सङ्ख्यागणना ननु सरला
– छात्रों! यहाँ आपकी कक्षा में कितने जन हैं?
– सुमित, विश्वनाथ, वीणा, उदिता, कमला, प्रीति, निरुपमा, प्रशान्त, देवेश और मैं हूँ।
– तो कितने छात्र हैं? गिनो।
– एक, एक, एक, एक एक एक ।
– अहो! आप संस्कृत से गिनती नहीं जानते हो । ठीक है, अब संख्या की गिनती पढ़ते हैं। मैं एक सुंदर संख्यागीत गाता हूँ। आप पीछे गाएँ ।
एक सूर्य है, एक ही चंद्रमा है,
मानव जाति भी एक ही है।
जीव के दो नेत्र होते हैं,
और इन्हीं से सभी कुछ देखा जा सकता है।
तीन नेत्रों वाली मूर्ति वाले भगवान् शंकर,
मैं उनको प्रतिदिन नमस्कार करता हूँ।
यह चार मुख वाले संसार के सृष्टिकर्त्ता ब्रह्मा,
उसी ने जीवों की रचना की है।
मेरे कमल रूपी हाथ में पाँच अंगुलियाँ हैं,
लोग इन्हीं के आधार पर गणना करते हैं।
षण्मुख देवता, जो देवताओं के सेनापति हैं,
निरंतर देवताओं का संरक्षण करते हैं।
सप्ताह के सात दिन होते हैं,
स्वर भी सात मधुर ध्वनियाँ होते हैं।
ऊपर और नीचे सात लोक माने जाते हैं,
और सात ऋषि प्रसिद्ध हैं।
आठ दिग्गज इस धरती को धारण करते हैं,
वे सहायता करने वाले और असीम बलशाली हैं।
नौ ग्रह विशाल आकाश में,
नियमित रूप से चलते रहते हैं।
दस दिशाएँ पूर्व से प्रसिद्ध हैं,
गणना सरल है।
हम अनंत आनंद से गाते हैं,
और अनेक प्रकार से ताली बजाते हैं।
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