माधवस्य प्रियम्अङ् गम
माधव नाम का एक लड़का था।”
उसने स्वप्न में अपने शरीर के अंगों को देखा।
वे आपस में चर्चा कर रहे थे।
पैर कहता है – मैं श्रेष्ठ हूँ।
मेरे कारण माधव चलता है।
हाथ तुरंत कहता है – अरे, अरे! मेरे कारण ही माधव लिखता है, घर का काम करता है, और वस्तुएँ लाता है। इसलिए मैं ही श्रेष्ठ हूँ।
मुझ बिन माधव कुछ भी देख सकता है क्या? ऐसा आँखें कहती हैं।
कान मुस्कुराकर कहता है – जब माधव रास्ते पर चलता है और पीछे से आती गाड़ियों की आवाज नहीं सुनता, तब सावधान नहीं रहा, और दुर्घटना हो सकती है।
माधव मेरे कारण ही शिक्षक की बातें सुनकर ज्ञान बढ़ाता है और संगीत सुनकर आनंद अनुभव करता है।
तभी मुँह बोलता है – ‘अरे! सब सुनो, माधव मेरे कारण ही भोजन करता है, बोलता है, और शिक्षक के सवालों का जवाब देता है।
मेरी मदद से पेट भी भोजन प्राप्त करता है, और आप सब शक्तिशाली रहते हैं। इसलिए मैं ही श्रेष्ठ हूँ।
पेट कहता है – ‘ठीक है, ठीक है, शोर मत करो। हम सब माधव से ही पूछते हैं, कौन श्रेष्ठ है।’
माधव सोचता है और समझाता है –
‘मेरे शरीर के सभी अंग मेरे लिए उपयोगी हैं। मैं आँखों से देखता हूँ, कानों से सुनता हूँ, मुँह से बोलता हूँ और भोजन करता हूँ, पेट से पाचन करके शक्ति प्राप्त करता हूँ, और पैरों से चलता हूँ।
इसलिए आप सभी श्रेष्ठ हैं। आप सभी मेरे प्रिय हैं।’
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