प्रारंभिक राज्य
प्रश्न 1: वैदिक काल के ‘जन’ और ‘जनपद’ से महाजनपदों के विकास का क्रम कैसे हुआ?
उत्तर: वैदिक काल में ‘जन’ छोटे-छोटे सामाजिक समूहों को कहा जाता था, जो धीरे-धीरे संगठित होकर ‘जनपद’ का रूप लेने लगे। जनपदों का विकास तीन रूपों में हुआ:
i) कुछ जन अकेले ही जनपद की अवस्था प्राप्त कर लिए, जैसे मत्स्य, चेदी, काशी, और कोशल।
ii) कुछ जनों ने आपस में मिलकर जनपद बनाए, जैसे पांचाल जनपद।
iii) कुछ जन, अधिक शक्तिशाली जनों से पराजित होकर उनमें विलीन हो गए, जैसे अंग महाजनपद को मगध ने अपने में मिला लिया।
समय के साथ, इन जनपदों में से कुछ अधिक महत्वपूर्ण हो गए और उन्हें महाजनपद कहा जाने लगा। बौद्ध और जैन ग्रंथों में 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है।
प्रश्न 2: महाजनपदों में राजतंत्रात्मक और गणतंत्रात्मक शासन का क्या स्वरूप था?
उत्तर: महाजनपदों में शासन का स्वरूप एक जैसा नहीं था; कुछ महाजनपदों में राजतंत्रात्मक शासन था, जबकि कुछ में गणतंत्रात्मक शासन था।
i) राजतंत्रात्मक शासन: इस व्यवस्था में राजा का पद वंशानुगत होता था, अर्थात् पिता के बाद पुत्र राजा बनता था। राजा की सत्ता उसके परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती थी। राजधानियाँ शासन का केंद्र होती थीं, जहाँ राजा, सेना, और उनके कर्मचारी रहते थे। कई राजधानियों में किलेबंदी भी की गई थी, जिससे राजा अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर सके।
ii) गणतंत्रात्मक शासन: गणतंत्रात्मक महाजनपदों में शासन का प्रधान का चुनाव होता था। इन गणराज्यों में लोकमत से शासन किया जाता था, और यहाँ वाद-विवाद के माध्यम से निर्णय लिए जाते थे। वज्जि संघ इसका प्रमुख उदाहरण है, जिसमें लिच्छवी गणराज्य भी शामिल था।
प्रश्न 3: महाजनपदों में कर व्यवस्था कैसी थी, और इसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: महाजनपदों में राजा स्वैच्छिक नजराना (बलि) के बजाय अब नियमित रूप से कर वसूलने लगे। करों की वसूली से राजा समृद्ध होते गए और वे अपने कार्यों को सुगमता से करने के लिए कर्मचारियों और सेना की नियुक्ति करने लगे।
i) फसलों पर कर: सबसे महत्वपूर्ण कर फसलों पर लगाया जाता था, जिसे “भाग” कहा जाता था। यह फसल का 1/16 हिस्सा होता था।
ii) कारीगरों पर कर: कारीगरों, जैसे बुनकर, लोहार, सुनार, और बढ़ई, को भी कर देना पड़ता था।
iii) व्यापारियों पर कर: व्यापारियों को सामान खरीदने और बेचने पर कर देना पड़ता था।
इस कर व्यवस्था से राजा के पास धन और संसाधनों का संग्रह हुआ, जिससे राज्य की प्रशासनिक और सैन्य शक्ति बढ़ी।
प्रश्न 4: मगध महाजनपद के उत्थान में कौन-कौन से कारक सहायक थे?
उत्तर: मगध महाजनपद के उत्थान में कई कारक सहायक थे:
i) लोहे की खानें: मगध के निकटवर्ती क्षेत्र में लोहे की खानें थीं, जो अच्छे हथियारों के निर्माण में सहायक थीं।
ii) उर्वर भूमि: मगध गंगा नदी घाटी में स्थित था, जहाँ की भूमि उर्वर और उपजाऊ थी, जिससे कृषि समृद्ध हुई।
iii) व्यापार और व्यवसाय: मगध क्षेत्र में व्यापार और व्यवसाय का भी विकास हुआ, जिससे राज्य की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई।
iv) हाथियों की उपलब्धता: मगध के जंगलों में हाथी प्रचुर मात्रा में थे, जिनका उपयोग युद्ध में होता था।
v) प्राकृतिक सुरक्षा: मगध की दोनों राजधानियाँ—राजगीर और पाटलिपुत्र—प्राकृतिक रूप से सुरक्षित थीं, क्योंकि ये पहाड़ियों और नदियों से घिरी हुई थीं।
vi) योग्य शासक: मगध के शासक, जैसे बिम्बिसार, अजातशत्रु, और महापद्मनंद, अपने साहस और शक्ति से राज्य का विस्तार करने में सफल हुए।
प्रश्न 5: बिम्बिसार और अजातशत्रु के शासनकाल में मगध महाजनपद में क्या प्रमुख उपलब्धियाँ हुईं?
उत्तर: बिम्बिसार और अजातशत्रु के शासनकाल में मगध महाजनपद में कई प्रमुख उपलब्धियाँ हुईं:
i) बिम्बिसार: बिम्बिसार ने अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कोशल और लिच्छवी राजवंश के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किए। उसने अंग महाजनपद पर आक्रमण कर उसे मगध में मिला लिया, जिससे राज्य की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई। बिम्बिसार ने गंगा नदी के मार्ग से व्यापार का अधिकतम लाभ उठाया।
ii) अजातशत्रु: अजातशत्रु ने वज्जि संघ के साथ युद्ध किया और अपने मंत्री वस्सकार की सहायता से वज्जि संघ में फूट डालकर उन्हें पराजित किया। उसने अपनी राजधानी राजगीर की सुरक्षा के लिए किलाबंदी कराई और पाटलिग्राम में एक सैनिक छावनी की स्थापना की, जो बाद में पाटलिपुत्र के नाम से विख्यात हुआ।
प्रश्न 6: गणराज्यों की शासन व्यवस्था कैसी थी, और वज्जि संघ का इसमें क्या महत्व था?
उत्तर: गणराज्यों की शासन व्यवस्था ‘गण’ या ‘संघ’ के आधार पर चलती थी, जहाँ शासन के प्रधान का चुनाव होता था। ये गणराज्य अक्सर छोटे आकार के होते थे, लेकिन आपस में मिलकर संघ का निर्माण करते थे।
i) वज्जि संघ: वज्जि संघ गणराज्यों का एक प्रमुख उदाहरण है। वज्जि संघ में आठ गणराज्य शामिल थे, जिनमें लिच्छवी, विदेह, और मल्ल प्रमुख थे। वज्जि संघ की शासन व्यवस्था में लोकमत का सम्मान किया जाता था, और गणों के प्रमुख आपस में मिलकर संघ के निर्णय लेते थे। यह संघ वाद-विवाद और विचार-विमर्श के माध्यम से निर्णय लेने की प्रणाली का पालन करता था।
प्रश्न 7: प्राचीन भारत के गणराज्य और वर्तमान गणराज्य में क्या समानताएँ और असमानताएँ हैं?
उत्तर:
समानताएँ:
i) प्राचीन भारत के गणराज्यों में शासन के प्रधान का चुनाव होता था, जैसा कि वर्तमान गणराज्य में होता है।
ii) प्राचीन गणराज्य और वर्तमान गणराज्य दोनों में लोकमत और विचार-विमर्श के माध्यम से निर्णय लिए जाते थे।
iii) दोनों ही व्यवस्थाओं में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासनिक तंत्र का महत्व होता है।
असमानताएँ:
i) प्राचीन गणराज्यों में शासन की सीमाएँ और क्षेत्रीय अधिकार सीमित थे, जबकि वर्तमान गणराज्य में पूरे देश पर शासन होता है।
ii) प्राचीन गणराज्य छोटे आकार के होते थे, और उनमें जनसंख्या कम होती थी, जबकि वर्तमान गणराज्य बड़े आकार के होते हैं और जनसंख्या अधिक होती है।
iii) प्राचीन गणराज्यों में चुनाव की प्रक्रिया साधारण और सीमित थी, जबकि वर्तमान गणराज्य में चुनाव की प्रक्रिया व्यापक और लोकतांत्रिक होती है।
प्रश्न 8: द्वितीय नगरीकरण का क्या अर्थ है, और इसके विकास के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर: द्वितीय नगरीकरण का अर्थ भारत में नगरों के विकास की दूसरी लहर से है, जो लगभग 2600 साल पहले (600 ई.पू.) उत्तरी भारत में शुरू हुई। इसके विकास के प्रमुख कारण थे:
i) राजनैतिक कारण: महाजनपदों के गठन के साथ, राजधानियाँ बड़े और भव्य रूप धारण करने लगीं। शासक, पदाधिकारी, और सैनिक वर्गों की प्रधानता के कारण नगरों का विकास हुआ।
ii) आर्थिक कारण: शिल्प और व्यापार के विकास के कारण नगर विशिष्ट वस्तुओं के उत्पादन केंद्र बने। उत्पादन अधिक होने से व्यापार का प्रसार हुआ और नगर व्यापार के केंद्र बन गए।
iii) धार्मिक कारण: कुछ नगर धार्मिक कारणों से विकसित हुए, जैसे कि मंदिरों और तीर्थ स्थलों के आसपास बस्तियाँ बसने लगीं, जो बाद में नगरों का रूप धारण कर गईं।
iv) प्राकृतिक कारण: अधिकांश नगर नदियों के किनारे या प्रमुख मार्गों के पास विकसित हुए, जिससे व्यापार और सेना के आवागमन में सुविधा हुई। साथ ही, पास के गाँवों से नगरवासियों को अनाज और वस्तुओं के लिए कच्चा माल प्राप्त होता था।
प्रश्न 9: नगरों की योजना और संरचना में क्या विशेषताएँ थीं, और इनमें कौन-कौन से सामाजिक वर्ग शामिल थे?
उत्तर: द्वितीय नगरीकरण के दौरान नगरों की योजना और संरचना सुनियोजित होती थी। नगरों को विभिन्न मुहल्लों या भागों में बाँट दिया जाता था, जहाँ अलग-अलग सामाजिक वर्ग रहते थे।
i) सामाजिक वर्ग: नगरों की आबादी में शासक, पुरोहित, व्यापारी, शिल्पकार, मजदूर, सेवक, और दास सभी शामिल थे।
ii) संरचना: नगरों में शासक वर्ग के लिए भव्य महल और प्रशासनिक भवन होते थे, जबकि शिल्पकार और व्यापारियों के लिए विशेष क्षेत्र होते थे। नगरों में सड़कें, गलियाँ, और नालियाँ भी बनी होती थीं।
प्रश्न 10: पाटलिपुत्र का विकास कैसे हुआ, और इसका प्राचीन भारत में क्या महत्व था?
उत्तर: पाटलिपुत्र का विकास अजातशत्रु के शासनकाल में हुआ, जब उसने गंगा और गंडक नदियों के संगम पर स्थित पाटलिग्राम में एक सैनिक छावनी का निर्माण कराया। यह स्थान बाद में पाटलिपुत्र के नाम से विख्यात हुआ और मगध की राजधानी बन गया। पाटलिपुत्र का प्राचीन भारत में महत्वपूर्ण स्थान था क्योंकि यह मगध साम्राज्य का राजनीतिक और प्रशासनिक केंद्र था। यहाँ से शासन चलाने में सुविधा होती थी, और यह नगर व्यापारिक गतिविधियों के लिए भी महत्वपूर्ण था। पाटलिपुत्र ने बाद में मौर्य साम्राज्य की राजधानी के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रश्न 11: महाजनपदों के शासकों द्वारा राजधानियों में किलेबंदी का क्या उद्देश्य था, और इसके क्या लाभ थे?
उत्तर: महाजनपदों के शासकों द्वारा राजधानियों में किलेबंदी का उद्देश्य अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना और बाहरी आक्रमणों से बचाव करना था। किलेबंदी लकड़ी, ईंट, और पत्थरों से की जाती थी। किलेबंदी के लाभ थे:
i) सुरक्षा: किलेबंदी से शासक और उनकी सेना बाहरी शत्रुओं के आक्रमण से सुरक्षित रहते थे।
ii) सत्ता का प्रदर्शन: किलेबंदी का निर्माण शासकों की शक्ति और सामर्थ्य का प्रतीक था, जिससे उनका प्रभाव और सत्ता मजबूत होती थी।
iii) आर्थिक स्थिरता: किलेबंदी के कारण शासक और उनके कर्मचारी सुरक्षित रहते थे, जिससे राजकीय कार्य सुचारू रूप से चलते थे, और आर्थिक गतिविधियाँ बाधित नहीं होती थीं।
iv) आंतरिक सुरक्षा: किलेबंदी के अंदर रहकर शासक अपनी प्रजा पर नियंत्रण रख सकते थे और विद्रोहों को दबा सकते थे।
प्रश्न 12: करों की वसूली से महाजनपदों के शासकों की शक्ति कैसे बढ़ी, और इसका प्रजा पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: करों की वसूली से महाजनपदों के शासकों की शक्ति और आर्थिक समृद्धि में वृद्धि हुई। करों से प्राप्त धन का उपयोग शासक अपनी सेना, प्रशासन, और अन्य राजकीय कार्यों के लिए करते थे। इससे उनकी सत्ता मजबूत होती थी, और वे अपने राज्य का विस्तार और सुरक्षा कर सकते थे।
प्रजा पर प्रभाव:
i) आर्थिक बोझ: करों की वसूली से प्रजा पर आर्थिक बोझ बढ़ गया। कृषकों, कारीगरों, और व्यापारियों को अपनी आय का एक हिस्सा कर के रूप में देना पड़ता था।
ii) सामाजिक असमानता: करों की वसूली से शासक वर्ग और सामान्य जनता के बीच आर्थिक असमानता बढ़ी। शासक और उनके कर्मचारी समृद्ध होते गए, जबकि सामान्य जनता को अपने जीवनयापन के लिए संघर्ष करना पड़ता था।
iv) राजकीय नियंत्रण: करों की वसूली से शासक वर्ग का नियंत्रण प्रजा पर बढ़ गया, जिससे वे अधिक संगठित और सशक्त हो गए।
प्रश्न 13: मगध महाजनपद में बिम्बिसार और अजातशत्रु के शासनकाल में कौन-कौन से प्रमुख युद्ध हुए, और इनके क्या परिणाम थे?
उत्तर: मगध महाजनपद में बिम्बिसार और अजातशत्रु के शासनकाल में कई प्रमुख युद्ध हुए:
i) बिम्बिसार का शासनकाल: बिम्बिसार ने अंग महाजनपद पर आक्रमण कर उसे मगध में मिला लिया। इस विजय से मगध की सीमाएँ विस्तृत हुईं और उसकी आर्थिक स्थिति मजबूत हुई। बिम्बिसार ने कोशल और लिच्छवी राजवंश के साथ वैवाहिक संबंध भी स्थापित किए, जिससे उसकी सत्ता और स्थिरता बढ़ी।
ii) अजातशत्रु का शासनकाल: अजातशत्रु ने कोशल के राजा प्रसेनजित से युद्ध किया और काशी प्राप्त किया। उसने वज्जि संघ के साथ भी युद्ध किया और अपने मंत्री वस्सकार की सहायता से वज्जि संघ में फूट डालकर उन्हें पराजित किया। इन युद्धों के परिणामस्वरूप मगध की सत्ता और क्षेत्रीय प्रभुत्व बढ़ा, और पाटलिग्राम (पाटलिपुत्र) में सैनिक छावनी की स्थापना की गई।
प्रश्न 14: गणराज्यों की शासन व्यवस्था में लोकमत का क्या महत्व था, और इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: गणराज्यों की शासन व्यवस्था में लोकमत का महत्वपूर्ण स्थान था। गणराज्यों में शासन के प्रधान का चुनाव होता था, और महत्वपूर्ण निर्णय वाद-विवाद और विचार-विमर्श के माध्यम से लिए जाते थे।
i) महत्त्व: गणराज्य प्रणाली में जनता की भागीदारी सुनिश्चित की जाती थी, जिससे शासन में पारदर्शिता और सामूहिक निर्णय की भावना बनी रहती थी।
ii) समाज पर प्रभाव: लोकमत की प्रधानता से समाज में एकता और संगठन का विकास हुआ। गणराज्यों में सत्ता का केंद्रीकरण नहीं होता था, और समाज में विभिन्न समूहों के विचारों का सम्मान किया जाता था। इससे समाज में सामूहिकता और लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना हुई, जो आधुनिक लोकतंत्र की नींव मानी जा सकती है।
प्रश्न 15: द्वितीय नगरीकरण के दौरान विकसित नगरों की विशेषताएँ क्या थीं, और इनमें कौन-कौन सी गतिविधियाँ प्रमुख थीं?
उत्तर: द्वितीय नगरीकरण के दौरान विकसित नगरों की विशेषताएँ थीं:
i) राजनैतिक और प्रशासनिक केंद्र: कई नगर राजनैतिक और प्रशासनिक केंद्रों के रूप में विकसित हुए, जहाँ शासक, पदाधिकारी, और सैनिक वर्गों का प्रभुत्व था।
ii) आर्थिक गतिविधियाँ: नगरों में शिल्प और व्यापार प्रमुख गतिविधियाँ थीं। विशिष्ट वस्तुओं के उत्पादन केंद्रों के रूप में ये नगर विकसित हुए, और उत्पादन अधिक होने से व्यापार का विस्तार हुआ।
iii) धार्मिक महत्व: कुछ नगर धार्मिक कारणों से विकसित हुए, जैसे मंदिरों और तीर्थ स्थलों के आसपास बस्तियाँ बसने लगीं, जो बाद में नगरों का रूप धारण कर गईं।
iv) भौगोलिक स्थिति: अधिकांश नगर नदियों के किनारे या प्रमुख मार्गों के पास विकसित हुए, जिससे व्यापार और सेना के आवागमन में सुविधा होती थी।
v) सुनियोजित संरचना: नगरों में सुनियोजित सड़कों, गलियों, और नालियों का निर्माण किया गया था। इन्हें विभिन्न सामाजिक वर्गों के लिए अलग-अलग हिस्सों में बाँटा गया था।
प्रश्न 16: द्वितीय नगरीकरण के दौरान नगरों की आबादी में कौन-कौन से सामाजिक वर्ग शामिल थे, और उनका जीवन कैसा था?
उत्तर: द्वितीय नगरीकरण के दौरान नगरों की आबादी में कई सामाजिक वर्ग शामिल थे:
i) शासक वर्ग: शासक और उनके परिवार नगरों के प्रमुख भाग में रहते थे, और उनकी जीवनशैली भव्य और संपन्न थी।
ii) पुरोहित वर्ग: पुरोहितों का जीवन धार्मिक गतिविधियों और अनुष्ठानों से जुड़ा होता था। वे धार्मिक अनुष्ठानों का संचालन करते थे और समाज में सम्मानित स्थान रखते थे।
iii) व्यापारी और शिल्पकार: व्यापारी और शिल्पकार नगरों के मुख्य आर्थिक गतिविधियों का संचालन करते थे। वे वस्त्र, बर्तन, और अन्य वस्तुओं का उत्पादन और व्यापार करते थे।
iv) मजदूर और सेवक: मजदूर और सेवक वर्ग नगरों के निर्माण कार्यों, शिल्पकारों की सहायता, और अन्य सामान्य कार्यों में लगे रहते थे। उनका जीवन साधारण और संघर्षमय था।
v) दास: दास वर्ग समाज का सबसे निचला तबका था, जिनका जीवन कठिनाइयों से भरा होता था। वे शासक और धनी वर्गों की सेवा करते थे।
प्रश्न 17: पाटलिपुत्र की स्थापना और विकास में क्या प्रमुख कारक थे, और इसका इतिहास में क्या महत्व है?
उत्तर: पाटलिपुत्र की स्थापना और विकास में कई प्रमुख कारक थे:
i) रणनीतिक स्थिति: पाटलिपुत्र गंगा और गंडक नदियों के संगम पर स्थित था, जो इसे एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और सैन्य केंद्र बनाता था।
ii) अजातशत्रु का योगदान: अजातशत्रु ने पाटलिग्राम में एक सैनिक छावनी की स्थापना की, जो बाद में पाटलिपुत्र के रूप में विकसित हुआ। उसने राजगीर से पाटलिपुत्र को अपनी राजधानी बनाया।
iii) मगध साम्राज्य का केंद्र: पाटलिपुत्र मगध साम्राज्य का राजनीतिक और प्रशासनिक केंद्र बन गया, जहाँ से मौर्य साम्राज्य का विस्तार हुआ। यह नगर मौर्य, शुंग, और गुप्त वंशों की राजधानी भी रहा।
iv) इतिहास में महत्व: पाटलिपुत्र भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण नगर रहा है, जहाँ से मौर्य और गुप्त साम्राज्य का विस्तार हुआ। यह नगर धार्मिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र था और प्राचीन भारत की समृद्धि और विकास का प्रतीक माना जाता है।
प्रश्न 18: द्वितीय नगरीकरण के नगरों के विकास में नदियों और प्रमुख मार्गों का क्या योगदान था?
उत्तर: द्वितीय नगरीकरण के दौरान नगरों के विकास में नदियों और प्रमुख मार्गों का महत्वपूर्ण योगदान था:
i) व्यापार: नदियाँ और प्रमुख मार्ग नगरों के लिए व्यापारिक संपर्क के साधन थे। नदियों के माध्यम से व्यापारिक वस्तुओं का परिवहन आसान होता था, जिससे नगरों का व्यापारिक महत्व बढ़ा।
ii) सेना का आवागमन: प्रमुख मार्गों और नदियों का उपयोग सेना के आवागमन के लिए भी किया जाता था, जिससे नगरों की सुरक्षा सुनिश्चित होती थी और शासकों का नियंत्रण मजबूत होता था।
iii) आर्थिक समृद्धि: नदियों के किनारे बसे नगरों को कृषि और मछली पालन में लाभ होता था, जिससे उनकी आर्थिक समृद्धि बढ़ती थी। प्रमुख मार्गों के निकट बसे नगर व्यापार और व्यवसाय के केंद्र बनते थे।
iv) आबादी का विस्तार: नदियों और मार्गों के पास नगरों का विस्तार आसान था, जिससे इन नगरों की आबादी बढ़ती गई और वे समृद्ध और विकसित होते गए।
प्रश्न 19: महाजनपदों में आर्थिक गतिविधियों का क्या स्वरूप था, और इनमें कौन-कौन से व्यवसाय प्रमुख थे?
उत्तर: महाजनपदों में आर्थिक गतिविधियाँ मुख्य रूप से कृषि, शिल्प, और व्यापार पर आधारित थीं।
i) कृषि: अधिकांश महाजनपदों में कृषि मुख्य पेशा था, जहाँ धान, गेहूँ, जौ, और अन्य फसलें उगाई जाती थीं। कृषकों को फसलों का 1/16 हिस्सा कर के रूप में देना पड़ता था।
ii) शिल्प: शिल्पकारों, जैसे बुनकर, लोहार, सुनार, और कुम्हार, का प्रमुख स्थान था। वे विभिन्न वस्त्र, बर्तन, औजार, और आभूषण बनाते थे।
iii) व्यापार: व्यापारी वस्त्र, बर्तन, और अन्य सामान का व्यापार करते थे। वे इन वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते थे और उन्हें बेचते थे।
iv) पशुपालन: पशुपालन भी एक महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि थी। लोग गाय, भेड़, बकरी, और घोड़े पालते थे, जिनसे उन्हें दूध, घी, और मांस प्राप्त होता था।
प्रश्न 20: द्वितीय नगरीकरण के नगरों में धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का क्या महत्व था?
उत्तर: द्वितीय नगरीकरण के नगरों में धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं:
i) धार्मिक केंद्र: कई नगर धार्मिक केंद्रों के रूप में विकसित हुए, जहाँ मंदिर, तीर्थ स्थल, और मठ थे। ये नगर धार्मिक यात्रियों और तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र बने।
ii) सांस्कृतिक उत्सव: नगरों में धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव मनाए जाते थे, जहाँ लोग एकत्रित होकर पूजा-पाठ, नृत्य, और संगीत का आनंद लेते थे। इन उत्सवों से समाज में एकता और सामूहिकता का विकास हुआ।
iii) शिक्षा और ज्ञान: कुछ नगर शिक्षा और ज्ञान के केंद्र भी थे, जहाँ गुरु-शिष्य परंपरा के तहत वेद, उपनिषद, और अन्य धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया जाता था।
iv) सांस्कृतिक धरोहर: नगरों में सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण और विकास होता था, जिससे समाज में कला, साहित्य, और वास्तुकला का उन्नयन हुआ। यह सांस्कृतिक समृद्धि नगरों की पहचान बन गई और उनकी प्रतिष्ठा को बढ़ावा दिया।
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