सूर्यस्य महिमा
[आकाशीय पिण्डों में सर्वाधिक भास्वर तथा पृथ्वी के लिए हितकारक सूर्य हैं। सूर्य की महत्ता के कारण इन्हें अनेक संस्कृतियों में देवता का रूप दिया गया है तथा इनके विषय में अनेक पौराणिक कथाएँ गढ़ी गयी हैं । इन कथाओं को छोड़ भी दें तो सूर्य के वैज्ञानिक महत्त्व की उपेक्षा नहीं हो सकती । हमारी पृथ्वी के लिए सूर्य की किरणें तथा ताप बहुत लाभदायक है। अब तो वैज्ञानिकों ने सौर ऊर्जा का उत्पादन आरम्भ किया है। सूर्य से मेघ, वनस्पति तथा समस्त प्राणिजगत् लाभान्वित होता है । पृथ्वी पर ऋतुपरिवर्तन सूर्य के कारण ही होता है । संस्कृत में सूर्य के अनेक नामों की प्रकल्पना है । प्रस्तुत पाठ के प्रत्येक पद्य में उनके पृथक्-पृथक् नाम आये हैं ।]
1.
नक्षत्ररूपः सूर्योऽयं स्वप्रकाशेन दीप्तिमान् ।
सूरज एक तारा के रूप में है, जो अपनी खुद की रोशनी से चमकता है।
चन्द्रादीनां ग्रहाणां च प्रकाशकः इति स्थितः ॥
यह चंद्रमा और अन्य ग्रहों को भी प्रकाश देता है।
2.
अहोरात्रं विभजते महास्रोतस्तथोर्जसः ।
यह दिन-रात को बांटता है, और बड़ी धारा की तरह ऊर्जा प्रदान करता है।
सङ्क्रान्तिहेतुना मासानृतँश्च तनुते रविः ।
सूर्य की गति के कारण महीने और साल बदलते हैं।
3.
समीपत्वाद् वसन्तं च ग्रीष्मं वर्षाः करोत्ययम् ।
सूर्य की नजदीकी के कारण वसंत, गर्मी और वर्षा होती है।
शरद् – हेमन्त – शिशिराण्यतथात्वे विभाकरः ॥
सूर्य की गति से शरद, हेमंत और शिशिर ऋतुएँ भी आती हैं।
4.
प्राणिनां स्वास्थ्यलाभाय किरणास्तु दिवामणेः ।
जीवों की सेहत के लिए सूर्य की किरणें बहुत महत्वपूर्ण हैं।
सर्वदा कल्पिताः सर्वैर्भिषग्भिश्च विशेषतः ॥
सभी डॉक्टर इन किरणों की उपयोगिता को मानते हैं।
5.
भास्करस्योर्जसा नं क्रान्तिर्वैज्ञानिकी भवेत् ।
सूर्य की ऊर्जा से विज्ञान में बदलाव आते हैं।
इत्येव साम्प्रतं शोधक्षेत्रे कार्यं प्रवर्तते ॥
इसी कारण वर्तमान में शोध क्षेत्र में काम हो रहा है।
6.
यथा यन्त्रादिगतये विद्युदुत्पादनाय च ।
जैसे मशीनों से बिजली उत्पन्न होती है,
रोगादिशमने भानोर्भानवः शक्तिशालिनः ||
वैसे ही सूर्य की शक्ति रोगों को ठीक करने में सहायक होती है।
7.
पादपाः विकसन्त्येव प्रकाशे हि विभावसोः ।
पेड़-पौधे सूर्य की रोशनी से खिलते हैं।
जायन्ते नान्यथा तेषु पुष्पाणि च फलानि च ॥
अन्यथा इनमें फूल और फल नहीं आते।
8.
रूपदो यत्त्वरूपाय ज्ञानदो ज्ञानिने तथा ।
सूर्य रूप का दाता है, और ज्ञान देने वाला भी है।
सर्वेषां जीवनं प्रोक्तः सहस्रांशुरनेकधा ॥
सभी जीवन के लिए यह हजारों रूपों में प्रकट होता है।
9.
तद्रश्मिसेवनं सूर्यस्नानं जगति कथ्यते ।
सूर्य की किरणों का उपयोग और सूर्य स्नान जगत में महत्वपूर्ण माना जाता है।
देहास्थि-रक्षणार्थं यत्त्वग्रोगस्य निवारणे ॥
यह शरीर की रक्षा और रोगों से बचाव के लिए किया जाता है।
10.
पुरा प्रभाकरो देवो व्रताय परिकल्पितः ।
पहले सूर्य देवता को विशेष पूजा के लिए माना जाता था।
स्नाने तथार्घ्यदानाय विहारेऽस्मिन् विशेषतः ॥
विशेष रूप से स्नान और आहुति के लिए पूजा की जाती थी।
Leave a Reply