Notes For All Chapters Hindi Sanchayan Class 10 CBSE
सारांश
मिथिलेश्वर द्वारा लिखी कहानी ‘हरिहर काका’ ग्रामीण परिवेश में रहने वाले एक वृद्ध व्यक्ति की कहानी है, जिसने अपना संपूर्ण जीवन सादगी में व्यतीत किया है| जीवन के अंतिम पड़ाव पर वह बेबसी और लाचारी का शिकार हो गया है। उसके सगे-संबंधी सब स्वार्थी होकर अपनी स्वार्थ सिद्धि में लगे हुए हैं।
लेखक का हरिहर काका से परिचय बचपन का है। हरिहर काका उसके पड़ोस में रहते थे। उन्होंने उसे अपने बच्चे की तरह प्यार और दुलार दिया था। वे उससे अपनी कोई भी बात नहीं छिपाते थे। परंतु पिछले कुछ दिनों की घटी घटनाओं के कारण हरिहर काका ने चुप्पी साध ली थी। वे शांत बैठे रहते थे। लेखक के अनुसार उनके पिछले जीवन को जानना अत्यंत आवश्यक है। लेखक का गाँव कस्बाई शहर आरा से चालीस किलोमीटर की दूरी पर है। हसन बाज़ार बस स्टैंड के पास है। गाँव की कुल आबादी ढाई-तीन हजार है। वे लेखक के गाँव के ही रहने वाले हैं।
गाँव में तीन स्थान प्रमुख हैं। एक तालाब, दूसरा पुराना बरगद का वृक्ष और तीसरा ठाकुर जी का विशाल मंदिर जिसे लोग ठाकुरबारी भी कहते हैं। यह मंदिर गाँव वालों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। ठाकुरबारी की स्थापना कब हुई, इसका किसी को विशेष ज्ञान नहीं था। इस संबंध में प्रचलित है कि जब गाँव बसा था, तो उस समय एक संत इस स्थान पर झोंपड़ी बनाकर रहने लगे थे। उस संत ने इस स्थान पर ठाकुर जी की पूजा आरंभ कर दी। लोगों ने धर्म और सेवा भावना से प्रेरित होकर चंदा इकट्ठा करके ठाकुर जी का मंदिर बनवा दिया। उनका मानना है कि यहाँ माँगी गई हर मन्नत ज़रूर पूरी होती है। ठाकुरबारी के पास काफी ज़मीन है। पहले हरिहर काका नियमित रूप से ठाकुरबारी जाते थे, परंतु परिस्थितिवश अब उन्होंने यहाँ आना बंद कर दिया।
हरिहर काका के चार भाई हैं। सभी विवाहित हैं। उनके बच्चे भी बड़े हैं। हरिहर काका ने दो शादियाँ की थीं, परंतु उन्हें बच्चे नहीं हुए थे। उनकी दोनों पत्नियाँ भी जल्दी स्वर्ग सिधार गई थीं। हरिहर काका ने तीसरी शादी बढ़ती उम्र और धार्मिक संस्कारों के कारण नहीं की थी। वे अपने भाइयों के साथ रहने लगे थे। वे अपने भाइयों के परिवार के साथ ही रहते हैं। हरिहर काका के पास कुल साठ बीघे खेत हैं। प्रत्येक भाई के हिस्से 15 बीघे खेत हैं। परिवार के लोग खेती-बाड़ी पर ही निर्भर हैं। भाइयों ने अपनी पत्नियों को हरिहर काका की अच्छी प्रकार सेवा करने के लिए कहा है। कुछ समय तक तो वे भली-भाँति उनकी सेवा करती रहीं, परंतु बाद में न कर सकीं।
एक समय ऐसा आया जब घर में कोई उन्हें पानी देने वाला भी नहीं था। बचा हुआ भोजन उनकी थाली में परोसा जाने लगा। उस दिन उनकी सहनशक्ति समाप्त हो गई, जब हरिहर काका के भतीजे का मित्र शहर से गाँव आया। उसके लिए तरह-तरह के स्वादिष्ट व्यंजन बनाए गए। काका ने सोचा कि उन्हें भी स्वादिष्ट व्यंजन खाने को मिलेंगे, परंतु ऐसा नहीं हुआ। उनको वही रूखा-सूखा भोजन परोसा गया। हरिहर काका आग बबूला हो गए। उन्होंने थाली उठाकर आँगन में फेंक दी और बहुओं को खरी-खोटी सुनाने लगे। ठाकुरबारी के पुजारी उस समय मंदिर के कार्य के लिए दालान में ही उपस्थित थे। उन्होंने मंदिर पहुंचकर इस घटना की सूचना महंत को दी।
महंत ने इसे शुभ संकेत समझा और सारे लोग हरिहर काका के घर की तरफ निकल पड़े। महंत काका को समझाकर ठाकुरबारी ले आए। उन्होंने संसार की निंदा शुरू कर दी और दुनिया को स्वार्थी कहने लगे तथा ईश्वर की महिमा का गुणगान करने लगे। महंत ने हरिहर काका को समझाया कि अपनी ज़मीन मंदिर के नाम लिख दो जिससे तुम्हें बैकुंठ की प्राप्ति होगी तथा लोग तुम्हें हमेशा याद करेंगे। हरिहर काका उनकी बातें ध्यान से सुनते रहे। वे दुविधा में पड़ गए। अब उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। महंत ने ठाकुरबारी में ही उनके रहने तथा खाने-पीने की उचित व्यवस्था करवा दी।
जैसे ही इस घटना की सूचना उनके भाइयों को लगी, वैसे ही वे उन्हें मनाने के लिए फिर ठाकुरबारी पहुँचे। पर वे उन्हें घर वापस लाने में सफल न हो सके। पर अगले ही दिन वे ठाकुरबारी पहुँचे और काका के पाँव पकड़कर रोने लगे। उनसे अपने दुर्व्यवहार के लिए माफ़ी माँगने लगे। हरिहर काका का दिल पसीज गया। वे घर वापस आ गए। अब काका की बहुत सेवा होने लगी। उन्हें जिस किसी वस्तु की इच्छा होती तो आवाज़ लगा देते और वस्तु उन्हें तुरंत मिल जाती। गाँव में काका की चर्चा होने लगी। घर के सदस्य जमीन अपने नाम लिखवाने का प्रयत्न करने लगे, परंतु हरिहर काका के समक्ष अनेक ऐसे उदाहरण थे जिन्होंने जीते-जी अपनी ज़मीन अपने रिश्तेदारों के नाम लिख दी थी और बाद में पछताते रहे। महंत भी मौका देखते ही उनके पास आ जाते और उन्हें समझाते रहते।
कुछ समय बाद महंत जी की चिंताएँ बढ़ने लगीं। वे इस कार्य का उपाय सोचने लगे। एक दिन योजना बनाकर महंत ने अपने आदमियों को भाला, गंडासा और बंदूक से लैस करके काका का अपहरण करवा दिया। हरिहर काका के भाइयों एवं गाँव के लोगों को जब खबर लगी, तब वे ठाकुरबारी जा पहुंचे। उन्होंने मंदिर का दरवाज़ा खुलवाने का प्रयत्न किया, पर वे असफल रहे। तब उन्होंने पुलिस को बुला लिया। मंदिर के अंदर महंत एवं उसके आदमियों ने काका से ज़बरदस्ती कुछ सादे कागजों पर अंगूठे के निशान ले लिए। काका महंत के इस रूप को देखकर हैरान हो गए। पुलिस ने बहुत मुश्किल से मंदिर का दरवाजा खुलवाया, परंतु उन्हें अंदर कोई हलचल दिखाई नहीं दी। तभी एक कमरे से धक्का मारने की आवाज़ आई। पुलिस ने ताला तोड़कर देखा तो काका रस्सियों से बँधे मिले। उनके मुँह में कपड़ा ठूसा हुआ था। उन्हें बंधन से मुक्त करवाकर उनके भाई उन्हें घर ले गए।
अब उनका बहुत ध्यान रखा जाने लगा। दो-तीन लोग रात में उन्हें घेर कर सोते थे। जब वे गाँव में जाते तब भी हथियारों से लैस दो-तीन व्यक्ति उनके साथ जाते थे। उन पर फिर से दबाव डाला जाने लगा कि वे अपनी ज़मीन अपने भाइयों के नाम कर दें। जब एक दिन उनकी सहनशक्ति ने जवाब दे दिया तब उन्होंने भी भयानक रूप धारण कर लिया। उन्होंने काका को धमकाते हुए कहा कि सीधे तरीके से तुम हमारे नाम ज़मीन कर दो, नहीं तो मार कर यहीं घर में ही गाड़ देंगे और गाँव वालों को पता भी नहीं चलेगा। हरिहर काका ने जब साफ़ इनकार कर दिया तो उनके भाइयों ने उन्हें मारना शुरू कर दिया। हरिहर काका अपनी रक्षा के लिए चिल्लाने लगे। भाइयों ने उनके मुँह में कपड़ा ठूस दिया।
उनके चिल्लाने की आवाज़ सुनकर गाँव वाले इकट्ठा होने लगे। महंत तक भी खबर पहुँच गई। वह पुलिस लेकर वहाँ आ पहुँचा। पुलिस ने काका को बंधनमुक्त करवाकर उनका बयान लिया। काका ने बताया कि मेरे भाइयों ने ज़बरदस्ती इन कागज़ों पर मेरे अँगूठे के निशान लिए हैं। उनकी दशा देखकर मालूम हो रहा था कि उनकी पिटाई हुई है।
अब हरिहर काका ने पुलिस से सुरक्षा की माँग की। अब वे घर से अलग रह रहे हैं। उन्होंने अपनी सेवा के लिए एक नौकर रख लिया। दो-चार पुलिसकर्मी उन्हें सुरक्षा दे रहे हैं और उनके पैसे पर मौज कर रहे हैं। एक नेताजी ने उनके समक्ष प्रस्ताव रखा कि वे ज़मीन पर ‘उच्च विद्यालय’ खोल दें, पर काका ने इनकार कर दिया।
गाँव में अफ़वाहों का बाजार गर्म हो रहा है। लोग सोचते हैं कि काका की मृत्यु के बाद महंत साधुओं एवं संतों को बुलाकर ज़मीन पर कब्जा कर लेगा। अब काका गूंगेपन का शिकार हो गए हैं। वे रिक्त आँखों से आकाश की ओर ताकते रहते हैं।
कठिन शब्दों के अर्थ-
• यंत्रणाओं – यातनाओं
• आसक्ति – लगाव
• मझधार – बीच में
• ठाकुरबारी – देवस्थान
• संचालन – चलाना
• दवनी – गेहूँ/धान निकालने की प्रक्रिया
• अगउम – प्रयोग में लाने से पहले देवता के लिए निकाला गया अंश
• प्रवचन – उपदेश
• मशगूल – व्यस्त
• तत्क्षण – उसी पल
• अकारथ – बेकार
• बय – वसीयत
• वय – उम्र
• महटिया – टाल जाना
• छल, बल, कल – धोखा, शक्ति, बुद्धि
• आच्छादित – ढका हुआ।
Leave a Reply