ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम
इस प्रथम के अनुसार, यदि किसी ऊष्मागतिकी निकाय को ऊष्मा दी जाए तो इस ऊष्मा का कुछ भाग निकाय की आंतरिक ऊर्जा में वृद्धि करने में खर्च हो जाएगा। तथा ऊष्मा का शेष भाग ऊष्मागतिकी निकाय द्वारा कार्य करने में व्यय हो जाएगा।
अर्थात किसी निकाय को Q ऊष्मा दी जाए तो ऊष्मा का कुछ भाग, आंतरिक उर्जा में वृद्धि (∆U) में तथा शेष भाग कार्य W करने में व्यय हो जायेगा, तो
Q=∆U+W
यह ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम (first law of thermodynamics) का गणितीय रूप है। ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम ऊर्जा संरक्षण के नियम का ही एक रूप है।
ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम के भौतिक महत्व
इसकी निम्नलिखित तीन तथ्य हैं-
1. ऊष्मा ऊर्जा का ही एक रूप है।
2. ऊष्मागतिकी निकाय में ऊर्जा संरक्षित रहती है।
3. प्रत्येक ऊष्मागतिकी निकाय में आंतरिक ऊर्जा विद्यमान होती है यह आंतरिक ऊर्जा केवल ऊष्मागतिकी निकाय की अवस्था पर निर्भर करती है।
ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम की सीमाएं
1. किसी वस्तु से ली गई ऊष्मा का केवल कुछ भाग ही कार्य में परिवर्तित किया जा सकता है संपूर्ण ऊष्मा को नहीं किया जा सकता है। शेष भाग बिना किसी कार्य किए, व्यय हो जाता है ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम यह नहीं बताता कि किसी निकाय से ली गई ऊष्मा का कितना भाग कार्य में बदल गया है।
2. ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम यह भी नहीं बताता है कि प्रक्रम संभव है या नहीं।
इस नियम से केवल यह ज्ञात होता है कि प्रक्रम में ऊर्जा संरक्षित रहती है। साधारणतः ऊष्मा को पूर्ण रूप से कार्य में नहीं बदला जा सकता है। जबकि कार्य को ऊष्मा में पूर्णतः बदला जा सकता है। इसको हम ऐसा समझते हैं-
कि आप किसी चूल्हे पर कोई बर्तन रखकर चूल्हे में आग जलाते हैं। तो ऐसा तो संभव नहीं है कि आग (ऊष्मा) का संपूर्ण भाग ही उस बर्तन पर पड़े, कुछ भाग ही बर्तन पर पड़ता है जो कार्य में परिवर्तित हो जाता है एवं शेष भाग बिना किसी कार्य के ही व्यय हो जाता है।
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