वीन का विस्थापन नियम
जब किसी कृष्णिका का ताप बढ़ाते हैं तो कृष्णिका से उत्सर्जित अधिकतम ऊर्जा विकिरण कम तरंगदैर्ध्य की ओर विस्थापित होती है। अर्थात् अधिक ताप बढ़ने पर तरंगदैर्ध्य का मान घटता है।
किसी आदर्श कृष्णिका से उत्सर्जित अधिकतम ऊर्जा की तरंगदैर्ध्य (λm) उसके परमताप T के व्युत्क्रमानुपाती होती है। अर्थात्
λm ∝ \( \large \frac{1}{T} \)
λm = \( \large \frac{b}{T} \)
जहां एक b नियतांक है जिसे वीन नियतांक कहते हैं। तो
λm × T = b (नियतांक)
वीन नियतांक का मात्रक मीटर-केल्विन होता है। प्रयोग द्वारा इसका मान 2.90 × 103 प्राप्त होता है।
इस नियम के अनुसार यह भी कहा जा सकता है कि कृष्णिका, विकिरण के स्पेक्ट्रमी वितरण वक्रों में ताप वृद्धि के साथ अधिकतम तरंगदैर्ध्य के संगत वक्र का उच्चतम ताप, कम तरंगदैर्ध्य की ओर विस्थापित होता है। इसी कारण इसे वीन का विस्थापन नियम कहते हैं।
वीन के विस्थापन नियम से सूर्य अथवा आकाशीय पिंडों का ताप ज्ञात कर सकते हैं। प्रयोग द्वारा सूर्य का ताप
इसके लिए λm = 4753
λm = 4753 × 10-10
सूर्य का ताप T = \( \large \frac{b}{λ_m} \)
T = \( \large \frac{2.9 × 10^{-3}}{4753 × 10^{-10}} \)
T = 6100 केल्विन
अतः वीन के विस्थापन नियम के अनुसार सूर्य का ताप 6100 केल्विन होता है।
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