Notes For All Chapters Sanskrit Class 8
मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः सरलार्थ
(क) चल चल पुरतो निधेहि चरणम्।
सदैव पुरतो निधेहि चरणम्॥
गिरिशिखरे ननु निजनिकेतनम्।
विनैव यानं नगारोहणम्॥
बलं स्वकीयं भवति साधनम्।
सदैव पुरतो …………॥
अन्वयः-
चल, चल । पुरतः चरणं निधेहि। सदैव पुरतः चरणम् निधेहि। ननु निजनिकेतनं गिरिशिखरे (अस्ति)। (अत:) यानं विना एव नगारोहणं (कुरु)। स्वकीयं बलं साधनं भवति। सदैव पुरतः चरणम् निधेहि।
शब्दार्थ-
चल-चलो।
निधेहि-रखो।
ननु-निश्चय से
पुरतः-आगे।
गिरिशिखरे-पर्वत की चोटी पर।
चरणम्-कदम, पग।
निकेतनम्-घर।
यानम्-सवारी।
स्वकीयम्-अपना।
साधनम्-माध्यम।
निज०-अपना।
विनैव-बिना ही।
सदैव-हमेशा ही।
सरलार्थ-
चलो, चलो। आगे चरण रखो। सदा ही आगे कदम रखो। निश्चय ही अपना घर पर्वत की चोटी पर है। अतः सवारी के बिना ही पर्वत पर चढ़ना है। अपना बल ही साधन होता है। इसलिए सदा कदम आगे बढ़ाओ।
(ख) पथि पाषाणाः विषमाः प्रखराः।
हिंस्राः पशवः परितो घोराः॥
सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम्।
सदैव पुरतो ……………॥
अन्वयः-
पथि विषमाः प्रखराः (च) पाषाणाः (विद्यन्ते)। परितः घोराः हिंस्राः पशवः (सन्ति) । यद्यपि गमनं खलु सुदुष्करम् (अस्ति, तथापि) सदैव पुरतः चरणं निधेहि।
शब्दार्थ-
पथि-मार्ग में।
विषमाः-विषम।
हिंस्त्राः-हिंसक
घोराः- भयानक
गमनम्-गमन
सुदुष्करम्-अत्यधिक कठिनाई से सिद्ध होने वाला।
पाषाणाः-पत्थर।
प्रखराः-तीक्ष्ण (नुकीले)
परितः-चारों ओर।
सरलार्थ-
मार्ग में विचित्र से ऊबड़-खाबड़ तथा नुकीले पत्थर हैं। चारों ओर भयंकर व हिंसक पशु हैं। यद्यपि वहाँ जाना निश्चय ही अत्यंत कठिन है, (फिर भी) सदा कदम आगे बढ़ाओ।
(ग) जहीहि भीतिं भज-भज शक्तिम्।
विधेहि राष्ट्रे तथाऽनुरक्तिम्॥
कुरु कुरु सततं ध्येय-स्मरणम्।
सदैव पुरतो ………….||
अन्वयः-
भीतिं जहीहि । शक्तिं भज, भज। तथा राष्ट्रे अनुरक्तिं विधेहि। ध्येय-स्मरणं सततं कुरु, कुरु। सदैव पुरतः चरणं निधेहि।
शब्दार्थ-
जहीहि-त्याग करो (छोड़ दो)।
भज-जपो
अनुरक्तिम्-प्रेम।
ध्येय-लक्ष्य, उद्देश्य।
भीतिम्-डर को।
विधेहि-करो।
सततम्-निरन्तर।
सरलार्थ-
डर का त्याग करो। शक्ति का सेवन करो। उसी प्रकार राष्ट्र से प्रेम करो और निरन्तर अपने लक्ष्य का स्मरण करो। सदा कदम आगे बढ़ाओ।
Thank you so much