प्रहेलिका
[जीवन की आरम्भिक अवस्था में बौद्धिक विकास, तर्कशक्ति की प्रखरता, कल्पनाशक्ति के संवर्धन तथा मनोरञ्जन की दृष्टि से संसार की प्रमुख भाषाओं में प्रहेलिकाओं का विकास हुआ है । इन्हें ” पहेली” तथा Riddles कहा जाता है । इन्हें सुनकर शिक्षार्थी अपनी कल्पना तथा तर्क के द्वारा उत्तर खोजने का प्रयास करता है जिससे उसकी बौद्धिक क्षमता बढ़ती है। संस्कृत भाषा में भी प्राचीन काल से ही प्रहेलिकाएँ रही हैं । यहाँ प्राचीन और आधुनिक दोनों प्रकार की प्रहेलिकाओं का संकलन|
प्रस्तुत किया गया है । शिक्षार्थी पहले अपनी कल्पना से इन्हें हल करने का प्रयास करें तब दिये गये उत्तरों से समाधान प्राप्त करें ।]
श्लोक 1:
नित्यं भ्रमति योगी न महदुष्णो न पावकः।
विकासयति यः पद्मं वृत्ताकारो वदन्तु कः? ।।1।।
हिंदी अनुवाद:
जो योगी नित्य भ्रमण करता है, न तो वह अत्यधिक गर्म होता है, न ही वह अग्नि है।
वह वृत्ताकार होकर कमल को विकसित करता है, बताओ वह कौन है?
व्याख्या:
यहां चंद्रमा की ओर संकेत किया गया है। चंद्रमा रात के समय नित्य आकाश में घूमता रहता है। वह ना बहुत गर्म होता है, न ही अग्नि के समान होता है, लेकिन फिर भी उसकी शीतलता से कमल खिलता है। श्लोक में प्रश्न किया गया है कि वह कौन है जो यह कार्य करता है, जिसका उत्तर चंद्रमा है।
श्लोक 2:
वर्धते यः कदाचित्तथा क्षीयते
दृश्यते वा कदाचिन्न तद् दृश्यते।
वारिधिर्नास्ति नैवाऽस्ति वायुस्तथा,
कोऽस्ति सः तस्य किन्नामधेयं सखे? 11211
हिंदी अनुवाद:
जो कभी बढ़ता है, फिर घटता है।
कभी दिखाई देता है और कभी नहीं दिखाई देता।
वह ना कोई समुद्र है और ना ही हवा है,
वह कौन है, और उसका नाम क्या है, मेरे दोस्त?
व्याख्या:
यह श्लोक भी चंद्रमा के लिए ही है। चंद्रमा का आकार कभी बढ़ता है (शुक्ल पक्ष), कभी घटता है (कृष्ण पक्ष)। वह कभी पूरा दिखाई देता है और कभी अदृश्य हो जाता है (अमावस्या)। उसे समुद्र या हवा नहीं कहा जा सकता। इस श्लोक में भी चंद्रमा का वर्णन है।
श्लोक 3:
विश्वप्रसिद्धा भुवि राजमाना,
प्रकाशमाना न रविर्न वह्निः।
न रूपमेवाऽस्ति तथापि लोके,
सर्वत्र सर्वैरवलोक्यते का? ॥13॥
हिंदी अनुवाद:
जो विश्व में प्रसिद्ध है और धरती पर राज करती है,
वह प्रकाशमान है, पर न तो वह सूर्य है और न ही अग्नि।
उसका कोई रूप नहीं है, फिर भी उसे सभी लोग हर जगह देखते हैं, वह क्या है?
व्याख्या:
यह श्लोक आकाश (आकाशीय पिंड) के बारे में है। आकाश सब जगह व्याप्त है, लेकिन इसका कोई ठोस रूप नहीं है। यह न तो सूर्य है, न ही अग्नि, फिर भी यह सभी जगह दिखाई देता है। आकाश ही वह तत्व है जो सब जगह विद्यमान है।
श्लोक 4:
भ्रमामि नित्यं न शशी न भानुः
चक्राणि मे सन्ति न तेषु वायुः।
वहामि लोकान् न च वायुयानं,
वदन्तु मे किं खलु नामधेयम्? ||4||
हिंदी अनुवाद:
मैं नित्य भ्रमण करता हूँ, लेकिन मैं न तो चंद्रमा हूँ और न ही सूर्य।
मेरे पास चक्र हैं, लेकिन उनमें हवा नहीं है।
मैं लोकों को उठाता हूँ, परंतु वायुयान नहीं हूँ,
बताओ मेरा नाम क्या है?
व्याख्या:
यह श्लोक पृथ्वी पर स्थित पहिए वाले वाहन, जैसे बैलगाड़ी या रथ की ओर संकेत करता है। यह नित्य चलता है, लेकिन यह चंद्रमा या सूर्य नहीं है। इसके चक्र (पहिए) होते हैं, लेकिन वे हवा से नहीं चलते। यह पृथ्वी पर लोकों को ढोता है, लेकिन वायुयान नहीं है।
श्लोक 5:
गगने डयते न खगो न सुरो,
न शशिर्न रविर्हनुमानपि नो।
जनवाहनमस्ति भुवि प्रथितं,
नरनिर्मितमस्ति सखे ! वद किम् ||5||
हिंदी अनुवाद:
आकाश में उड़ता है, लेकिन वह पक्षी नहीं है, न ही देवता है।
वह न तो चंद्रमा है और न ही सूर्य, और न ही वह हनुमान है।
यह धरती पर प्रसिद्ध जनवाहन है,
जो मनुष्य द्वारा निर्मित है, मेरे दोस्त, बताओ वह क्या है?
व्याख्या:
यह श्लोक हवाई जहाज की ओर संकेत करता है। यह आकाश में उड़ता है, लेकिन पक्षी या देवता नहीं है। यह न तो चंद्रमा, सूर्य, और न ही हनुमान है। यह एक प्रसिद्ध जनवाहन है, जो मनुष्य द्वारा बनाया गया है।
श्लोक 6:
अस्थि नास्ति शिरो नास्ति,
बाहुरस्ति निरंगुलिः।
नास्ति पादद्वयं गाढम्,
अंगमालिंगति स्वयम् ||6||
हिंदी अनुवाद:
जिसके पास हड्डी नहीं है, सिर नहीं है,
बाहु है लेकिन उंगलियाँ नहीं हैं।
पैरों की जोड़ी भी नहीं है,
जो अपने अंगों को स्वयं ही आलिंगन करता है।
व्याख्या:
यह श्लोक सांप की ओर संकेत करता है। सांप के पास हड्डी या सिर नहीं होता, बाहु (सरीसृप की तरह) होते हैं लेकिन उंगलियाँ नहीं होतीं। इसके दो पैर भी नहीं होते और वह अपने शरीर को लपेटकर खुद को आलिंगन करता है।
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