Solutions For All Chapters Sanskrit Class 6
1. उच्चारणं कुरुत-
सूर्यस्तपतु | जीर्णम् | शीतकालेऽपि |
वारयितुम् | ग्रीष्मे | सस्यपूर्णानि |
पदत्राणे | कण्टकावृता | क्षुधा-तृषाकुलौ |
Ans .2: श्लोकांशान् योजयत-
क ख
गृहं जीर्णं न वर्षासु वृष्टिं वारयितुं क्षमम्।
हलेन च कुदालेन तौ तु क्षेत्राणि कर्षतः।
पादयोर्न पदत्राणे शरीरे वसनानि नो।
तयोः श्रमेण क्षेत्राणि सस्यपूर्णानि सर्वदा।
धरित्री सरसा जाता या शुष्का कण्टकावृता।
Hindi Translate
क
गृहं जीर्णं न वर्षासु — घर वर्षा के मौसम में जीर्ण हो जाता है।
हलेन च कुदालेन — हल और कुदाले से
पादयोर्न पदत्राणे — पाँवों के संरक्षण के लिए
तयोः श्रमेण क्षेत्राणि — उनके श्रम से खेत
धरित्री सरसा जाता — धरती हरी-भरी हो जाती है।
ख
वृष्टिं वारयितुं क्षमम्। — वर्षा को रोकने में सक्षम।
तौ तु क्षेत्राणि कर्षतः। — वे खेतों की जुताई करते हैं।
शरीरे वसनानि नो। — शरीर पर वस्त्र नहीं होते।
सस्यपूर्णानि सर्वदा। — हमेशा फसलों से भरे हुए।
या शुष्का कण्टकावृता। — जो सूखी और कांटों से ढकी हुई है।
Q.3: उपयुक्तकथनानां समक्षम् ‘आम्’ अनुपयुक्तकथनानां समक्षं ‘न’ इति लिखत-
यथा- कृषकाः शीतकालेऽपि कर्मठाः भवन्ति। — कृषक सर्दियों में भी मेहनती होते हैं। | आम् |
कृषकाः हलेन क्षेत्राणि न कर्षन्ति। — कृषक हल से खेतों की जुताई नहीं करते हैं। | न |
(क) कृषकाः सर्वेभ्यः अन्नं यच्छन्ति। — कृषक सभी को भोजन प्रदान करते हैं। | आम् |
(ख) कृषकाणां जीवनं कष्टप्रदं न भवति। — कृषकों का जीवन कठिन नहीं होता। | न |
(ग) कृषकः क्षेत्राणि सस्यपूर्णानि करोति। — कृषक खेतों को फसलों से भरते हैं। | आम् |
(घ) शीते शरीरे कम्पनं न भवति। — ठंड में शरीर में कंप नहीं होता। | न |
(ङ) श्रमेण धरित्री सरसा भवति। — मेहनत से धरती उर्वर बनती है। | आम् |
Q.4: मञ्जूषातः पर्यायवाचिपदानि चित्वा लिखत-
रविः वस्त्राणि जर्जरम् अधिकम् पृथ्वी पिपासा
वसनानि - वस्त्राणि (वस्त्र)
सूर्य - रविः (सूरज)
तृषा - पिपासा (प्यास)
विपुलम्- अधिकम् (अधिक)
जीर्णम् - जर्जरम् (पुराना या जर्जर)
धरित्री - पृथ्वी (पृथ्वी)
Q.5: मञ्जूषातः विलोमपदानि चित्वा लिखत-
धनिकम् नीरसा अक्षमम् दुःखम् शीते पार्श्वे
सुखम्- दुःखम्
दूरे - पार्श्वे
निर्धनम्- धनिकम्
क्षमम् - अक्षमम्
ग्रीष्मे - शीते
सरसा - नीरसा
Q 6. प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत-
(क) कृषकाः हलेन कुदालेन च क्षेत्राणि कर्षन्ति।
— किसान हल और कुदाली से खेतों की जुताई करते हैं।
(ख) कृषिकाणां कर्मवीरत्वं न नश्यति।
— किसानों की मेहनत और वीरता कभी समाप्त नहीं होती।
(ग) श्रमेण धारित्री सरसा भवति।
— परिश्रम से पृथ्वी उपजाऊ और हरी-भरी बन जाती है।
(घ) कृषकाः सर्वेभ्यः शाकम्, अन्नम्, दुग्धम् च यच्छन्ति।
— किसान सभी को सब्जियां, अनाज और दूध प्रदान करते हैं।
(ङ) कृषकात् दूरे सुखम् तिष्ठति।
— किसान से दूर सुख नहीं होता।
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