प्रत्याहाराणां परिचयः
प्रत्याहार का अर्थ: प्रत्याहार का अर्थ होता है संक्षेप। संस्कृत के वर्णों को संक्षेप में समझाने के लिए पाणिनि ने प्रत्याहारों का प्रयोग किया। प्रत्याहार उन चौदह सूत्रों पर आधारित होते हैं जो स्वरों और व्यञ्जनों की गिनती करते हैं।
स्वरवर्ण के सूत्र:
- अ इ उ ण्
- ऋ ऌ क्
- ए ओ ङ्
- ऐ औ च्
व्यञ्जनवर्ण के सूत्र:
- ह य व र ट्
- ल ण्
- ञ म ङ ण न म्
- झ भ ञ्
- घ ढ ध ष्
- ज ब ग ड द श्
- ख फ छ ठ थ च ट त व्
- क प य्
- श ष स र्
- ह ल्
प्रत्याहारसूत्र: वर्णमाला के इन सूत्रों को प्रत्याहारसूत्र कहा जाता है। जैसे “अण् प्रत्याहार” में “अ”, “इ”, और “उ” इन तीन वर्णों का बोध होता है। “अच्” में सभी स्वरवर्ण और “हल्” में सभी व्यञ्जनवर्ण आ जाते हैं।
प्रत्याहार का निर्माण: प्रत्याहार दो वर्णों से बनता है। इनमें दूसरा वर्ण हलन्त होता है, जो किसी भी चौदह सूत्रों में से अंतिम वर्ण होता है। पहला वर्ण किसी भी दूसरे वर्ण के रूप में हो सकता है। जितने वर्ण निर्दिष्ट करने हों, उतने वर्ण प्रत्याहार में आ जाते हैं।
उदाहरण:
- अक्: इसमें “अ”, “इ”, “उ”, “ऋ”, और “ऌ” ये पाँच वर्ण समाविष्ट होते हैं।
- जश्: इसमें “ज”, “ब”, “ग”, “ड”, और “द” ये तृतीय वर्ण समाविष्ट होते हैं।
पाणिनि द्वारा प्रयोग किए गए प्रत्याहार: पाणिनि ने कुल 42 प्रत्याहारों का अपने व्याकरणग्रंथ “अष्टाध्यायी” में प्रयोग किया है। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण प्रत्याहार और उनके अंतर्गत आने वाले वर्ण निम्नलिखित हैं:
- अण्: अ, इ, उ
- अक्: अ, इ, उ, ऋ, ऌ
- इक्: इ, उ, ऋ, ऌ
- एङ्: ए, ओ
- एच्: ए, ओ, ऐ, औ
- ऐच्: ऐ, औ
- खर्: ख, फ, छ, ठ, थ, च, ट, त, क, प, श, ष, स
- जश्: ज, ब, ग, ड, द
- यण्: य, र, ल, व
इन प्रत्याहारों के माध्यम से वर्णसमूह को संक्षेप में समझा और निर्दिष्ट किया जा सकता है।
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