कुरुक्षेत्रं धर्मक्षेत्रम्
संसार
एक बार कुरु नामक राजा अपने पुत्रों के साथ हस्तिनापुर से कुरुक्षेत्र के जंगल में शिकार करने गया। शिकार के दौरान वह राजा अपने अंगरक्षकों से बिछड़ गया। उसके सभी तीर खत्म हो गए थे। दिन ढलने वाला था, इसलिए आत्मरक्षा के लिए उसने जमीन पर गिरे हुए मिट्टी से लिपटे हुए कुछ तीर उठाए। उन तीरों से उसकी उंगलियां मिट्टी से लिपट गईं। वह वापस अपने निवास स्थान की ओर लौट आया।
शाप की रात
कुरु राजा को किसी ऋषि के शाप के कारण रात में मृत्यु का सामना करना पड़ता था। इसलिए रात में वह निष्प्राण हो गया। लेकिन उसकी रानी ने देखा कि राजा की उंगलियों में अभी भी प्राण मौजूद हैं। सुबह होते ही विद्वानों को बुलाकर राजा ने इस अजीब घटना का कारण पूछा। विद्वानों ने कहा कि कुरुक्षेत्र की मिट्टी में विशेष शक्ति है, जो मृत व्यक्ति को भी जीवित कर सकती है। यह सुनकर राजा ने सोचा कि यह भूमि अवश्य ही बहुत उपजाऊ और लाभकारी होगी।
कुरुक्षेत्र की भूमि
इसके बाद राजा कुरु ने कुरुक्षेत्र की 48 कोस (लगभग 144 मील) भूमि को जोतने का निश्चय किया। इस कार्य के लिए उसने शिव के वृषभ (नंदी) और यमराज के महिष (भैंसा) का उपयोग किया। इसी समय देवराज इंद्र वहाँ आए और राजा से पूछा – “हे नृप! आप क्या कर रहे हैं?” राजा ने उत्तर दिया – “हे देवराज! मैं तप, सत्य, क्षमा, दया, शुद्धता, दान, योग और ब्रह्मचर्य के लिए खेती की भूमि तैयार कर रहा हूँ।” इंद्र ने पूछा – “राजन! इस खेती का बीज कहाँ से मिला?” राजा ने उत्तर दिया – “यह बीज मेरे पास है।” राजा के इस उत्तर पर इंद्र हंस पड़े और वहाँ से चले गए।
परमेश्वर का आगमन
जब राजा कुरु ने पूरी भूमि को कृषि योग्य बना दिया, तब भगवान विष्णु वहाँ आए। उन्होंने राजा से पूछा – “हे राजन! आप क्या कर रहे हैं?” राजा ने वही उत्तर दिया जो इंद्र को दिया था। फिर भगवान विष्णु ने पूछा – “राजन! बीज कहाँ है? मुझे दीजिए, मैं बीज बो दूँगा, और आप कर्षण करें।” राजा ने अपना दाहिना हाथ आगे बढ़ाया। भगवान विष्णु ने उसके हाथ के हजारों टुकड़े कर दिए। तब राजा ने अपना पूरा शरीर भगवान विष्णु को समर्पित कर दिया। भगवान विष्णु प्रसन्न होकर बोले – “राजन! वर मांगो।” राजा ने कहा – “भगवान! मैंने जितनी भी भूमि जोती है, वह पुण्यभूमि ‘धर्मक्षेत्र’ के नाम से प्रसिद्ध हो और आपका, भगवान शिव और सभी देवताओं का यहाँ निवास हो। जो भी यहाँ मृत्यु प्राप्त करेगा, वह स्वर्ग का अधिकारी बने।”
धर्मक्षेत्र का महत्व
भगवान विष्णु ने ‘तथास्तु’ कहकर उसे आशीर्वाद दिया और अंतर्धान हो गए। तब से कुरुक्षेत्र की भूमि ‘धर्मक्षेत्र’ के नाम से विख्यात हो गई। भगवान श्रीकृष्ण ने भी श्रीमद्भगवद्गीता में कुरुक्षेत्र को ‘धर्मक्षेत्र’ कहकर इसका महत्व बताया।
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