नीतिश्लोकाः
मौखिकः
एकपदेन उत्तरं वदत:
उत्तर-
(क) दुर्जनेन समं प्रीतिं वैरं च न कारयेत्। (बुरे लोगों के साथ न तो प्रेम करें और न ही दुश्मनी करें।)
(ख) नद्याः जलं समुद्रम् आसाद्य अपेयं भवति। (नदी का जल समुद्र में मिलकर अमृत बन जाता है।)
(ग) वृद्धिकाले अमित्रः मित्रं भवेत्। (बुढ़ापे में दुश्मन भी मित्र बन जाता है।)
(घ) दुर्जनेन सह प्रीतिं न कुर्यात्। (बुरे लोगों के साथ प्रेम नहीं करना चाहिए।)
(ङ) महात्मनाम् प्रकृतिसिद्धम् लक्षणम् अस्ति। (महान लोगों के स्वाभाविक गुण होते हैं।
2. प्रकृति – प्रत्यय विभागं कुरुत
वदन्ति, भवन्ति, सम्प्राप्ते, कृष्णायते, प्रवहन्ति, गुणज्ञेषु ।
उत्तर-
वदन्ति – वद् + अन्ति
भवन्ति – भू + अन्ति
सम्प्राप्ते – सम् + प्राप्ते
कृष्णायते – कृष्ण + आयते
प्रवहन्ति – प्र +वहन + अन्ति
गुणज्ञेषु – गुण + ज्ञ + एषु
4. निम्नलिखितानां पदानाम् अर्थं वदत-
रसवती, श्रमवती, वाकपटुता, विक्रमः, महात्मनाम्, दुर्जनेन, उष्णः कारयेत्, यशसि, क्रिया
उत्तर-
रसवती – मधुरवाणी
श्रमवती – परिश्रमी
वाक्पटुता – वाक्चातुर्य
विक्रमः – पराक्रम
महात्मनाम् – महान् आत्मा येषाम्
दुर्जनेन – दुष्टेन
उष्णः कारयेत् – उष्णं करोति
यशसि – यशः
क्रिया – कर्म
लिखितः
1. एकपदेन उत्तरं लिखत-
(क) के गुणज्ञेषु गुणाः भवन्ति ? (गुणवान लोगों में कौनसे गुण होते हैं?)
(ख) का आस्वाद्यतोया: भवन्ति ? (कौनसे जल स्वादिष्ट होते हैं?)
(ग) प्रियवाक्यप्रदानेन के तुष्यन्ति ? (प्रिय वचन देने से कौन संतुष्ट होते हैं?)
(घ) के धर्मं वदन्ति ? (कौन धर्म की बात करते हैं?)
(ङ) वृद्धिकाले कः मित्रं भवेत् ?
(च) सफलजनस्य क्रिया कीदृशी ? (सफल लोगों की क्रिया कैसी होती है?)
(छ) सफलस्य नरस्य वाणी कीदृशी ? (सफल लोगों की वाणी कैसी होती है?)
उत्तर- (क) गुणज्ञः ((गुणों को जानने वाले))
(ख) नद्यः (नदियों के जल)
(ग) जन्तवः (जीव)
(घ) वृद्धाः (बुजुर्ग)
(ङ) सुहृद् (सच्चा मित्र)
(च) दानवती (दान करने वाली)
(छ) रसवती (मीठी और मधुर)
2. श्लोकांशेषु रिक्तस्थानानि पूरयत-
उत्तर-
(क) पुस्तकस्था तु या विद्या, परहस्तगतं धनम्।
(विद्या पुस्तकों में है, और धन दूसरों के हाथ में है।)
(ख) गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति।
(गुणवान लोगों में ही गुण होते हैं।)
(ग) प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
(प्रिय वचन देने से सभी जीव संतुष्ट होते हैं।)
(घ) अमित्रोऽपि सर्वे सुहृद् भवेत्।
(दुश्मन भी सच्चा मित्र बन सकता है।)
(ङ) विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा।
(विपत्ति में धैर्य और उन्नति में क्षमा (सहनशीलता) होनी चाहिए।)
3. सन्धि / पदविच्छेदं कुरुत
(क) सत्यमस्ति ………. + ……….
(ख) अभ्युपैति ………. + ……….
(ग) मित्रमेव ………. + ……….
(घ) चाङ्गारः ………. + ……….
(ङ) अमित्रोऽपि ………. + ……….
(च) भवन्त्यपेया: ………. + ……….
(छ) समुत्पन्ने ………. + ……….
उत्तर-
(क) सत्यमस्ति = सत्यम + अस्ति
(ख) अभ्युपैति = अभि + उपैति
(ग) मित्रमेव = मित्र + एव
(घ) चाङ्गारः = चङ्ग + आरः
(ङ) अमित्रोऽपि = अमित्र + अपि
(च) भवन्त्यपेया: = भवन्ति + अपेय:
(छ) समुत्पन्ने = सम् + उत्पन्ने
4. प्रकृति-प्रत्यय-विभागं कुरुत-
अभ्युपैति, भवन्ति, पेयाः, प्रवहन्ति, गुणज्ञेषु, प्राप्य, आसाद्य, सम्प्राप्ते
उत्तर-
(क) अभ्युपैति – अभि + उपैति (प्रत्यय – उपसर्ग)
(ख) भवन्ति – भू + अन्ति (प्रत्यय – अन्त)
(ग) पेयाः – पा + याः (प्रत्यय – य)
(घ) प्रवहन्ति – प्र + वह + अन्ति (प्रत्यय – उपसर्ग, अन्त)
(ङ) गुणज्ञेषु – गुण + ज्ञ + एषु (प्रत्यय – ज्ञ, एषु)
(च) प्राप्य – प्र + आप् + य (प्रत्यय – उपसर्ग, य)
(छ) आसाद्य – आ + साद् + य (प्रत्यय – उपसर्ग, य)
(ज) सम्प्राप्ते – सम् + प्र + आप् + ते (प्रत्यय – उपसर्ग, ते)
5. अधोलिखितयोः श्लोकयोः आशयं हिन्दीभाषया लिखत-
(क) प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्माद् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता।
उत्तर-
सभी प्राणियों को प्रिय वचन (मीठे शब्द) देने से प्रसन्नता मिलती है। इसलिए, हमेशा ऐसा ही बोलना चाहिए, शब्दों की दरिद्रता (कमी) नहीं होनी चाहिए।
व्याख्या:सभी लोगों को अच्छे शब्द कहने से खुशी मिलती है, इसलिए हमेशा अच्छे और प्रिय शब्दों का प्रयोग करना चाहिए, शब्दों की कमी नहीं होनी चाहिए।
(ख) आपत्काले तु सम्प्राप्ते यत् मित्रं मित्रमेव तत्।
वृद्धिकाले तु सम्प्राप्ते अमित्रोऽपि सुहृद् भवेत्।
उत्तर-
जब आपत्ति (कठिन समय) आता है, तो जो मित्र होता है वही मित्र होता है। जब समृद्धि (उन्नति) होती है, तो शत्रु भी मित्र हो सकता है।
व्याख्या:संकट के समय वही सच्चा मित्र होता है जो कठिनाइयों में साथ देता है, जबकि उन्नति के समय शत्रु भी मित्र जैसा व्यवहार कर सकता है।
6. परस्परमेलनम् कुरुत-
उत्तर-
(क) वृद्धिकालः – (ii) समृद्धिकालः
(ख) दुर्जनेन – (v) दुष्टेन
(ग) उष्णः – (i) शुष्कः
(घ) सुहृद् – (iii) मित्रम्
(ङ) अमित्र: – (vi) शत्रुः
(च) विक्रमः – (iv) शौर्य:
(छ) रसवती – (viii) मधुरा
(ज) जीवनम् – (vii) जीवनम्
7 अधोलिखितषु पदेषु शुद्धं पदं चित्वा लिखत-
यथा – गुणज्ञेसु, गुणज्ञेषु, गुणज्ञषु – गुणज्ञेषु
(क) लोकेषू, लोकेषु, लोकसु
(ख) मनुष्यानाम्, मनुष्याणाम्, मनुष्यणाम्
(ग) दुर्जनेन, दुर्जनेण, दुर्जणेन
(घ) वृद्धीकाले वृद्धिकाल वृद्धिकाले
(ङ) महान्, महान, महानः
(च) विपदि, वीपदि, विपदी
उत्तर-
(क) लोकेषु
(ख) मनुष्याणाम्
(ग) दुर्जनेन
(घ) वृद्धिकाले
(ङ) महान्
(च) विपदि
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