समास का अर्थ होता है दो या दो से अधिक शब्दों को मिलाकर एक नया शब्द बनाना, जिसमें उन शब्दों की विभक्तियाँ लुप्त हो जाती हैं। इसे इस प्रकार समझ सकते हैं कि जब कई शब्द मिलकर एक नया शब्द बनाते हैं, तब उन्हें समास कहा जाता है। समास के चार मुख्य प्रकार हैं: अव्ययीभाव, तत्पुरुष, बहुव्रीहि, और द्वन्द्व।
नीचे इनके उदाहरण और व्याख्या दिए गए हैं:
1. अव्ययीभाव समास
अव्ययीभाव समास में जब दो शब्द मिलकर एक ऐसा नया शब्द बनाते हैं जो अव्यय (अपरिवर्तनीय) का रूप ले लेता है, तब उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। इसमें सामान्यतः पहला शब्द (पूर्वपद) प्रमुख होता है, और वह क्रिया से सीधा संबंध रखता है।
उदाहरण:
- यथाशक्ति = यथा + शक्ति (शक्ति के अनुसार)
- यथासंभव = यथा + संभव (संभव के अनुसार)
- रातोदिन = रात्रि: + दिनम् (रात और दिन लगातार)
व्याख्या: उदाहरण “यथाशक्ति” में “यथा” का अर्थ है “के अनुसार” और “शक्ति” का अर्थ है “शक्ति”। दोनों मिलकर “शक्ति के अनुसार” का अर्थ बनाते हैं। यहाँ “यथा” अव्यय के रूप में प्रधान है और यह समास क्रिया के साथ सीधा जुड़ता है।
2. तत्पुरुष समास
इस समास में उत्तर पद (दूसरा शब्द) का अर्थ प्रधान होता है। तत्पुरुष समास के अंतर्गत कई उपभेद होते हैं, जैसे कर्मधारय, द्विगु, नञ् आदि।
मुख्य भेद:
1. कर्मधारय समास: इसमें दोनों पद समान विभक्तियों के होते हैं और विशेषण-विशेष्य के रूप में होते हैं।
उदाहरण:
- राजकुमार = राज + कुमार (राजा का पुत्र)
- नीलकमल = नील + कमल (नीला कमल)
- मालकिन = मालिक + इन (मालिकिन, महिला मालिक)
व्याख्या: “राजकुमार” में “राज” विशेषण है और “कुमार” विशेष्य है। दोनों शब्द मिलकर एक नया शब्द बनाते हैं, जो “राजा का पुत्र” को दर्शाता है। इसी प्रकार “नीलकमल” में “नील” और “कमल” मिलकर “नीला कमल” बनाते हैं।
2.द्विगु समास: इसमें पूर्वपद संख्यावाचक होता है।
उदाहरण:
- त्रिलोकी = त्रयाणां लोकानां (तीन लोकों का समूह)
- चौमास: चतस्रः मासाः (चार महीने)
- द्विजन्मा: द्वौ जन्मौ (दो बार जन्मे)
व्याख्या: “त्रिलोकी” में “त्रि” का अर्थ है “तीन” और “लोकी” का अर्थ है “लोक”। दोनों मिलकर “तीन लोकों” का समूह दर्शाते हैं। यह द्विगु समास का उदाहरण है, जहाँ संख्यावाचक शब्द पहले आता है।
3. नञ् समास: इसमें ‘न’ का प्रयोग निषेध के अर्थ में होता है।
उदाहरण:
- अनारम्भ: न + आरम्भ (शुरुआत न होना)
- अहिंसा: न + हिंसा (हिंसा न करना)
- अपूर्व: न + पूर्व (जो पहले कभी नहीं हुआ)
व्याख्या: “अहिंसा” में “न” का अर्थ “नहीं” और “हिंसा” का अर्थ “हिंसा” होता है। इन दोनों शब्दों के मेल से “अहिंसा” शब्द बना है, जिसका अर्थ है “हिंसा का न होना”। यह नञ् समास का उदाहरण है, जहाँ “न” का प्रयोग निषेध के लिए होता है।
3. बहुव्रीहि समास
बहुव्रीहि समास में न तो पूर्व पद (पहला शब्द) का अर्थ प्रधान होता है और न ही उत्तर पद (दूसरा शब्द) का। इसके बजाय यह समास किसी अन्य बाहरी अर्थ की ओर संकेत करता है, जो समास का प्रमुख अर्थ होता है।
उदाहरण:
- पितामह: पितु: पितरम् (पिता का पिता)
- दशानन: दश + आनन (दस मुख वाला, रावण)
- राजकुलीन: राज: कुलम् (राजा के कुल में उत्पन्न)
व्याख्या: उदाहरण “दशानन” में “दश” का अर्थ “दस” और “आनन” का अर्थ “मुख” है। ये शब्द मिलकर एक नया शब्द “दशानन” बनाते हैं, जिसका अर्थ है “दस मुख वाला”। यहाँ रावण के दस मुखों की ओर संकेत किया गया है, जो समास का बाहरी अर्थ है।
4. द्वन्द्व समास
द्वन्द्व समास में जब ‘और’ के अर्थ में दो या अधिक शब्दों का समास होता है, तो इसे द्वन्द्व समास कहते हैं। इसमें जुड़े हुए सभी शब्दों का अर्थ प्रधान होता है।
उदाहरण:
- रामलक्ष्मण: राम: च लक्ष्मण: च (राम और लक्ष्मण)
- मातापितरौ: माता च पिता च (माता और पिता)
- शीतोष्णम्: शीतं च उष्णं च (ठंडा और गर्म)
व्याख्या: “रामलक्ष्मण” में “राम” और “लक्ष्मण” शब्द मिलकर एक नया शब्द बनाते हैं, जिसका अर्थ “राम और लक्ष्मण” है। यह द्वन्द्व समास का उदाहरण है, जहाँ दोनों शब्दों का समान रूप से महत्व होता है।
इन उदाहरणों से समास के विभिन्न प्रकारों और उनके प्रयोग को समझा जा सकता है। प्रत्येक समास में शब्दों का संयोजन अलग होता है, जिससे उनके अर्थ और संरचना में भिन्नता आती है।
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