प्रत्यय
प्रत्यय उन शब्दांशों को कहते हैं जो धातुओं या प्रतिपादिकों से जोड़कर उनके अर्थ को विस्तारित करते हैं। धातु से जुड़े प्रत्यय “कृत्” या “तिङ्” होते हैं, जबकि प्रतिपादिक से जुड़े प्रत्यय “सुप्”, “तद्धित” या “स्त्रीप्रत्यय” कहलाते हैं। सुप् या तिङ् प्रत्यय लगने से ही शब्द वाक्य में प्रयोग होने योग्य बनता है।
उदाहरण:
- रामः गच्छति
- रामः – सुबन्त (सु प्रत्यय से युक्त)
- गच्छति – तिङन्त (ति प्रत्यय से युक्त)
कृत् प्रत्यय:
कृत् प्रत्यय धातु से जुड़े होते हैं और इनके कई प्रकार होते हैं। ये विभिन्न अर्थों में धातु से जुड़ते हैं।
1. क्त्वा प्रत्यय:
यह पूर्वकालिक क्रिया में धातु से लगाया जाता है। जब एक ही कर्त्ता से संबंधित दो क्रियाएँ होती हैं और पहली क्रिया पूर्वकाल की होती है, तो इसमें क्त्वा प्रत्यय लगता है। इसमें “त्वा” या सन्धि के कारण कहीं-कहीं “ट” हो जाता है।
उदाहरण:
- बालकः विद्यालयं गत्वा नित्यं पठति।
- गम् + क्त्वा = गत्वा (पहली क्रिया – जाना)
- पठ् = पठति (दूसरी क्रिया – पढ़ना)
- चन्द्रं दृष्ट्वा शिशुः प्रसन्नः भवति।
- दृश् + क्त्वा = दृष्ट्वा (देखकर)
- स गृहेऽपि स्थित्वा दुःखी वर्तते।
- स्था + क्त्वा = स्थित्वा (रहकर)
- ओदनं भुक्त्वा जलं पिबति।
- भुज् + क्त्वा = भुक्त्वा (खाकर)
2. ल्यप् प्रत्यय:
यह प्रत्यय क्त्वा के समान ही होता है, लेकिन उपसर्ग के बाद धातु से क्त्वा नहीं लगता, बल्कि ल्यप् प्रत्यय लगता है। ल्यप् में “य” रहता है।
उदाहरण:
- आदाय = आ + दा + ल्यप् (लेकर)
- विहस्य = वि + हस् + ल्यप् (हंसकर)
3. तुमुन् प्रत्यय:
जब एक क्रिया दूसरी क्रिया के लिए होती है, तब भविष्यत् काल के अर्थ में धातु से तुमुन् प्रत्यय लगता है। इसमें “तुम्” बचता है, जिसका त नियमतः “ट” या “ढ” हो सकता है।
उदाहरण:
- बालकः पठितुं गच्छति।
- पठ् + तुमुन् = पठितुं (पढ़ने के लिए)
- अहं कार्यं कर्तुम् इच्छामि।
- कृ + तुमुन् = कर्तुम् (काम करने के लिए)
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