लौहस्य तुला
पात्र: धनराम, मोहनलाल, रामू, न्यायाधीश, सूत्रधार।
सूत्रधार:
धनराम नामक एक समृद्ध व्यापारी था। कुछ वर्षों में धनराम का व्यापार सही तरीके से नहीं चल रहा था। वह कर्ज में डूब गया था, लेकिन वह निराश नहीं हुआ। बल्कि उसने सोचा कि मुझे किसी अन्य शहर में जाकर धन कमाना चाहिए। उसने अपने पास जो भी वस्तुएं थीं, उन्हें बेचकर कर्ज चुकता कर दिया। शहर छोड़ने से पहले उसने सोचा कि इस लोहे की तराजू को अपने साथी मोहनलाल के पास रखवा दूं।
प्रथम दृश्य
(मोहनलाल का घर। धनराम और मोहनलाल एक साथ बैठे हैं।)
मोहनलाल:- भाई धनराम! तुम्हारी ऐसी स्थिति देखकर मुझे बहुत दुःख हो रहा है। क्या मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकता हूँ?
धनराम:- जरूर, जरूर। आज मैं इस शहर को छोड़कर कहीं और जा रहा हूँ। मैंने अपनी सारी वस्तुएं बेच दी हैं। मेरे पास एक लोहे की तराजू बची है। क्या तुम इस तराजू को अपने पास रख सकते हो?
मोहनलाल:- क्यों नहीं, क्यों नहीं, मित्र। चिंता मत करो। तुम्हारी तराजू मेरे पास सुरक्षित रहेगी।
धनराम:- धन्यवाद, मित्र, धन्यवाद। तराजू बाहर रखी है। अपने सेवकों से कहकर इसे अंदर रखवा लो। मुझे उम्मीद है कि मैं जल्द ही वापस आऊंगा। अब, मैं चलता हूँ, नमस्कार।
द्वितीय-दृश्य
(मोहनलाल का घर)
सूत्रधार: – धनराम ने बहुत सारा धन कमा लिया। कुछ वर्षों बाद वह अपने नगर को छोड़कर मोहनलाल के घर आ गया।
मोहनलाल: – भाई धनराम! तुम्हें यहाँ देखकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ। काम-काज कैसा चल रहा है?
धनराम: – (मुस्कुराते हुए) मैं भी अपने नगर और दोस्तों के बीच आकर बहुत खुश हूँ। भगवान की कृपा से मैंने बहुत सारा धन कमा लिया है। अब मैं यहाँ पर काम शुरू करने की सोच रहा हूँ। मुझे एक तराजू की जरूरत है, उसे मैं चाह रहा हूँ।
मोहनलाल: – (दुखी होते हुए) मैं क्या कहूँ, तुम्हारा तराजू तो मैंने एक कमरे में सुरक्षित रख दिया था। पिछले साल देखा तो तराजू को चूहे खा गए।
धनराम: – (आश्चर्यचकित होकर) क्या? क्या कह रहे हो? चूहों ने तराजू खा लिया!
मोहनलाल: – हाँ मित्र, हाँ, मैं शर्मिंदा हूँ।
धनराम: – (थोड़ी देर सोचते हुए) चिंता मत करो। मेरी तराजू को चूहों ने खा लिया, तो क्या हुआ?
मोहनलाल: – (प्रसन्न होकर) तुम बहुत अच्छे हो।
धनराम: – ठीक है, अब मैं चलता हूँ। हाँ, यहाँ पास ही एक नदी है। क्यों न हम वहाँ जाकर स्नान करें। भाई मोहन! अपने बेटे को मेरे साथ भेज दो, वह मेरे कपड़ों की देखभाल करेगा।
मोहनलाल: – हाँ, हाँ, क्यों नहीं मित्र। रामू! रामू! आओ, चाचा के साथ नदी तक जाओ।
रामू: – ठीक है, पिताजी! ठीक है।
(रामू और धनराम चले जाते हैं)
तृतीय-दृश्य
(मोहनलाल का घर)
सूत्रधार:- धनराम बच्चे को लेकर नदी की ओर चला गया। रास्ते में एक साधु की गुफा में उसे छोड़ दिया। फिर वह मोहनलाल के घर लौट आया।
धनराम:- (घबराई हुई आवाज़ में) मोहनलाल! मोहनलाल!
मोहनलाल:- (दरवाजा खोलते हुए) क्या बात है? तुम इतने घबराए हुए क्यों हो?
धनराम:- (दुखी होते हुए) मोहनलाल! मैं क्या कहूँ! मैं तुम्हारे बेटे को लेकर नदी की ओर जा रहा था, तभी अचानक एक बाज़ आसमान से आया और तेजी से तुम्हारे बेटे को उठाकर उड़ गया।
(मोहनलाल आश्चर्य से धनराम की ओर देखता है)
मोहनलाल:- तुम कैसी बेवकूफी भरी बात कर रहे हो? दस साल के बच्चे को एक बाज़ कैसे उठा सकता है?
धनराम:- मित्र, विश्वास करो, विश्वास करो!
मोहनलाल:- तुम झूठ बोल रहे हो, जाओ और मेरे बेटे को लेकर आओ।
धनराम:- (सर झुकाते हुए) मुझे दुख है, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता।
मोहनलाल:- मैं तुम्हें अदालत में खींच कर ले जाऊँगा।
धनराम:- ठीक है! न्यायाधीश ही इसका न्याय करेंगे।
चतुर्थ दृश्य
(न्यायालय में दोनों मित्र न्यायाधीश के सामने आते हैं।)
मोहनलाल:- “श्रीमान! यह व्यक्ति मेरे दस वर्षीय बेटे को लेकर गया था, लेकिन अब वह मुझे मेरा बेटा वापस नहीं दे रहा है।”
न्यायाधीश:- (धनराम से) “यह क्या है? क्या यह सही है?”
धनराम:- “श्रीमान! मैं क्या कहूँ? एक बाज आया और मेरे बेटे को उठाकर ले गया। मैं कहाँ से अपने बेटे को लाऊँ, श्रीमान?”
न्यायाधीश:- “मूर्ख, यह कैसी बातें कर रहे हो? क्या बाज दस साल के बच्चे को उठा सकता है?”
धनराम:- “श्रीमान, क्यों नहीं? अगर एक चूहा वजनदार तराजू को काट सकता है, तो बाज ऐसा क्यों नहीं कर सकता?”
(न्यायाधीश उसे अविश्वास से देखते हैं।)
न्यायाधीश:- “तुम क्या बकवास कर रहे हो? बताओ।”
धनराम:- “श्रीमान! मैंने मोहनलाल के पास अपना तराजू रखा था। जब मैंने उसे वापस माँगा, तो उसने कहा कि चूहों ने तराजू को खा लिया है। अगर चूहे ऐसा कर सकते हैं, तो बाज भी बच्चे को उठा सकता है।”
न्यायाधीश:- (मोहनलाल से) “धनराम का तराजू तुरंत लाओ। तुम्हें तुम्हारा बेटा मिल जाएगा।”
(मोहनलाल घबराते हुए अपना सिर झुका लेता है।)
मोहनलाल:- “मुझे क्षमा करें, श्रीमान!”
न्यायाधीश:- “तुम दोनों जाओ। तराजू और बच्चे को लाओ।”
(कुछ समय बाद दोनों लौट आते हैं।)
न्यायाधीश:- (मोहनलाल से) “तराजू दो और अपने बेटे को ले जाओ!”(धनराम की ओर देखते हुए) “अच्छा हुआ, विवाद का अंत हो गया। तुम दोनों जा सकते हो।”
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