लोकहितं मम करणीयम्
(मौखिक 🙂
1. निम्नलिखितानाम् अव्ययानाम् अर्थं वदत-
च, अपि, एकत्र, तत्र, जातु, कथम्
उत्तर-
च – सह
अपि – यद्यपि
एकत्र – एकस्मिन स्थले
तत्र – तस्मिन् स्थले
जातु – कदाचित्
कथम् – कथया
3. अघोलिखितानां शब्दानाम् अर्थं वदत-
सौख्यम्, मनसा, मननीयम् त्वरणीयम्, गह्वरे ।
उत्तर-
सौख्यम् – सुखम्
मनसा – मनसि
मननीयम् – मनस्मरणीयम्
त्वरणीयम् – शीघ्रं कर्तव्यम्
गह्वरे – गह्वरे
4. अधोलिखितेषु पदेषु मूलधातुं वदत –
स्थिताः, गणनीयम्, जागरणीयम्, वदनीयम्, शयनीयम्
उत्तर-
स्थिताः – स्था
गणनीयम् – गण
जागरणीयम् – जागृ
वदनीयम् – वद
शयनीयम् – शय
(लिखित:)
1. एकपदेन उत्तरत-
(क) कार्यक्षेत्रे किं करणीयम्?
उत्तर: लोकहितम्।
(कार्यक्षेत्र में क्या किया जाना चाहिए? उत्तर: लोकहित।)
(ख) अहर्निशं किं करणीयम्?
उत्तर: जागरणीयम्।
(सदा क्या किया जाना चाहिए? उत्तर: जागरण।)
(ग) कुत्र भ्रमणीयम्?
उत्तर: विपत्तिविधि।
(कहाँ भ्रमण करना चाहिए? उत्तर: विपत्ति के उपायों के लिए।)
(घ) बन्धुजनाः कुत्र स्थिता: ?
उत्तर: गहनारण्ये।
(संबंधी लोग कहाँ रहते हैं? उत्तर: घने जंगल में।)
(ङ) वचसा किं करणीयम्?
उत्तर: वदनीयम्।
(शब्दों से क्या किया जाना चाहिए? उत्तर: कहा जाना चाहिए।)
2. पाठानुसारेण सत्यम् (✓ ) असत्यं वा (x) निर्दिशत :
उत्तर-
(क) लोकहितं मम करणीयम् ।
लोगों के हित में मुझे काम करना चाहिए। (✓)
(ख) सुखशयने शयनीयम् ।
सुखद शयन करना चाहिए। (x) – यह वाक्य लोकहित या नैतिकता से संबंधित नहीं है)
(ग) अहर्निशं जागरणीयम् ।
दिन-रात जागृत रहना चाहिए। (✓)
(घ) न जातु दुःखं मननीयम् ।
कभी भी दुख के बारे में नहीं सोचना चाहिए। (✓)
(ङ) न च निजसौख्यं गणनीयम् ।
अपने सुख के बारे में नहीं सोचना चाहिए। (✓)
(च) तत्र मया न संचरणीयम् ।
वहाँ मुझे नहीं जाना चाहिए। (x) – यह वाक्य लोकहित या नैतिकता से संबंधित नहीं है)
3. ‘अ’ स्तम्भस्य वाक्यानि ‘आ’ स्तम्भस्य वाक्यैः सह मेलयत-
उत्तर-
(क) न भोगभवने – (iii) रमणीयम्
(ख) न च सुखशयने – (v) शयनीयम्
(ग) तत्र मया – (i) संचरणीयम्
(घ) कार्यक्षेत्रे – (vi) त्वरणीयम्
(ङ) कष्टपर्वते – (iv) चरणीयम्
(च) दुःखसागरे – (ii) तरणीयम्
Hindi Translation
(क) न भोगभवने – रमणीयम् |
भोगों के भवन में नहीं रमणा चाहिए (अर्थात भोगों में नहीं फंसना चाहिए)।
(ख) न च सुखशयने – शयनीयम् |
सुखद शयन में नहीं सोना चाहिए (अर्थात सुखों में नहीं आलस्य करना चाहिए)।
(ग) तत्र मया – संचरणीयम् |
वहाँ मुझे जाना चाहिए।
(घ) कार्यक्षेत्रे – त्वरणीयम् |
कार्य क्षेत्र में तेजी से काम करना चाहिए।
(ङ) कष्टपर्वते – चरणीयम् |
कष्टों के पर्वत पर पैर रखना चाहिए (अर्थात कष्टों का सामना करना चाहिए)।
(च) दुःखसागरे – तरणीयम् |
दुःख के सागर में तैरना चाहिए (अर्थात दुःखों का सामना करना चाहिए)।
4. रिक्तस्थानानि उचितैः शब्दैः पूरयत
(क) तत्र मया _____ |
(ख) …… तरणीयम् ।
(ग) वचसा _____ वदनीयम् ।
(घ) ______ दुःखं गणनीयम् ।
(ङ) लोकहितं _____ करणीयम् ।
उत्तर-
(क) तत्र मया संचरणीयम् |
वहाँ मुझे जाना चाहिए।
(ख) दुःखसागरे तरणीयम् |
दुःख के सागर में तैरना चाहिए (अर्थात दुःखों का सामना करना चाहिए)।
(ग) वचसा सततं वदनीयम् |
सतत अपने वचनों पर अटल रहना चाहिए।
(घ) न जातु दुःखं गणनीयम् |
कभी भी दुख के बारे में नहीं सोचना चाहिए।
(ङ) लोकहितं मम करणीयम् |
लोगों के हित में मुझे काम करना चाहिए।
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