सूक्ति-सुधाम
लिखितः
1. कोष्ठप्रदत्तेषु शुद्धं शब्दं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत:
(क) ______ रक्षति रक्षितः । ( धर्मः/ पापम्)
(ख) परसदननिविष्टः को _____ न याति । (गुरुत्वम् / लघुत्वम्)
(ग) हितं मनोहारि च ______ वचः । (सुलभम्/दुर्लभम् )
(घ) ______ एव करोति बलाबलम् । ( नर:/ समय:)
(ङ) आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः ….. भवेत् । ( सुखी / दुःखी)
उत्तर-
(क) धर्मः रक्षति रक्षितः। (धर्म हमें रक्षा करता है और स्वयं भी रक्षित रहता है।)
(ख) परसदननिविष्टः को लघुत्वम् न याति। (दूसरे के घर में प्रवेश करने वाला व्यक्ति अपनी गरिमा नहीं खोता।)
(ग) हितं मनोहारि च दुर्लभम् वचः। (हितकारी और मनोहारी वचन दुर्लभ होते हैं।)
(घ) समयः एव करोति बलाबलम्। (समय ही बल और अभाव को निर्धारित करता है।)
(ङ) आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत्। (आहार और व्यवहार में लज्जा त्यागने वाला व्यक्ति सुखी होता है।)
2. अधोलिखितानि वाक्यानि पाठाधारेण सत्यम् (✓) असत्यं (x) वा चिह्नी- कुर्वन्तु:
(क) शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्। (✓)
(ख) परोदेशवेलायां सर्वे शिष्टाः न भवन्ति। (✓)
(ग) सतां सद्भिः संगः अपुण्येन भवति। (x)
(घ) आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां समाचरेत्। (x)
(ङ) सत्यश्रमाभ्यां सकलार्थसिद्धिः। (✓)
हिंदी अनुवाद
(क) शरीर सबसे पहले धर्म का साधन है। (✓)
(ख) परदेश में सभी लोग शिष्ट नहीं होते। (✓)
(ग) अच्छे लोगों का संग पाप से होता है। (x)
(घ) व्यक्ति को अपनी बातों के अनुसार दूसरों के साथ व्यवहार करना चाहिए। (x)
(ङ) सत्य और मेहनत से सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं। (✓)
3. ‘क’ स्तम्भस्य वाक्यैः सह ‘ख’ स्तम्भमस्य वाक्यानि योजयत:
‘क’ ‘ख’
(क) हितं मनोहारि च – (iv) दुर्लभं वचः
(ख) शरीरमाद्यं खलु – (i) धर्मसाधनम्
(ग) समय एव करोति – (vi) बलाबलम्
(घ) सर्वारम्भाः – (ii) तण्डुलप्रस्थमूला:
(ङ) आत्मनः प्रतिकूलानि – (iii) परेषां न समाचरेत्
(च) धर्मः रक्षति – (v) रक्षितः
हिंदी अनुवाद
‘क’
(क) हितं मनोहारि च – हितकारी और मनोहारी (बातें या कार्य)
(ख) शरीरमाद्यं खलु – शरीर को पहले (अर्थात शरीर की देखभाल करना)
(ग) समय एव करोति – समय ही (निर्धारित करता है)
(घ) सर्वारम्भाः – सभी कार्यों की शुरुआत
(ङ) आत्मनः प्रतिकूलानि – अपने विरुद्ध की गई बातें
(च) धर्मः रक्षति – धर्म हमें रक्षा करता है
‘ख’
(i) धर्मसाधनम् – धर्म के कार्यों के लिए (या धर्म की पूर्ति)
(vi) बलाबलम् – बल और अभाव (या शक्ति और कमजोरी)
(ii) तण्डुलप्रस्थमूला: – चावल के दाने से अन्न की शुरुआत (या छोटे से प्रारंभ)
(iii) परेषां न समाचरेत् – दूसरों के साथ बैठकर नहीं करना चाहिए
(v) रक्षितः – रक्षित या सुरक्षित (या संरक्षित)
4. उदाहरणानुसारेण द्विवचनरूपं लिखत
एकवचनम् द्विवचनम्
यथा भवति भवतः
(क) चलामि – चलावः
मैं चलता हूँ – हम दोनों चलते हैं
(ख) अस्ति – स्तः
है – हैं दोनों
(ग) दहति – दहातः
दगता है – दगते हैं दोनों
(घ) तिष्ठसि – तिष्ठासि
तू खड़ा है – तुम दोनों खड़े हो
(ङ) भविष्यति – भविष्यतसि
होगा – होंगे दोनों
OR
(क) चलामि – चलामौ
मैं चलता हूँ – हम दोनों चलते हैं
(ख) अस्ति – अस्तौ
है – हैं (दोनों)
(ग) दहति – दहातौ
दगता है – दगते हैं (दोनों)
(घ) तिष्ठसि – तिष्ठतौ
तू खड़ा है – तुम दोनों खड़े हो
(ङ) भविष्यति – भविष्यतः
होगा – होंगे (दोनों)
5. निम्नलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तरम् एकपदेन लिखत
(क) आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः कीदृशः भवेत्? –
उत्तर- सुखी
(ख) आद्यं धर्मसाधनम् किम् भवति? –
उत्तर- शरीरम्
(ग) सतां सद्भिः संगः कथम् भवति? –
उत्तर- पुण्येन
(घ) हितं मनोहारि च किम् दुर्लभम्? –
उत्तर- वचः
(ङ) कः बलाबलं करोति? –
उत्तर- समयः
(च) सत्यश्रमाभ्यां कस्य सिद्धि: ? –
उत्तर- सकलार्थसिद्धिः
हिंदी अनुवाद
(क) आहार और व्यवहार में लज्जा त्यागने वाला व्यक्ति कैसा होता है? – सुखी
(ख) पहले धर्म के कार्यों के लिए क्या होता है? – शरीरम् (शरीर की देखभाल)
(ग) सत्पुरुषों के साथ संगति कैसे होती है? – पुण्येन (पुण्य से)
(घ) हितकारी और मनोहारी क्या दुर्लभ होते हैं? – वचः (वचन या बातें)
(ङ) कौन बल और अभाव को निर्धारित करता है? – समयः (समय)
(च) सत्य और परिश्रम से किसकी सिद्धि होती है? – सकलार्थसिद्धिः (सारे अर्थों की सिद्धि या सभी कार्यों में सफलता)
6. अधोलिखितानां पदानां सन्धिविच्छेदं कुरुत:
(क) तदेव = ___ + एव ।
(ख) सर्वारम्भाः = सर्व + ____ |
(ग) समाचरेत् = ____ + आचरेत् ।
(घ) नवतामुपैति = नवताम् + ………….. |
(ङ) बलाबलम् = _______ +______ |
उत्तर-
(क) तदेव = तत् + एव
(ख) सर्वारम्भाः = सर्व + आरम्भाः
(ग) समाचरेत् = सम + आचरेत्
(घ) नवतामुपैति = नवताम् + उपैति
(ङ) बलाबलम् = बल + अबलम्
7. विलोमपदानि लिखत:
उत्तर-
(क) धर्मः – अधर्म
(ख) अस्ति – नास्ति
(ग) सज्जनाः – दुर्जनाः
(घ) सुखम् – दुःखम्
(ङ) सत्यम् – असत्यम्
(च) गुणाः – दोषाः
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