बिहार राजधानी
प्रस्तुत पाठ में बिहार की राजधानी पटना या पाटलिपुत्र का प्राचीन एवं नवीन महत्त्व बतलाया गया है। गंगा के किनारे लम्बाई में फैला हुआ यह नगर प्राचीन काल में व्यावसायिक केन्द्र तथा प्रशासन के केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध था । प्रायः एक हजार वर्षों तक यह सत्ता का अद्भुत केन्द्र रहा था किंतु मध्य काल में इसकी उपेक्षा हो गयी । पुनः इसका महत्त्व मुगलकाल में बढ़ा तथा आधुनिक युग में इसकी चतुर्दिक् उन्नति होने लगी । इस नगर में अनेक प्रसिद्ध भवन तथा दर्शनीय स्थल हैं। गंगा का विशाल पुल इसकी शोभा बढ़ाता है। एक अन्य रेल – सह – सड़क पुल निर्माणाधीन है ।
अस्माकं विहारराज्यम् ————————– विदेशेष्वपि बभूव ।
हमारा बिहार राज्य इतिहास में प्रसिद्ध है। यह राज्य बौद्धों के आश्रयस्थल के रूप में प्रसिद्ध था, और इसी वजह से इसका नामकरण हुआ। हालांकि, यह नाम प्राचीन नहीं है। बुद्ध के समय में मगध एक बड़ा और शक्तिशाली जनपद था। इसकी राजधानी पुष्पपुरी, कुसुमपुरी या पाटलिपुत्र कही जाती थी। उदाहरण के तौर पर, “अनुगंगम् पाटलिपुत्रम्” नामक वाक्य व्याकरणशास्त्र में मिलता है। इन नामों से ज्ञात होता है कि इस नगर में पुष्पों की बहुतायत थी। नंद और मौर्यवंशों के समय में पाटलिपुत्र की प्रसिद्धि विदेशों में भी फैल गई थी।
गंगायाः तीरे पोतानां —————————– सैन्यशिविरं स्थापितमासीत् ।
गंगा के किनारे बसे हुए नगर को ‘पटना’ नाम मिला। यह नाम ‘पत्तन’ शब्द से आया है, जिसका मतलब होता है ‘आश्रयस्थान’। गुप्तवंश के काल में भी पाटलिपुत्र समृद्ध था। चीनी यात्री फाह्यान ने इसकी समृद्धि देखी थी। धीरे-धीरे संभवतः जलवायु परिवर्तन के कारण नगर का पतन हुआ। लेकिन बहुत सालों बाद, मुगलों के शासनकाल में इसका पुनर्निर्माण किया गया। बंगाल के शासन के लिए यहाँ एक सैनिक शिविर स्थापित किया गया था।
आंग्लशासनकाले ————————- दुर्भिक्षकाले निर्मितमासीत् ।
ब्रिटिश शासन के समय पाटलिपुत्र का औद्योगिक महत्व बढ़ गया। व्यापार के क्षेत्र में भी पाटलिपुत्र ने तरक्की की। 1912 ईस्वी में बिहार राज्य की स्वतंत्रता के बाद, पाटलिपुत्र को पटना के नाम से प्रसिद्ध किया गया और इसे राजधानी बना दिया गया। इसके बाद, राजधानी के अनुकूल भवन और अन्य संरचनाएं यहाँ बनाई गईं। दिन-ब-दिन नगर की उन्नति और गुणवत्ता में सुधार होता गया। यहाँ एक संग्रहालय, पुस्तकालय, सचिवालय भवन, राजभवन, तारामंडल, चिड़ियाघर, खेल मैदान (स्टेडियम) आदि का निर्माण हुआ। गंगा के किनारे गोलघर (1786 ईस्वी) का निर्माण भी अकाल के समय हुआ था।
विहारस्य राजधानी ——————— समन्वयस्थलं वर्तते ।
बिहार की राजधानी का विशेष महत्व सिक्खों के दसवें गुरु गोविंद सिंह के जन्म से जुड़ा हुआ है (22 दिसंबर 1666 ईस्वी)। अब यहाँ विभिन्न स्थलों से तीर्थयात्री आते हैं, जैसे कि गुरुद्वारा नामक स्थल। जैन भी यहाँ सुदर्शन मुनि की समाधि स्थल पर तीर्थयात्रा के लिए आते हैं। सनातन धर्म के अनुयायी भी पटनादेवी को तीर्थ मानते हैं। पाटलिपुत्र में मुस्लिम समुदाय के लिए अरबी-फारसी विश्वविद्यालय मौलाना मजहरुल हक मौजूद है। इस प्रकार, बिहार की राजधानी विभिन्न धर्मों का समन्वय स्थल है।
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