लोकहितं मम करणीयम्
[प्रस्तुत पाठ आधुनिक संस्कृत कवि श्रीधर भास्कर वर्णेकर रचित सरल संस्कृत गीत है जिसमें नवयुवकों को जीवनपयोगी कार्य करने का उपदेश है । यह संस्कृतगीत गेय, सरल और प्रेरणाप्रद है । डॉ० वर्णेकर नागपुर विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग के अध्यक्ष थे । इन्होंने अनेक संस्कृत रचनाएँ की हैं जिनमें शिवाजी के जीवनचरित पर 68 सर्गों का महाकाव्य ” शिवराज्योदयम्” अत्यन्त प्रसिद्ध है । इसकी अन्य प्रसिद्ध रचना “संस्कृत वाङ्मय कोष” है जो हिन्दी में चार खण्डों में प्रकाशित हैं । इन्होंने बालोपयोगी बहुत सी संस्कृत कविताएँ लिखी हैं ।]
मनसा सततं स्मरणीयम्,
वचसा सततं वदनीयम्,
लोकहितं मम करणीयम् । लोकहितम्…. ।।
Translation:
मन से हमेशा याद रखना चाहिए,
वाणी से हमेशा बोलना चाहिए,
और मेरा कर्तव्य लोक कल्याण करना है। लोक कल्याण…।
Explanation:
इस पंक्ति में व्यक्ति को यह सिखाया जा रहा है कि उसे हमेशा अपने मन में लोक कल्याण का विचार रखना चाहिए, और जो भी बोलें, उसमें भी लोक कल्याण की भावना होनी चाहिए। हमारा प्रमुख उद्देश्य समाज और लोगों के भले के लिए कार्य करना है।
न भोगभवने रमणीयम्,
न च सुखशयने शयनीयम् ।
अहर्निशं जागरणीयम्,
लोकहितं मम करणीयम् । मनसा …… ।।
Translation:
न तो भोग विलास में रमना चाहिए,
न ही सुखमय बिस्तर में सोना चाहिए।
दिन-रात जागते रहना चाहिए,
और मेरा कर्तव्य लोक कल्याण करना है।
Explanation:
यहाँ यह कहा गया है कि व्यक्ति को भोग विलास और आराम से दूर रहना चाहिए। उसे हर समय जागरूक और सतर्क रहना चाहिए ताकि वह समाज के भले के लिए निरंतर कार्य कर सके।
न जातु दुःखं गणनीयम्,
न च निजसौख्यं मननीयम् ।
कार्यक्षेत्रे त्वरणीयम्,
लोकहितं मम करणीयम् ॥ मनसा …….
Translation:
न तो कभी दुःख की गिनती करनी चाहिए,
न ही अपने सुख के बारे में सोचना चाहिए।
कार्यक्षेत्र में जल्दी करना चाहिए,
और मेरा कर्तव्य लोक कल्याण करना है।
Explanation:
इस पंक्ति में यह समझाया गया है कि हमें अपने दुःख और सुख की चिंता नहीं करनी चाहिए। हमें अपने कार्यक्षेत्र में तेजी से कार्य करना चाहिए और अपने कर्तव्यों को निभाते हुए लोक कल्याण को प्राथमिकता देनी चाहिए।
दुःखसागरे तरणीयम्
कष्टपर्वते चरणीयम् ।
विपत्तिविधिने भ्रमणीयम्,
लोकहितं मम करणीयम् ॥ मनसा ……. ।।
Translation:
दुःख के सागर को पार करना चाहिए,
कष्ट के पर्वत पर चलना चाहिए।
विपत्तियों के समय में भी विचरण करना चाहिए,
और मेरा कर्तव्य लोक कल्याण करना है।
Explanation:
यहाँ यह बताया गया है कि जीवन में आने वाले सभी दुःखों और कष्टों का सामना करना चाहिए। चाहे विपत्तियाँ आएँ, हमें अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटना चाहिए और हमेशा लोक कल्याण के लिए समर्पित रहना चाहिए।
गहनारण्ये घनान्धकारे,
बन्धुजना ये स्थिता गह्वरे ।
तंत्र मया संचरणीयम्,
लोकहितं मम करणीयम् ।। मनसा …… ।।
Translation:
घने जंगल में घोर अंधकार में,
जहाँ मेरे प्रियजन बसे हैं,
वहाँ भी मेरी योजना चलती रहनी चाहिए।
और मेरा कर्तव्य लोक कल्याण करना है।
Explanation:
यहाँ यह कहा जा रहा है कि चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो, चाहे प्रियजन अंधकारमय परिस्थितियों में हों, व्यक्ति को अपनी योजना के अनुसार कार्य करना चाहिए और समाज के हित में योगदान देना चाहिए।
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