ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल
प्रश्न 1: कार्बोनिल यौगिकों में न्यूक्लियोफिलिक अभिक्रिया कैसे होती है? इसकी प्रक्रिया का वर्णन करें और इसके कुछ उदाहरण दें।
उत्तर:
कार्बोनिल यौगिकों में न्यूक्लियोफिलिक अभिक्रिया मुख्य रूप से कार्बोनिल समूह (C=O) पर होती है। यह प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में संपन्न होती है:
1. न्यूक्लियोफाइल (\(Nu^-\)) कार्बोनिल कार्बन (जो आंशिक रूप से धनात्मक होता है) पर हमला करता है।
2. यह हमला कार्बन के स्प2 हाइब्रिडाइजेशन को स्प3 में बदल देता है, जिससे एक टेट्राहेड्रल इंटरमीडिएट बनता है।
3. यह इंटरमीडिएट प्रोटॉन को पकड़कर एक न्यूट्रल उत्पाद बनाता है।
उदाहरण: (i) हाइड्रोजन साइनाइड (HCN) का योग: एल्डिहाइड्स और कीटोन्स हाइड्रोजन साइनाइड के साथ प्रतिक्रिया करते हैं और साइनोहाइड्रिन्स का निर्माण करते हैं। (ii) सोडियम हाइड्रोजनसल्फाइट (\(NaHSO_3\)) का योग: सोडियम हाइड्रोजनसल्फाइट एल्डिहाइड्स और कीटोन्स के साथ मिलकर जल में घुलनशील यौगिक बनाते हैं।
प्रश्न 2: एल्डोल संघनन (Aldol Condensation) क्या है? इसका सिद्धांत समझाएं और एक उपयुक्त उदाहरण दें।
उत्तर:
एल्डोल संघनन एक रासायनिक अभिक्रिया है जिसमें कम से कम एक α-हाइड्रोजन वाले एल्डिहाइड या कीटोन क्षार की उपस्थिति में β-हाइड्रॉक्सी एल्डिहाइड (एल्डोल) या β-हाइड्रॉक्सी कीटोन (केटोल) बनाता है। यह प्रक्रिया एल्डिहाइड और अल्कोहल शब्दों से ‘एल्डोल’ नामक उत्पाद का निर्माण करती है।
उदाहरण: एथनल और प्रोपनल का मिश्रण क्षार की उपस्थिति में निम्नलिखित प्रकार से प्रतिक्रिया करता है: \(CH_3CHO + CH_3CH_2CHO → CH_3CH(OH)CH_2CHO\) इस प्रक्रिया के दौरान, एक β-हाइड्रॉक्सी एल्डिहाइड बनता है, जो पानी की हानि के बाद α,β-असंतृप्त कार्बोनिल यौगिक में परिवर्तित हो जाता है।
प्रश्न 3: कार्बोक्जिलिक अम्लों की अम्लीयता पर इलेक्ट्रॉन खींचने और दान करने वाले समूहों का क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
कार्बोक्जिलिक अम्लों की अम्लीयता को उनके संरचनात्मक समूहों द्वारा प्रभावित किया जा सकता है:
इलेक्ट्रॉन खींचने वाले समूह (EWG): ये समूह, जैसे कि -NO2, -Cl, -CN, अम्ल की अम्लीयता को बढ़ाते हैं क्योंकि वे कार्बोक्जिलेट आयन को स्थिर करते हैं।
इलेक्ट्रॉन दान करने वाले समूह (EDG): ये समूह, जैसे कि -CH3, -OCH3, अम्ल की अम्लीयता को कम करते हैं क्योंकि वे कार्बोक्जिलेट आयन को अस्थिर करते हैं।
इस प्रकार, जैसे-जैसे इलेक्ट्रॉन खींचने वाले समूह कार्बोक्जिलिक अम्ल की संरचना में उपस्थित होते हैं, वैसे-वैसे उनकी अम्लीयता बढ़ती जाती है। इसके विपरीत, इलेक्ट्रॉन दान करने वाले समूह अम्लीयता को घटाते हैं।
प्रश्न 4: एल्डिहाइड और कीटोन के प्रमुख भौतिक गुणों पर चर्चा करें।
उत्तर:
एल्डिहाइड और कीटोन के भौतिक गुण उनके संरचनात्मक गुणों पर निर्भर करते हैं:
- उबलने का बिंदु: एल्डिहाइड और कीटोन की उबलने की बिंदु उनके समान अणुभार वाले हाइड्रोकार्बन और ईथर से अधिक होती है, क्योंकि इनके अणुओं के बीच डाइपोल-डाइपोल आकर्षण होता है। हालांकि, इनके उबलने के बिंदु शराबों की तुलना में कम होते हैं।
- जल में घुलनशीलता: एल्डिहाइड और कीटोन के निचले सदस्य जल में अधिक घुलनशील होते हैं क्योंकि ये जल के साथ हाइड्रोजन बंधन बनाते हैं। जैसे-जैसे अल्काइल श्रृंखला की लंबाई बढ़ती है, घुलनशीलता घटती जाती है।
- गंध: निचले एल्डिहाइड की गंध तीव्र और तीखी होती है, जबकि उच्च सदस्य अधिक सुगंधित होते हैं और इनका उपयोग इत्र और स्वादवर्धक के रूप में होता है।
प्रश्न 5: हैल-वोल्हार्ड-ज़ेलिंस्की प्रतिक्रिया (Hell-Volhard-Zelinsky Reaction) क्या है? इसे उदाहरण सहित समझाएं।
उत्तर:
हैल-वोल्हार्ड-ज़ेलिंस्की प्रतिक्रिया एक विशिष्ट रासायनिक प्रक्रिया है जिसमें α-हाइड्रोजन वाले कार्बोक्जिलिक अम्लों का हैलोजनकरण होता है। इस प्रक्रिया में क्लोरीन या ब्रोमीन का उपयोग करते हुए कार्बोक्जिलिक अम्ल के α-स्थिति पर हैलोजन का स्थानापन्न किया जाता है।
उदाहरण: एसीटिक अम्ल का ब्रोमीन और लाल फास्फोरस की उपस्थिति में ब्रोमोएसीटिक अम्ल में परिवर्तन इस प्रकार होता है:
इस प्रकार, हैल-वोल्हार्ड-ज़ेलिंस्की प्रतिक्रिया कार्बोक्जिलिक अम्लों में हैलोजन के संयोग के लिए उपयोगी है।
प्रश्न 6: एल्डिहाइड और कीटोन के रासायनिक गुणों पर प्रकाश डालें। विशेष रूप से न्यूक्लियोफिलिक योग अभिक्रियाओं का वर्णन करें।
उत्तर:
एल्डिहाइड और कीटोन के रासायनिक गुण मुख्यतः उनके कार्बोनिल समूह के कारण होते हैं। ये यौगिक न्यूक्लियोफिलिक योग अभिक्रियाओं में भाग लेते हैं, जो इनकी प्रमुख अभिक्रियाएं हैं।
न्यूक्लियोफिलिक योग अभिक्रियाएँ:
HCN का योग:
एल्डिहाइड और कीटोन हाइड्रोजन साइनाइड के साथ मिलकर साइनोहाइड्रिन्स का निर्माण करते हैं। यह प्रतिक्रिया निम्नलिखित प्रकार से होती है:
RCHO + HCN → RCH(OH) CN
इस अभिक्रिया के उत्पाद साइनोहाइड्रिन्स विभिन्न जैविक और औद्योगिक संश्लेषण में महत्वपूर्ण होते हैं।
सोडियम हाइड्रोजनसल्फाइट (\(NaHSO_3\))का योग:
एल्डिहाइड और कीटोन सोडियम हाइड्रोजनसल्फाइट के साथ मिलकर जल में घुलनशील उत्पाद बनाते हैं। यह अभिक्रिया न्यूक्लियोफिलिक योग का एक और उदाहरण है और इसका उपयोग एल्डिहाइड और कीटोन को शुद्ध करने के लिए किया जाता है।
ग्रिग्नार्ड अभिकारक (Grignard Reagent) का योग:
ग्रिग्नार्ड अभिकारक एल्डिहाइड और कीटोन के साथ मिलकर अल्कोहल का निर्माण करते हैं। उदाहरण के लिए:
RCHO + RMgX → RCH(OH)R’
इस अभिक्रिया से द्वितीयक और तृतीयक अल्कोहल प्राप्त होते हैं।
रेअक्टिविटी का तुलनात्मक अध्ययन:
एल्डिहाइड्स, कीटोन की तुलना में अधिक क्रियाशील होते हैं, क्योंकि एल्डिहाइड्स में कार्बोनिल कार्बन के साथ केवल एक ही बड़ा समूह होता है, जबकि कीटोन में दो बड़े समूह होते हैं, जो न्यूक्लियोफाइल के हमले में अवरोध उत्पन्न करते हैं।
प्रश्न 7: एल्डिहाइड्स और कीटोन की ऑक्सीकरण अभिक्रियाओं का वर्णन करें। इनकी मदद से एल्डिहाइड्स और कीटोन के बीच भेद कैसे किया जा सकता है?
उत्तर:
एल्डिहाइड्स और कीटोन की ऑक्सीकरण अभिक्रियाएँ विभिन्न ऑक्सीकरण अभिकारकों के साथ होती हैं। एल्डिहाइड्स अपेक्षाकृत आसानी से कार्बोक्जिलिक अम्लों में ऑक्सीकरण हो जाते हैं, जबकि कीटोन का ऑक्सीकरण कठिनाई से होता है और यह कार्बन-कार्बन बंध के टूटने के साथ होता है।
ऑक्सीकरण अभिक्रियाएँ:
टॉलेंस अभिक्रिया (Tollens’ Test):
एल्डिहाइड्स टॉलेंस के अभिकारक के साथ क्रिया कर चमकदार चांदी का दर्पण उत्पन्न करते हैं, जबकि कीटोन इस अभिक्रिया को नहीं दिखाते। यह अभिक्रिया एल्डिहाइड्स और कीटोन में भेद करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है।
RCHO + 2\([Ag(NH_3)_2]^+ + 30H^- → RCOO^- + 2Ag + 4NH_3 + 2H_2O\)
फेलिंग्स अभिक्रिया (Fehling’s Test):
एल्डिहाइड्स फेलिंग्स अभिकारक के साथ प्रतिक्रिया कर लाल रंग के कॉपर(I) ऑक्साइड का अवक्षेप देते हैं, जबकि कीटोन इस परीक्षण में कोई अवक्षेप नहीं देते।
\(RCHO + 2Cu^{2+} + 5OH^{-} → RCOO^{-} + Cu_2O(s) + 3H_2O\)कीटोन का ऑक्सीकरण:
कीटोन का ऑक्सीकरण अधिक कठोर परिस्थितियों में होता है और यह कार्बन-कार्बन बंध टूटने के साथ विभिन्न कार्बोक्जिलिक अम्लों का निर्माण करता है। उदाहरण के लिए:
प्रश्न 8: कार्बोक्जिलिक अम्लों की तैयारी की विभिन्न विधियों का वर्णन करें।
उत्तर:
कार्बोक्जिलिक अम्लों की तैयारी के लिए विभिन्न विधियाँ उपयोग की जाती हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:
प्राथमिक अल्कोहल और एल्डिहाइड का ऑक्सीकरण:
कार्बोक्जिलिक अम्लों को प्राथमिक अल्कोहल और एल्डिहाइड के ऑक्सीकरण से तैयार किया जा सकता है। इसके लिए पोटैशियम परमैंगनेट (\(KMnO_4\)) या पोटैशियम डाइक्रोमेट (\(K_2Cr_2O_7\)) का उपयोग किया जाता है।
नाइट्राइल और एमाइड्स का हाइड्रोलिसिस:
नाइट्राइल्स का हाइड्रोलिसिस करके कार्बोक्जिलिक अम्ल प्राप्त किया जा सकता है। यह अभिक्रिया निम्नलिखित प्रकार से होती है:
\(RCN + 2H_2O → RCONH_2 → RCOOH\)
ग्रिग्नार्ड अभिकारक के साथ कार्बन डाइऑक्साइड की प्रतिक्रिया:
ग्रिग्नार्ड अभिकारक कार्बन डाइऑक्साइड के साथ प्रतिक्रिया कर कार्बोक्जिलिक अम्ल का निर्माण करते हैं।
\(RMgX + CO_2 → RCOOMgX → RCOOH\)
एसिड क्लोराइड्स और एन्हाइड्राइड्स का हाइड्रोलिसिस:
एसिड क्लोराइड्स और एन्हाइड्राइड्स के हाइड्रोलिसिस से भी कार्बोक्जिलिक अम्ल तैयार किया जा सकता है।
\(RCOCl + H_2O → RCOOH + HCl\)प्रश्न 9: कार्बोक्जिलिक अम्लों की अम्लीयता के कारक क्या हैं? इसका विस्तृत वर्णन करें।
उत्तर:
कार्बोक्जिलिक अम्लों की अम्लीयता उनके रचना और उनके संरचनात्मक समूहों पर निर्भर करती है। उनके अम्लीयता को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं:
रेज़ोनेंस स्थिरीकरण:
कार्बोक्जिलिक अम्लों के अम्लीयता का प्रमुख कारण उनके कार्बोक्जिलेट आयन का रेज़ोनेंस स्थिरीकरण है। इस प्रक्रिया में, आयन की नकारात्मक चार्ज दो ऑक्सीजन परमाणुओं में विभाजित हो जाती है, जिससे अम्लीयता बढ़ती है।
इलेक्ट्रॉन खींचने वाले समूह:
इलेक्ट्रॉन खींचने वाले समूह (जैसे \(-NO_2, – Cl\)) कार्बोक्जिलेट आयन की स्थिरता बढ़ाते हैं और अम्लीयता को बढ़ाते हैं।
इलेक्ट्रॉन दान करने वाले समूह:
इलेक्ट्रॉन दान करने वाले समूह (जैसे \(-CH_3, – OCH_3\)) कार्बोक्जिलेट आयन की स्थिरता को घटाते हैं और अम्लीयता को कम करते हैं।
स्पेशल केस:
जब कार्बोक्जिल समूह सीधे फिनाइल या विनाइल समूह से जुड़ा होता है, तो अम्लीयता अपेक्षित रूप से बढ़ जाती है। यह स्प² हाइब्रिडाइज्ड कार्बन की अधिक इलेक्ट्रोनगेटिविटी के कारण होता है।
प्रश्न 10: कार्बोक्जिलिक अम्लों में हैलोजन के स्थानापन्न की प्रक्रिया को विस्तार से समझाएं।
उत्तर:
कार्बोक्जिलिक अम्लों में α-हाइड्रोजन वाले समूहों पर हैलोजन का स्थानापन्न एक महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया है जिसे हेल-वोल्हार्ड-ज़ेलिंस्की प्रतिक्रिया (Hell-Volhard-Zelinsky Reaction) कहा जाता है। इस प्रतिक्रिया में कार्बोक्जिलिक अम्ल के α-स्थिति पर हैलोजन का स्थानापन्न किया जाता है।
हैल-वोल्हार्ड-ज़ेलिंस्की प्रतिक्रिया का तंत्र:
इस प्रतिक्रिया में, कार्बोक्जिलिक अम्ल को पहले PCl₃ के साथ उपचारित किया जाता है, जिससे एसिड क्लोराइड बनता है। इसके बाद, हैलोजन (जैसे क्लोरीन या ब्रोमीन) को लाल फास्फोरस के साथ मिलाकर प्रतिक्रिया कराई जाती है, जिससे α-स्थिति पर हैलोजन का स्थानापन्न होता है।
अभिक्रिया इस प्रकार होती है:
इस अभिक्रिया का परिणाम ब्रोमोएसीटिक अम्ल का निर्माण होता है।
महत्व:
यह अभिक्रिया उन कार्बोक्जिलिक अम्लों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो अन्य पारंपरिक अभिक्रियाओं के माध्यम से हैलोजनीकरण नहीं कर सकते।
इस प्रक्रिया का उपयोग फिनाइलऐसेटिक अम्ल और अन्य सुगंधित अम्लों के संश्लेषण में किया जाता है।
प्रश्न 11: कार्बोक्जिलिक अम्लों का डिकार्बोक्सिलेशन (Decarboxylation) प्रक्रिया क्या है? इस प्रक्रिया का वर्णन करें और इसके उदाहरण दें।
उत्तर:
डिकार्बोक्सिलेशन वह प्रक्रिया है जिसमें कार्बोक्जिलिक अम्लों के सोडियम लवण को सोडालाइम (NaOH और CaO के मिश्रण) के साथ ऊष्मा देने पर कार्बन डाइऑक्साइड (\(CO_2\)) का निष्कासन होता है और एक हाइड्रोकार्बन का निर्माण होता है। यह प्रतिक्रिया कार्बन-कार्बन बंध को तोड़कर कार्बन परमाणुओं की संख्या में एक की कमी करती है।
डिकार्बोक्सिलेशन का तंत्र:
डिकार्बोक्सिलेशन में कार्बोक्जिलिक अम्लों के सोडियम लवण को सोडालाइम के साथ ऊष्मा देने पर कार्बन डाइऑक्साइड मुक्त होती है और एक अल्केन का निर्माण होता है:
\(RCOONa + NaOH → RH + Na_2CO_3\)उदाहरण:
सोडियम एसीटेट का डिकार्बोक्सिलेशन: \(CH_3COONa + NaOH → CH_4 + Na_2CO_3\)
इस प्रतिक्रिया में, एसीटिक अम्ल का सोडियम लवण (सोडियम एसीटेट) मिथेन (\(CH_4\)) में परिवर्तित हो जाता है।
सोडियम बेन्ज़ोएट का डिकार्बोक्सिलेशन: \(C_6H_5COONa + NaOH → C_6H_6 + Na_2CO_3\)
इस प्रतिक्रिया में, सोडियम बेन्ज़ोएट का डिकार्बोक्सिलेशन करके बेंजीन प्राप्त किया जाता है।
महत्व:
डिकार्बोक्सिलेशन प्रतिक्रिया का उपयोग कार्बोक्जिलिक अम्लों से कार्बन की संख्या में कमी करने के लिए किया जाता है। यह प्रक्रिया औद्योगिक रासायनिक संश्लेषण और जैविक रसायन विज्ञान में महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 12: एल्डोल और क्रॉस एल्डोल संघनन (Aldol and Cross Aldol Condensation) के बीच क्या अंतर है? इनकी प्रक्रियाओं को उदाहरण सहित समझाएं।
उत्तर:
एल्डोल संघनन और क्रॉस एल्डोल संघनन दोनों ही न्यूक्लियोफिलिक संघनन अभिक्रियाएँ हैं, लेकिन इन दोनों में अंतर यह है कि एल्डोल संघनन एक ही प्रकार के एल्डिहाइड या कीटोन के बीच होती है, जबकि क्रॉस एल्डोल संघनन विभिन्न एल्डिहाइड्स या कीटोन के बीच होती है।
एल्डोल संघनन:
यह प्रक्रिया तब होती है जब एक ही प्रकार का एल्डिहाइड या कीटोन क्षार की उपस्थिति में संघनित होकर β-हाइड्रॉक्सी एल्डिहाइड या β-हाइड्रॉक्सी कीटोन बनाता है।
इस प्रतिक्रिया में, एथनाल संघनित होकर 3-हाइड्रॉक्सीब्यूटनल (एल्डोल) और फिर 2-ब्यूटेनल में परिवर्तित हो जाता है।
क्रॉस एल्डोल संघनन:
यह प्रतिक्रिया तब होती है जब दो अलग-अलग एल्डिहाइड्स या कीटोन एक-दूसरे के साथ क्षार की उपस्थिति में प्रतिक्रिया करते हैं। इस प्रतिक्रिया में चार संभावित उत्पाद बन सकते हैं।
इस प्रतिक्रिया में, एथनाल और प्रोपनल के बीच संघनन होता है, जिससे मिश्रित एल्डोल और क्रॉस एल्डोल संघनन उत्पाद बनते हैं।
महत्व:
एल्डोल और क्रॉस एल्डोल संघनन प्रतिक्रियाएँ जैविक और औद्योगिक रसायन विज्ञान में महत्वपूर्ण हैं। ये प्रक्रियाएँ कार्बोनिल यौगिकों से जटिल अणुओं के निर्माण में सहायक होती हैं।
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