सूक्ति-सुधाम
[संस्कृत की अनेक विशिष्टताओं में एक यह भी है कि हजारों वर्षों से इसमें अनेक सुन्दर वाक्य प्रचलित रहे हैं जो मानव जीवन को सन्मार्ग दिखाते हैं । ये वाक्य कहीं-कहीं तो प्रसिद्ध साहित्यिक तथा नीतिपरक ग्रन्थों में प्रयुक्त हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनके रचयिता का नाम अन्धकार में है। संस्कृत पढ़े हुए व्यक्ति प्रायः अपने वार्तालापों में इन सुन्दर वचनों (सूक्तियों) का प्रयोग तात्कालिक स्थिति के निरूपण के लिए अथवा अपने कथ्य की पुष्टि के लिए करते हैं ।
प्रस्तुत पाठ में अनेक सूक्तियाँ संकलित की गयी हैं जिनका जीवन में महत्त्व है । इनका उपयोग निबन्धों या अन्य रचनाओं की सौन्दर्यवृद्धि के लिए हो सकता है । किसी भी कथ्य की पुष्टि समुचित सूक्ति से करने पर उसका व्यापक प्रभाव होता है ।]
1. धर्मो रक्षति रक्षितः।
Translation: धर्म की रक्षा करने पर धर्म हमारी रक्षा करता है।
Explanation: यदि हम धर्म का पालन करते हैं, तो धर्म भी हमें संकटों से बचाता है।
2. आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत्।
Translation: भोजन और व्यवहार में संकोच त्यागने से व्यक्ति सुखी होता है।
Explanation: जो व्यक्ति भोजन या व्यवहार में झिझक और संकोच छोड़ देता है, वही सुखी जीवन जीता है।
3. सर्वारम्भाः तण्डुलप्रस्थमूलाः।
Translation: सभी कार्यों की शुरुआत चावल के एक मुठ्ठी से होती है।
Explanation: किसी भी बड़े कार्य की शुरुआत छोटे प्रयासों से होती है।
4. गुणाः पूजास्थानं गुणिषु न च लिङ्गं न च वयः।
Translation: गुणों का सम्मान होता है, न कि शरीर या उम्र का।
Explanation: समाज में व्यक्ति के गुणों का महत्व होता है, उम्र या लिंग का नहीं।
5. सत्यश्रमाभ्यां सकलार्थसिद्धिः।
Translation: सत्य और परिश्रम से सभी कार्यों में सफलता मिलती है।
Explanation: सच्चाई और कड़ी मेहनत से ही सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।
6. मितं च सारं च वचो हि वाग्मिता।
Translation: संक्षिप्त और सारगर्भित वचन ही वाक्पटुता है।
Explanation: जो व्यक्ति कम और सारगर्भित बोलता है, वही वाक्पटु कहलाता है।
7. परसदननिविष्टः को लघुत्वं न याति।
Translation: दूसरों के घर में रहने से कौन सम्मानित रह सकता है?
Explanation: जो व्यक्ति दूसरों पर निर्भर होता है, वह सम्मानित नहीं रह पाता।
8. हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः।
Translation: जो बात लाभदायक और मन को भाती हो, वह दुर्लभ होती है।
Explanation: ऐसे शब्द जो हितकारी और आकर्षक हों, उन्हें बोलना कठिन होता है।
9. समय एव करोति बलाबलम्।
Translation: समय ही बल और निर्बलता का कारण बनता है।
Explanation: समय की परिस्थितियाँ ही किसी को मजबूत या कमजोर बनाती हैं।
10. क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैति तदेव रूपं रमणीयतायाः।
Translation: जो हर क्षण नयापन लाता है, वही सौंदर्य का असली रूप है।
Explanation: जिस चीज़ में हमेशा नयापन होता है, वही सबसे सुंदर होती है।
11. परोपदेशवेलायां शिष्टाः सर्वे भवन्ति हि।
Translation: दूसरों को उपदेश देने के समय सभी लोग सभ्य हो जाते हैं।
Explanation: जब दूसरों को सलाह देने का समय आता है, तो सभी लोग सही व्यवहार करने लगते हैं।
12. विकारहेतौ सति विक्रियन्ते येषां न चेतांसि त एव धीराः।
Translation: विकार के कारण होने पर भी जिनके मन विचलित नहीं होते, वे ही सच्चे धैर्यवान होते हैं।
Explanation: जो लोग विपरीत परिस्थितियों में भी शांत और स्थिर रहते हैं, वही धैर्यवान होते हैं।
13. वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः।
Translation: संपत्तियाँ स्वयं ही गुणी और विचारशील व्यक्ति को चुन लेती हैं।
Explanation: योग्य और गुणवान व्यक्ति के पास संपत्ति और अवसर खुद ही आ जाते हैं।
14. यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम्।
Translation: जिसके पास स्वयं की बुद्धि नहीं है, शास्त्र भी उसकी कोई मदद नहीं कर सकते।
Explanation: यदि किसी व्यक्ति के पास समझदारी नहीं है, तो ज्ञान या शिक्षा भी उसे नहीं सुधार सकते।
15. शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।
Translation: शरीर ही धर्म का पहला साधन है।
Explanation: धर्म का पालन करने के लिए सबसे पहले शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है।
16. सतां सद्भिः संगः कथमपि हि पुण्येन भवति।
Translation: सज्जनों का संग किसी न किसी पुण्य से ही प्राप्त होता है।
Explanation: अच्छे और सद्गुणी लोगों की संगति का लाभ बहुत सौभाग्य से मिलता है।
17. मानवं पुत्रवद् वृक्षास्तारयन्ति परत्र च।
Translation: वृक्ष मनुष्य को पुत्र की भांति इस लोक और परलोक दोनों में उबारते हैं।
Explanation: पेड़ मनुष्य को जीवन में सुख और मरने के बाद भी लाभ पहुंचाते हैं, जैसे पुत्र करता है।
18. ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्मापि नरं न रञ्जयति।
Translation: थोड़ा सा ज्ञान प्राप्त करके घमंडी हुआ व्यक्ति ब्रह्मा को भी नहीं भाता।
Explanation: थोड़ा ज्ञान लेकर अहंकार करने वाला व्यक्ति सम्मान प्राप्त नहीं करता, चाहे वह कितना भी उच्च हो।
19. अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः।
Translation: धन के बिना व्यक्ति दुर्बल हो सकता है, लेकिन चरित्र के बिना वह नष्ट हो जाता है।
Explanation: धन के अभाव में जीवन कठिन हो सकता है, परंतु चरित्र का पतन व्यक्ति को पूरी तरह नष्ट कर देता है।
20. आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।
Translation: जो बातें अपने लिए प्रतिकूल हों, उन्हें दूसरों के लिए भी न करें।
Explanation: जो व्यवहार या कार्य हमें स्वयं के लिए अनुचित लगता है, उसे दूसरों के साथ भी नहीं करना चाहिए।
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