तत्वों का वर्गीकरण एवं गुणधर्मों में आवर्तिता
प्रश्न 1: आवर्त सारणी के विकास और इसके ऐतिहासिक महत्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आवर्त सारणी रसायन विज्ञान में एक महत्वपूर्ण उपकरण है जिसने तत्वों के व्यवस्थित अध्ययन में अत्यधिक सहायता प्रदान की है। इसका विकास विभिन्न वैज्ञानिकों के प्रयासों का परिणाम है। सबसे पहले जोहान डोबेरेनियर ने 1829 में तत्वों के गुणों में समानता का विचार प्रस्तुत किया और त्रिक नियम (Law of Triads) दिया। इसके बाद 1865 में जॉन न्यूलैंड्स ने आवर्त नियम (Law of Octaves) दिया, जिसमें उन्होंने तत्वों को उनके परमाणु भार के आधार पर वर्गीकृत किया।
लेकिन असली प्रगति 1869 में हुई जब रूसी रसायनज्ञ दिमित्री मेंडेलीव ने तत्वों को उनके परमाणु भार के आधार पर व्यवस्थित किया और आवर्त सारणी बनाई। उन्होंने यह भी भविष्यवाणी की कि कुछ तत्व अभी तक खोजे नहीं गए हैं और उनके लिए सारणी में जगह छोड़ी। उनके द्वारा भविष्यवाणी की गई कुछ तत्व, जैसे गैलियम और जर्मेनियम, बाद में खोजे गए, जिससे उनकी सारणी की प्रामाणिकता सिद्ध हुई।
प्रश्न 2: आधुनिक आवर्त नियम (Modern Periodic Law) क्या है और यह मेंडेलीव के आवर्त नियम से कैसे भिन्न है?
उत्तर:
आधुनिक आवर्त नियम कहता है कि “तत्वों के भौतिक और रासायनिक गुण उनके परमाणु संख्या के आवर्त फलन होते हैं।” यह नियम हेनरी मोस्ले द्वारा 1913 में प्रस्तुत किया गया था, जिन्होंने एक्स-रे स्पेक्ट्रा के अध्ययन के माध्यम से यह सिद्ध किया कि तत्वों के गुण उनके परमाणु भार की बजाय उनकी परमाणु संख्या पर निर्भर करते हैं।
मेंडेलीव के आवर्त नियम के अनुसार तत्वों के गुण उनके परमाणु भार के आवर्त फलन होते हैं। लेकिन जब कुछ तत्वों के स्थान में विसंगति आई, जैसे आयोडीन और टेल्यूरियम, तो यह पाया गया कि तत्वों के गुणों का सही निर्धारण परमाणु संख्या के आधार पर किया जा सकता है न कि परमाणु भार के आधार पर। इसलिए, आधुनिक आवर्त नियम अधिक सटीक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सही माना जाता है।
प्रश्न 3: आवर्त सारणी में तत्वों की वर्गीकरण के पीछे का तर्क समझाइए।
उत्तर:
आवर्त सारणी में तत्वों का वर्गीकरण उनके भौतिक और रासायनिक गुणों के आधार पर किया गया है। तत्वों को उनके परमाणु संख्या के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित किया गया है, जिससे यह पता चलता है कि उनके गुण एक नियमित अंतराल पर पुनरावृत्ति करते हैं।
आवर्त सारणी में तत्वों को चार मुख्य ब्लॉकों में विभाजित किया गया है: s-ब्लॉक, p-ब्लॉक, d-ब्लॉक, और f-ब्लॉक। ये ब्लॉक इस आधार पर निर्धारित किए जाते हैं कि तत्व के अंतिम इलेक्ट्रॉन किस कक्ष में प्रवेश करते हैं। इसके अलावा, तत्वों को उनकी धात्विकता, अधात्विकता और अर्धधात्विकता के आधार पर भी वर्गीकृत किया गया है। इस वर्गीकरण से वैज्ञानिकों को तत्वों के गुणों को समझने और नए तत्वों की खोज में सहायता मिलती है।
प्रश्न 4: तत्वों की भौतिक और रासायनिक गुणों में आवर्तिक प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तत्वों की भौतिक और रासायनिक गुणों में आवर्तिक प्रवृत्तियाँ विभिन्न रूप में प्रकट होती हैं। उदाहरण के लिए, आवर्त सारणी में बाएं से दाएं जाने पर तत्वों का परमाणु आकार घटता है, जबकि ऊपर से नीचे जाने पर यह बढ़ता है। इसी प्रकार, आयनीकरण एंथाल्पी और इलेक्ट्रॉनेगेटिविटी भी आवर्त सारणी में एक निश्चित प्रवृत्ति का अनुसरण करती हैं।
रासायनिक गुणों की बात करें तो, धातु तत्व आमतौर पर इलेक्ट्रॉन छोड़ने की प्रवृत्ति रखते हैं और बेसिक ऑक्साइड बनाते हैं, जबकि अधातु तत्व इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति रखते हैं और एसिडिक ऑक्साइड बनाते हैं। इन गुणों की आवर्तिक प्रवृत्तियाँ इस बात को सिद्ध करती हैं कि तत्वों के गुण उनके इलेक्ट्रॉनिक संरचना से निकटता से संबंधित हैं।
प्रश्न 5: तत्वों की आक्सीकरण अवस्था और उनके संयोजकता में क्या संबंध है? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
तत्वों की आक्सीकरण अवस्था उनके इलेक्ट्रॉनिक संरचना से निर्धारित होती है और यह संयोजकता (valency) के रूप में व्यक्त होती है। आक्सीकरण अवस्था उस आवेश को दर्शाती है जिसे तत्व की परमाणु संख्या के आधार पर आवंटित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, ऑक्सीजन के मामले में, यदि वह दो इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करता है तो उसकी आक्सीकरण अवस्था -2 होगी।
उदाहरण के तौर पर, NaCl में सोडियम की आक्सीकरण अवस्था +1 है क्योंकि यह एक इलेक्ट्रॉन खो देता है, जबकि ऑक्सीजन की आक्सीकरण अवस्था -2 होती है क्योंकि यह दो इलेक्ट्रॉन ग्रहण करता है। इस प्रकार, तत्वों की आक्सीकरण अवस्था और संयोजकता उनकी रासायनिक प्रतिक्रियाओं और उनके द्वारा बनाए गए यौगिकों के गुणों को निर्धारित करती हैं।
प्रश्न 6: मेंडेलीव की आवर्त सारणी में प्रस्तुत त्रुटियों और आधुनिक आवर्त सारणी में किए गए सुधारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मेंडेलीव की आवर्त सारणी ने रसायन विज्ञान में एक महत्वपूर्ण कदम रखा, लेकिन इसमें कुछ त्रुटियाँ भी थीं। सबसे बड़ी त्रुटि यह थी कि कुछ तत्वों को उनके गुणों के बजाय उनके परमाणु भार के आधार पर रखा गया था। उदाहरण के लिए, टेल्यूरियम (Te) का परमाणु भार आयोडीन (I) से अधिक है, फिर भी मेंडेलीव ने आयोडीन को टेल्यूरियम के बाद रखा क्योंकि उनके गुण अधिक मिलते-जुलते थे।
आधुनिक आवर्त सारणी ने इन त्रुटियों को सुधार दिया। इस सारणी में तत्वों को उनके परमाणु संख्या के आधार पर व्यवस्थित किया गया है, जो कि एक अधिक मौलिक और सटीक मानदंड है। हेनरी मोसले के शोध ने साबित किया कि तत्वों के गुण उनके परमाणु संख्या पर निर्भर करते हैं, न कि परमाणु भार पर। इस सुधार से आवर्त सारणी की सटीकता और वैज्ञानिकता में वृद्धि हुई।
प्रश्न 7: इलेक्ट्रॉनिक विन्यास और आवर्त सारणी के बीच क्या संबंध है? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास और आवर्त सारणी के बीच घनिष्ठ संबंध है। किसी तत्व की स्थिति आवर्त सारणी में उसके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास से निर्धारित होती है। इलेक्ट्रॉनिक विन्यास वह तरीका है जिससे किसी तत्व के इलेक्ट्रॉन विभिन्न ऊर्जा स्तरों में व्यवस्थित होते हैं।
दाहरण के लिए, सॉडियम (Na) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास \(1s^2 2s^2 2p^6 3s^1\) है। चूंकि इसका सबसे बाहरी इलेक्ट्रॉन 3s कक्ष में है, इसलिए सॉडियम आवर्त सारणी के तीसरे आवर्त और पहले समूह में स्थित होता है। इसी प्रकार, नाइट्रोजन (N) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास \(1s^2 2s^2 2p^3\) है, और यह आवर्त सारणी के दूसरे आवर्त और 15वें समूह में स्थित होता है। इस प्रकार, आवर्त सारणी की संरचना इलेक्ट्रॉनिक विन्यास पर आधारित होती है और यह विभिन्न तत्वों के भौतिक और रासायनिक गुणों को स्पष्ट रूप से दर्शाती है।
प्रश्न 8: विभिन्न आवर्तिक प्रवृत्तियों का वर्णन करें जैसे कि आयनीकरण ऊर्जा, इलेक्ट्रॉन गेन एंथाल्पी और विद्युत ऋणात्मकता।
उत्तर:
आवर्त सारणी में विभिन्न प्रवृत्तियाँ देखी जाती हैं जो तत्वों के भौतिक और रासायनिक गुणों को प्रभावित करती हैं:
आयनीकरण ऊर्जा: आयनीकरण ऊर्जा वह ऊर्जा है जो किसी तत्व से एक इलेक्ट्रॉन को हटाने के लिए आवश्यक होती है। यह ऊर्जा आवर्त सारणी में बाएं से दाएं जाने पर बढ़ती है और ऊपर से नीचे जाने पर घटती है। इसका कारण यह है कि बाएं से दाएं जाने पर परमाणु के नाभिक का आकर्षण बढ़ता है, जिससे इलेक्ट्रॉन को हटाने के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
इलेक्ट्रॉन गेन एंथाल्पी: यह वह ऊर्जा है जो किसी तत्व के परमाणु में एक अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन जोड़ने पर मुक्त होती है। आवर्त सारणी में बाएं से दाएं जाने पर इलेक्ट्रॉन गेन एंथाल्पी अधिक ऋणात्मक होती जाती है क्योंकि परमाणु का आकार छोटा होता जाता है और नाभिक का आकर्षण अधिक होता है। ऊपर से नीचे जाने पर यह कम ऋणात्मक होती जाती है क्योंकि परमाणु का आकार बड़ा होता है और नाभिक का आकर्षण कम होता है।
विद्युत ऋणात्मकता: विद्युत ऋणात्मकता किसी तत्व के परमाणु द्वारा एक यौगिक में साझा किए गए इलेक्ट्रॉनों को अपनी ओर खींचने की क्षमता को दर्शाती है। यह प्रवृत्ति भी आयनीकरण ऊर्जा की तरह होती है; आवर्त सारणी में बाएं से दाएं जाने पर विद्युत ऋणात्मकता बढ़ती है और ऊपर से नीचे जाने पर घटती है।
प्रश्न 9: तत्वों की आवर्त सारणी में धात्विक और अधात्विक गुणों के बीच परिवर्तन की प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
धात्विक और अधात्विक गुण तत्वों के आवर्त सारणी में एक आवर्तिक प्रवृत्ति का पालन करते हैं। धात्विक गुण तत्वों के उन गुणों को दर्शाते हैं जिनमें वे इलेक्ट्रॉन खोने की प्रवृत्ति रखते हैं और विद्युत और ऊष्मा के अच्छे संचालक होते हैं। अधात्विक गुण इसके विपरीत होते हैं, जहाँ तत्व इलेक्ट्रॉन प्राप्त करने की प्रवृत्ति रखते हैं और सामान्यतः विद्युत और ऊष्मा के अच्छे संचालक नहीं होते।
आवर्त सारणी में:
बाएँ से दाएँ जाने पर: धात्विक गुण कम होते जाते हैं और अधात्विक गुण बढ़ते जाते हैं। इसका कारण यह है कि बाएँ से दाएँ जाने पर परमाणु में इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ती है और नाभिक का आकर्षण बढ़ता है, जिससे इलेक्ट्रॉन खोने की प्रवृत्ति कम हो जाती है।
ऊपर से नीचे जाने पर: धात्विक गुण बढ़ते हैं और अधात्विक गुण कम होते हैं। इसका कारण यह है कि परमाणु का आकार बढ़ता है और नाभिक का आकर्षण कम हो जाता है, जिससे इलेक्ट्रॉन खोने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है।
प्रश्न 10: d-ब्लॉक और f-ब्लॉक तत्वों के गुणों का वर्णन कीजिए और उन्हें आवर्त सारणी में उनकी स्थिति के आधार पर समझाइए।
उत्तर:
d-ब्लॉक तत्व आवर्त सारणी के समूह 3 से 12 के बीच स्थित होते हैं। ये तत्व अपने आंतरिक d-कक्ष में इलेक्ट्रॉन जोड़ते हैं और इन्हें ट्रांज़िशन एलिमेंट्स कहा जाता है। इन तत्वों के सामान्य गुण निम्नलिखित हैं:
ये धात्विक होते हैं और उच्च घनत्व और उच्च गलनांक प्रदर्शित करते हैं।
ये तत्व रंगीन आयन बनाते हैं और इनमें वैलेंसी की परिवर्तनीयता होती है।
ये परमाणुओं और आयनों के रूप में पेरामैग्नेटिक होते हैं।
ये अच्छे उत्प्रेरक होते हैं।
f-ब्लॉक तत्व आवर्त सारणी के नीचे के दो पंक्तियों में स्थित होते हैं, जिन्हें लैंथेनाइड और एक्टिनाइड श्रृंखला कहा जाता है। इनमें अंतिम इलेक्ट्रॉन f-कक्ष में प्रवेश करता है। इनके सामान्य गुण निम्नलिखित हैं:
ये धात्विक होते हैं और उच्च गलनांक प्रदर्शित करते हैं।
इनमें ऑक्सीडेशन अवस्था की अधिकता होती है, विशेष रूप से एक्टिनाइड्स में।
एक्टिनाइड्स रेडियोधर्मी होते हैं और इनमें कई तत्व मानव निर्मित होते हैं।
आवर्त सारणी में इनकी स्थिति और गुण इस बात को दर्शाते हैं कि ये तत्व स-ब्लॉक और प-ब्लॉक के तत्वों के बीच एक सेतु का कार्य करते हैं और इनमें कुछ विशेष रासायनिक प्रतिक्रियाएँ होती हैं।
प्रश्न 11: आधुनिक आवर्त सारणी में तत्वों को वर्गीकृत करने के चार ब्लॉक्स (s-ब्लॉक, p-ब्लॉक, d-ब्लॉक, और f-ब्लॉक) के गुण और उनकी विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
आधुनिक आवर्त सारणी में तत्वों को चार प्रमुख ब्लॉक्स में वर्गीकृत किया जाता है: s-ब्लॉक, p-ब्लॉक, d-ब्लॉक, और f-ब्लॉक। प्रत्येक ब्लॉक के तत्वों की अपनी विशेषताएँ होती हैं:
s-ब्लॉक तत्व:
गुण: ये तत्व समूह 1 (अल्कली धातु) और समूह 2 (अल्कलाइन पृथ्वी धातु) में स्थित होते हैं। इनका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास \(ns^1\) (समूह 1) या \(ns^2\) (समूह 2) होता है। ये तत्व उच्च प्रतिक्रियाशील होते हैं और सामान्यतः एकल धनात्मक आयन (\(M^+ या M^{2+}\)) बनाते हैं।
विशेषताएँ: ये धात्विक होते हैं, कम आयनीकरण ऊर्जा और उच्च प्रतिक्रिया क्षमता प्रदर्शित करते हैं। इनका गलनांक और उबालांक अपेक्षाकृत कम होता है।
p-ब्लॉक तत्व:
गुण: ये तत्व समूह 13 से 18 तक के तत्व होते हैं। इनका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास \(ns^2np^1\) से \(ns^2np^6\) तक होता है। ये तत्व विभिन्न प्रकार की रासायनिक प्रतिक्रियाओं में भाग लेते हैं और अनेक अयस्कों का निर्माण करते हैं।
विशेषताएँ: इनमें धात्विक, अधात्विक, और अर्धधात्विक तत्व शामिल होते हैं। ये तत्व अधिकतर अयनीकरण अवस्था में होते हैं और उनमें भिन्न-भिन्न विद्युत ऋणात्मकता होती है।
d-ब्लॉक तत्व (Transition Elements):
गुण: ये तत्व समूह 3 से 12 में स्थित होते हैं। इनका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास \((n-1)d^{1–¹⁰}ns^2\) होता है। इन तत्वों के आयन रंगीन होते हैं और इनमें वैरिएबल ऑक्सीडेशन स्टेट्स होते हैं।
विशेषताएँ: ये धात्विक होते हैं, उच्च गलनांक और उबालांक होते हैं, और अक्सर उत्प्रेरक के रूप में काम करते हैं। इनमें पेरामैग्नेटिज़्म की प्रवृत्ति होती है।
f-ब्लॉक तत्व (Inner Transition Elements):
गुण: ये तत्व दो श्रृंखलाओं में विभाजित होते हैं: लैंथेनाइड्स (Ce से Lu तक) और एक्टिनाइड्स (Th से Lr तक)। इनका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास \((n-2)f^{¹–¹⁴}(n-1)d⁰^{–¹}ns^2\) होता है।
विशेषताएँ: ये तत्व उच्च घनत्व और उच्च गलनांक वाले होते हैं। एक्टिनाइड्स में रेडियोधर्मी गुण होते हैं, और लैंथेनाइड्स में भी विशेष गुण होते हैं।
प्रश्न 12: तत्वों की आवर्तिक प्रवृत्तियों को समझाने के लिए आप किस प्रकार के प्रयोग कर सकते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
तत्वों की आवर्तिक प्रवृत्तियों को समझाने के लिए विभिन्न प्रयोग किए जा सकते हैं, जिनसे तत्वों के भौतिक और रासायनिक गुणों का मूल्यांकन किया जा सकता है:
आयनीकरण ऊर्जा मापना:
उदाहरण: सोडियम (Na) और मैग्नीशियम (Mg) के आयनीकरण ऊर्जा का माप करके उनकी प्रवृत्तियों का अध्ययन किया जा सकता है। आयनीकरण ऊर्जा में वृद्धि बाएँ से दाएँ आवर्त सारणी में देखी जाती है। इसके लिए प्रयोगशाला में आयनीकरण ऊर्जा को मापने के लिए विशेष उपकरणों का उपयोग किया जाता है।
इलेक्ट्रॉन गेन एंथाल्पी परीक्षण:
उदाहरण: फ्लोरीन (F) और ऑक्सीजन (O) के इलेक्ट्रॉन गेन एंथाल्पी को मापकर उनके तत्वों की प्रवृत्तियों का अध्ययन किया जा सकता है। इससे पता चलता है कि इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति आवर्त सारणी में बाएँ से दाएँ बढ़ती है।
धात्विक और अधात्विक गुणों की तुलना:
उदाहरण: लोहा (Fe) और सल्फर (S) के धात्विक और अधात्विक गुणों की तुलना करके उनकी भौतिक और रासायनिक गुणों में परिवर्तन को समझा जा सकता है। धात्विक गुण जैसे कि विद्युत और ऊष्मा का संचलन, और अधात्विक गुण जैसे कि इलेक्ट्रॉन प्राप्त करने की प्रवृत्ति की तुलना की जाती है।
धात्विक और अधात्विक गुणों के प्रयोग:
उदाहरण: सोडियम (Na) और क्लोरीन (Cl) के साथ पानी और अम्ल की प्रतिक्रियाओं का परीक्षण करके उनके धात्विक और अधात्विक गुणों को देखा जा सकता है। सोडियम पानी के साथ तीव्र प्रतिक्रिया करता है और क्लोरीन अम्ल के साथ प्रतिक्रिया करता है, जिससे उनकी धात्विक और अधात्विक प्रवृत्तियों का मूल्यांकन किया जा सकता है।
प्रश्न 13: तत्वों की ऑक्सीडेशन अवस्था और संयोजकता के बीच संबंध को स्पष्ट कीजिए। इसके साथ, कुछ उदाहरणों के साथ समझाइए।
उत्तर:
ऑक्सीडेशन अवस्था और संयोजकता (valency) तत्वों के रसायनशास्त्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं:
ऑक्सीडेशन अवस्था:
विवरण: ऑक्सीडेशन अवस्था उस आवेश को दर्शाती है जो किसी तत्व के परमाणु को एक यौगिक में प्राप्त या खोए हुए इलेक्ट्रॉनों के आधार पर होता है। यह तत्व की आयनीकरण क्षमता और रासायनिक व्यवहार को प्रकट करती है।
उदाहरण: ऑक्सीजन की सामान्य ऑक्सीडेशन अवस्था -2 होती है, जबकि सोडियम की +1 होती है।
संयोजकता:
विवरण: संयोजकता वह संख्या है जो दर्शाती है कि एक परमाणु कितने अन्य परमाणुओं के साथ बंध सकता है। यह सामान्यतः तत्व की बाहरी इलेक्ट्रॉनिक संरचना पर निर्भर करती है।
उदाहरण: कार्बन (C) की संयोजकता 4 होती है क्योंकि यह चार बंध बना सकता है (जैसे CH₄ में)।
संबंध:
ऑक्सीडेशन अवस्था और संयोजकता के बीच संबंध यह है कि ऑक्सीडेशन अवस्था को तत्व की इलेक्ट्रॉन की कमी या अधिशेष के रूप में देखा जा सकता है, जो उसके संयोजकता की प्रकृति को भी दर्शाता है।
उदाहरण:
सोडियम (Na): सोडियम की ऑक्सीडेशन अवस्था +1 होती है, और इसकी संयोजकता भी 1 होती है, क्योंकि यह एक इलेक्ट्रॉन खो देता है।
ऑक्सीजन (O): ऑक्सीजन की सामान्य ऑक्सीडेशन अवस्था -2 होती है, और इसकी संयोजकता 2 होती है, क्योंकि यह दो इलेक्ट्रॉन प्राप्त करता है।
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