1. रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 1861 में कोलकाता के प्रसिद्ध टैगोर परिवार में हुआ था। उनका परिवार बंगाल में कला, विद्या और संगीत के क्षेत्र में प्रसिद्ध था।
2. टैगोर ने किस शैक्षणिक संस्थान की स्थापना की थी और उसका क्या महत्व है?
उत्तर: रवींद्रनाथ टैगोर ने 1901 में शांति निकेतन की स्थापना की थी, जिसे बाद में विश्वभारती विश्वविद्यालय के रूप में जाना गया। यह संस्थान शिक्षा के क्षेत्र में एक आदर्श मॉडल था, जहाँ शिक्षा को जीवन और प्रकृति से जोड़कर प्रदान किया जाता था। यहाँ पर रचनात्मकता, कला और संस्कृति का विशेष ध्यान रखा गया।
3. टैगोर के अनुसार शिक्षा में सुधार की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर: टैगोर के अनुसार शिक्षा में सुधार की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि वर्तमान शिक्षा प्रणाली यांत्रिक और रटने पर आधारित है। यह बच्चों की रचनात्मकता और मानसिक विकास को बाधित करती है। टैगोर मानते हैं कि शिक्षा का उद्देश्य बच्चों की स्वाभाविक जिज्ञासा को प्रोत्साहित करना और जीवन से जोड़ना होना चाहिए।
4. टैगोर ने शिक्षा में “आनंद” की कमी पर क्या कहा है?
उत्तर: टैगोर का मानना है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में बच्चों के लिए आनंद का कोई स्थान नहीं है। रटने वाली शिक्षा के कारण बच्चे न तो जीवन के प्रति कोई लगाव विकसित कर पाते हैं और न ही उनकी सोचने और समझने की क्षमता का सही विकास होता है। शिक्षा में आनंद के बिना वह उबाऊ और निरर्थक बन जाती है।
5. टैगोर अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली की आलोचना क्यों करते हैं?
उत्तर: टैगोर अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली की आलोचना इसलिए करते हैं क्योंकि यह बच्चों को उनकी सांस्कृतिक जड़ों से काट देती है और केवल रटने पर आधारित है। यह शिक्षा बच्चों को न तो भावनात्मक रूप से विकसित करती है और न ही उनके जीवन के साथ गहराई से जुड़ती है।
6. टैगोर के अनुसार विदेशी भाषा सीखने के क्या नुकसान हैं?
उत्तर: टैगोर का मानना है कि विदेशी भाषा (जैसे अंग्रेजी) सीखने से बच्चों के मन में किसी प्रकार की स्मृति या अनुभव जागृत नहीं होता। वे शब्दों को रटते हैं, परंतु उनके पीछे के भाव और संस्कृति से उनका कोई संबंध नहीं होता, जिससे शिक्षा का उद्देश्य अधूरा रह जाता है।
7. टैगोर के अनुसार बच्चों के मानसिक विकास के लिए किन तत्वों की आवश्यकता है?
उत्तर: टैगोर के अनुसार बच्चों के मानसिक विकास के लिए स्वतंत्रता, खेल, रचनात्मकता, और कल्पना की आवश्यकता होती है। बच्चों को केवल रटने की बजाय सोचने और महसूस करने का अवसर मिलना चाहिए, ताकि उनकी मानसिक और भावनात्मक क्षमता का सही विकास हो सके।
8. टैगोर ने “शिक्षा में हेर-फेर” शीर्षक क्यों चुना?
उत्तर: टैगोर ने “शिक्षा में हेर-फेर” शीर्षक इसलिए चुना क्योंकि वह शिक्षा प्रणाली में आवश्यक सुधार की आवश्यकता पर बल देते हैं। वह मानते हैं कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली बच्चों की रचनात्मकता और स्वाभाविक विकास को रोकती है और इसमें बदलाव जरूरी है।
9. टैगोर की दृष्टि में आदर्श शिक्षा क्या है?
उत्तर: टैगोर की दृष्टि में आदर्श शिक्षा वह है जो बच्चों को स्वतंत्र रूप से सोचने, अनुभव करने, और जीवन को समझने का अवसर दे। यह शिक्षा रचनात्मकता, खेल और प्रकृति के साथ जुड़ी होनी चाहिए, ताकि बच्चों का संपूर्ण विकास हो सके।
10. टैगोर के अनुसार बालकों को शिक्षा कैसे दी जानी चाहिए?
उत्तर: टैगोर का मानना है कि बालकों को शिक्षा आनंद के साथ दी जानी चाहिए, जिसमें रचनात्मकता और खेल का समावेश हो। उन्हें जीवन से जुड़े विषयों को समझने और अपनी कल्पना शक्ति का उपयोग करने का मौका मिलना चाहिए। केवल रटने पर आधारित शिक्षा बच्चों को जीवन की वास्तविकताओं से दूर कर देती है।
11. टैगोर का “शांति निकेतन” शिक्षा के क्षेत्र में क्यों महत्वपूर्ण था?
उत्तर: शांति निकेतन टैगोर के शिक्षा दर्शन का मूर्त रूप था। यहाँ प्रकृति के बीच शिक्षा दी जाती थी, जहाँ छात्रों को स्वतंत्र रूप से सोचने, रचनात्मक होने और सांस्कृतिक विविधता को समझने का अवसर मिलता था। यह शिक्षा का एक आदर्श मॉडल था, जहाँ पारंपरिक और आधुनिक विचारों का समन्वय था।
12. टैगोर के अनुसार जीवन यात्रा पूरी करने के लिए कौन-कौन सी शक्तियाँ आवश्यक हैं?
उत्तर: टैगोर के अनुसार जीवन यात्रा पूरी करने के लिए चिंतन शक्ति और कल्पना शक्ति दोनों अत्यावश्यक हैं। केवल स्मरण शक्ति पर आधारित शिक्षा से व्यक्ति का विकास नहीं हो सकता, बल्कि उसे सोचने और नई कल्पनाओं को विकसित करने का अवसर भी मिलना चाहिए।
13. टैगोर के अनुसार हमारी शिक्षा प्रणाली में क्यों “संग्रह” और “निर्माण” साथ-साथ नहीं चलते?
उत्तर: टैगोर मानते हैं कि हमारी शिक्षा प्रणाली में हम ज्ञान का संग्रह तो करते हैं, लेकिन उसका उपयोग या निर्माण नहीं करते। बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ इसे जीवन में लागू करने और नई चीजों को बनाने की क्षमता विकसित करनी चाहिए, परंतु वर्तमान प्रणाली में इसका अभाव है।
14. टैगोर के अनुसार शिक्षा और जीवन के बीच का संबंध क्या होना चाहिए?
उत्तर: टैगोर मानते हैं कि शिक्षा और जीवन के बीच गहरा संबंध होना चाहिए। शिक्षा का उद्देश्य जीवन की समस्याओं को हल करने और जीवन को बेहतर बनाने में मदद करना होना चाहिए। यदि शिक्षा केवल परीक्षा और रोजगार तक सीमित रह जाती है, तो इसका उद्देश्य अधूरा रह जाता है।
15. टैगोर ने अंग्रेजी भाषा और संस्कृत भाषा की तुलना कैसे की है?
उत्तर: टैगोर कहते हैं कि यदि बच्चे केवल संस्कृत पढ़ते, तो वे रामायण और महाभारत को समझ पाते, जबकि अंग्रेजी पढ़ने के प्रयास में वे न तो भाषा को सही से समझ पाते हैं और न ही खेल-कूद या अन्य रचनात्मक गतिविधियों में भाग ले पाते हैं। अंग्रेजी उनके जीवन से जुड़ नहीं पाती।
16. टैगोर ने बालकों के स्वाभाविक विकास के लिए कौन-कौन से तत्व महत्वपूर्ण बताए हैं?
उत्तर: टैगोर ने बालकों के स्वाभाविक विकास के लिए खेल, प्रकृति के साथ संपर्क, स्वतंत्रता, और रचनात्मकता को महत्वपूर्ण बताया है। उनका मानना है कि इन तत्वों के बिना बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास अधूरा रह जाता है।
17. टैगोर ने “शिक्षा और जीवन के बीच व्यवधान” का क्या अर्थ बताया है?
उत्तर: टैगोर का मानना है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली और जीवन के बीच एक व्यवधान उत्पन्न हो गया है। शिक्षा बच्चों को जीवन की वास्तविकताओं से दूर कर रही है, जिससे जीवन के साथ शिक्षा का मेल नहीं बैठता। इससे बच्चों में शिक्षा के प्रति अविश्वास और निराशा का जन्म होता है।
18. टैगोर की दृष्टि में मातृभाषा का महत्व क्या है?
उत्तर: टैगोर मातृभाषा को शिक्षा का महत्वपूर्ण अंग मानते हैं। उनका मानना है कि मातृभाषा में शिक्षा बच्चों के भावनात्मक और सांस्कृतिक विकास में मदद करती है। विदेशी भाषा में शिक्षा बच्चों के मन और जीवन से जुड़ नहीं पाती, जिससे उनकी समझने की क्षमता कमजोर हो जाती है।
19. टैगोर ने शिक्षा में हेर-फेर से किस समस्या को उजागर किया है?
उत्तर: टैगोर ने शिक्षा में हेर-फेर से यह समस्या उजागर की है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली बच्चों की रचनात्मकता और स्वाभाविक विकास को बाधित करती है। उन्होंने शिक्षा में सुधार की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा है कि शिक्षा जीवन के साथ मेल खाती होनी चाहिए।
20. टैगोर ने शिक्षा के माध्यम से किस प्रकार के समाज का निर्माण करने की बात कही है?
उत्तर: टैगोर का मानना है कि शिक्षा का उद्देश्य एक ऐसा समाज बनाना है जो रचनात्मक, स्वतंत्र और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध हो। शिक्षा के माध्यम से बच्चों में चिंतन, कल्पना, और जीवन के प्रति जागरूकता का विकास होना चाहिए, ताकि वे समाज में सार्थक योगदान दे सकें।
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