Notes For All Chapters Hindi Kshitij Class 10 CBSE
संगतकार – पठन सामग्री और भावार्थ
इस कविता में कवि ने गायन में मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार की महत्ता का स्पष्ट किया है। कवि कहते हैं कि मुख्य गायक के गंभीर आवाज़ का साथ संगतकार अपनी कमजोर किन्तु मधुर आवाज़ से देता है। अधिकांशत ये मुख्य गायक का छोटा भाई, चेला या कोई रिश्तेदार होता है जो की शुरू से ही उसके साथ आवाज़ मिलाता आ रहा है। जब मुख्य गायक गायन करते हुए सुरों की मोहक दुनिया में खो जाता है, उसी में रम जाता है तब संगतकार ही स्थायी इस प्रकार गाकर समां बांधे रखता है जैसे वह कोई छूटा हुआ सामान सँजोकर रख रहा हो। वह अपनी टेक से गायक को यह उन दिनों की याद दिलाता है जब उसने सीखना शुरू किया था।
कवि कहते हैं बहुत ऊँची आवाज़ में जब मुख्य गायक का स्वर उखड़ने लगता है और गला बैठने लगता है तब संगतकार अपनी कोमल आवाज़ का सहारा देकर उसे इस अवस्था से उबारने का प्रयास करता है। वह मुख्य गायक को स्थायी गाकर हिम्मत देता है की वह इस गायन जैसे अनुष्ठान में अकेला नहीं है। वह पुनः उन पंक्तियों को गाकर मुख्य गायक के बुझते हुए स्वर को सहयोग प्रदान करता है। इस समय उसके आवाज़ में एक झिझक से भी होती है की कहीं उसका स्वर मुख्य गायक के स्वर से ऊपर ना पहुँच जाए। ऐसा करने का मतलब यह नही है की उसके आवाज़ में कमजोरी है बल्कि वह आवाज़ नीची रखकर मुख्या गायक को सम्मान देता है। इसे कवि ने महानता बताया है।
कवि परिचय
मंगलेश डबराल
इनका जन्म सन 1948 में टिहरी गढ़वाल, उत्तरांचल के काफलपानी गाँव में हुआ और शिक्षा देहरादून में। दिल्ली आकर हिंदी पेट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास में काम करने के बाद ये पूर्वग्रह सहायक संपादक के रूप में जुड़े। इलाहबाद और लखनऊ से प्रकाशित अमृत प्रभात में भी कुछ दिन नौकरी की, बाद में सन 1983 में जनसत्ता अखबार में साहित्य संपादक का पद संभाला। कुछ समय सहारा समय में संपादक रहने के बाद आजकल नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़े हैं।
प्रमुख कार्य
कविता संग्रह – पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं और आवाज़ भी एक जगह है।
पुरस्कार – साहित्य अकादमी पुरस्कार, पहल सम्मान।
कठिन शब्दों के अर्थ
• संगतकार – मुख्य गायक के साथ गायन करने वाला या वाद्य बजाने वाला कलाकार।
• गरज – उँची गंभीर आवाज़
• अंतरा – स्थायी या टेक को को छोड़कर गीत का चरण
• जटिल – कठिन
• तान – संगीत में स्वर का विस्तार
• सरगम – संगीत के सात स्वर
• अनहद – योग अथवा साधन की आनन्दायक स्थिति
• स्थायी – गीत का वह चरण जो बार-बार गाय जाता है, टेक
• नौसिखिया – जिसने अभी सीखना आरम्भ किया हो।
• तारसप्तक – काफी उँची आवाज़
• राख जैसा गिरता हुआ – बुझता हुआ स्वर
• ढाँढस बँधाना – तसल्ली देना
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