राधिका इन दिनों लगातार खुशी से कूदती-फिरती रहती है क्योंकि घर में नए मेहमान आए हैं। वे बहुत खास हैं। माँ, दो बेटे और दो बेटियाँ, मिलाकर वे पाँच हैं। दिन-रात राधिका का ध्यान एक ही जगह रहता है – घर की छत पर। वहीं उसका मन अटका हुआ है। उसे यह जानने की जिज्ञासा है कि वे कौन हैं। वे कोई और नहीं बल्कि एक बिल्ली और उसके चार बच्चे हैं। हाँ, यही हैं वे खास मेहमान। उसने उनके नाम भी सोच लिए हैं – तन्वी, मृद्वी, शबल और भीम।
तन्वी आकार में सुंदर है, मृद्वी स्पर्श में बेहद मुलायम है। शबल का रंग चित्तीदार है और भीम थोड़ा मोटा है। राधिका को पता है कि बिल्ली कब जाती है और कब लौटती है। वह बिल्ली को दूध देती है, और बिल्ली पीती है। फिर बिल्ली धन्यवाद के साथ राधिका को देखती है। लेकिन जब राधिका बिल्ली के बच्चों के पास जाती है, तो बिल्ली धीरे-धीरे उसके पीछे चलने लगती है। राधिका को देखकर बच्चे डरते नहीं हैं। राधिका की दादी उसकी इन क्रियाओं को देखकर हंसती हैं।
वह राधिका से कहती है, “राधिका! हमें यह नहीं पता कि मेहमान कब आते हैं, लेकिन जब वे आते हैं, तो उनकी इसी तरह सेवा करनी चाहिए।” राधिका, दादी के गले में मालाएं डालते हुए पूछती है, “ठीक है, मैं ऐसा करूँगी, लेकिन क्यों?” दादी कहती हैं, “अतिथिदेवो भव,” अर्थात अतिथि को देवता मानो और उसकी आदरपूर्वक सेवा करो। राधिका इस मंत्र को बार-बार दोहराती है – “अतिथिदेवो भव, अतिथिदेवो भव।” फिर वह प्यार से तन्वी, मृद्वी, शबल और भीम से कहती है, “तुम लोग जानते हो? अतिथिदेवो भव। तुम सब भी कहो – ‘अतिथिदेवो भव’।”
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