंगों द्वारा माध्यम में ऊर्जा का संचरण नहीं होता है।
5. प्रगामी तरंगों में किसी क्षण कण की कला लगातार बदलती रहती है। जबकि अप्रगामी तरंगों में किसी क्षण दो समीपवर्ती निस्पंदों के बीच सभी कणों की कला समान होती है।
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