पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि
छात्रा:! देखिए, आज मेरे हाथ में नोटिस बोर्ड के कागज हैं। श्रीमान! नोटिस बोर्ड पर क्या है? छात्रा:! इन नोटिस बोर्ड के कागजों को दीवार पर लगाइए और फिर खुद देखिए। श्रीमान! नोटिस बोर्ड पर सुंदर चित्र भी है। श्लोक भी लिखे हुए हैं। सच में, ये सजाए हुए हैं। सुंदर शब्द ही सभा को सजाते हैं। ये हमारे लिए अच्छे कार्यों की प्रेरणा देते हैं। श्रीमान! तो कब हम इन्हें पढ़ें?
श्लोक 1: पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम्।
मूढैः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते॥
पदच्छेद: पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलम् अन्नम् सुभाषितं मूढैः पाषाण – खण्डेषु रत्न – संज्ञा विधीयते।
अन्वय: पृथ्वी पर तीन रत्न होते हैं – जल, अन्न, और सुभाषित (अच्छे शब्द)। लेकिन मूर्ख लोग पत्थरों को रत्न समझते हैं।
भावार्थ: पृथ्वी पर तीन प्रमुख रत्न होते हैं – जल, अन्न और सुभाषित (अच्छे विचार)। लेकिन मूर्ख लोग पत्थरों के टुकड़ों को ही रत्न कहते हैं।
श्लोक 2: अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥
पदच्छेद: अयं निजः परः वा इति गणना लघुचेतसाम् उदारचरितानां तु वसुधा एव कुटुम्बकम्।
अन्वय: यह मेरा है, वह पराया है, ऐसा विचार केवल संकीर्ण मन वालों का होता है। उदार स्वभाव के लोगों के लिए सारी पृथ्वी ही परिवार है।
भावार्थ: “यह मेरा है, वह पराया है” ऐसा सोचने वाले लोग छोटे दिल के होते हैं। जबकि उदार हृदय वाले लोग पूरी पृथ्वी को ही अपना परिवार मानते हैं।
श्लोक 3: उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥
पदच्छेद: उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः न हि सुप्तस्य सिंहस्य मुखे मृगाः प्रविशन्ति।
अन्वय: कार्य उद्यम (परिश्रम) से ही सिद्ध होते हैं, इच्छाओं से नहीं। जैसे सोए हुए सिंह के मुख में मृग स्वयं प्रवेश नहीं करते।
भावार्थ: मेहनत करने से ही काम पूरे होते हैं, केवल इच्छा करने से नहीं। जैसे सोए हुए सिंह के मुख में हिरण खुद आकर नहीं घुसते।
श्लोक 4: अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्॥
पदच्छेद: अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुः विद्या यशः बलम्।
अन्वय: जो व्यक्ति सदैव बड़ों का आदर करता है और उनका सम्मान करता है, उसकी आयु, विद्या, यश और बल चारों बढ़ते हैं।
भावार्थ: जो व्यक्ति हमेशा बड़ों की सेवा और सम्मान करता है, उसकी आयु, विद्या, यश और बल बढ़ते हैं।
श्लोक 5: उद्यमः साहसं धैर्यं बुद्धिः शक्तिः पराक्रमः।
षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र देवः सहायकृत्॥
पदच्छेद: उद्यमः साहसं धैर्यं बुद्धिः शक्तिः पराक्रमः षड् एते यत्र वर्तन्ते तत्र देवः सहायकृत्।
अन्वय: जहां परिश्रम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम होते हैं, वहां भगवान भी सहायक होते हैं।
भावार्थ: जो व्यक्ति परिश्रम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम दिखाता है, उसकी मदद भगवान भी करते हैं।
श्लोक 6: विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम्।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम्॥
पदच्छेद: विद्या ददाति विनयं विनयात् याति पात्रतां पात्रत्वात् धनम् आप्नोति धनात् धर्मम् ततः सुखम्।
अन्वय: विद्या विनम्रता देती है, विनम्रता से पात्रता प्राप्त होती है, पात्रता से धन मिलता है, धन से धर्म और धर्म से सुख प्राप्त होता है।
भावार्थ: विद्या से विनम्रता मिलती है, विनम्रता से योग्य बनते हैं, योग्य होने पर धन प्राप्त होता है, और धन से धर्म व धर्म से सुख प्राप्त होता है।
No money study