जीव जिस प्रक्रम द्वारा अपनी संख्या में वृद्धि करते है, उसे जनन कहते है
जनन के प्रकार– जीवो में जनन मुख्यातः दो तरीके से संपन्न होता है- लैंगिक जनन तथा अलैंगिक जनन
अलैंगिक जनन
अलैंगिक जनन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है–
1. इसमें जीवो का सिर्फ एक व्यष्टि भाग लेता है।
2. इसमें युग्मक अर्थात शुक्राणु और अंडाणु कोई भाग नहीं लेते हैं।
3. इस प्रकार के जनन में या तो समसूत्री कोशिका विभाजन या असमसूत्री कोशिका विभाजन होता है।
4. अलैंगिक जनन के बाद जो संताने पैदा होती है वे आनुवंशिक गुणों में ठीक जनकों के समान होते हैं।
5. इस प्रकार के जनन से ज्यादा संख्या में एवं जल्दी से जीव संतानो की उत्पत्ति कर सकते हैं।
6. इसमें निषेचन की जरुरत नहीं पड़ती है।
जीवो में अलैंगिक जनन निम्नांकित कई विधियों से संपन्न होता है।
विखंडन– विखंडन के द्वारा ही मुख्य रूप से एक कोशिकीय जीव जनन करते हैं। जैसे- जीवाणु, अमीबा, पैरामीशियम, एक कोशिकीय शैवाल, युग्लीना आदि सामान्यतः विखंडन की क्रिया द्वारा ही जनन करते हैं।
विखंडन की क्रिया दो प्रकार से संपन्न होती है
विखंडन की क्रिया दो प्रकार से संपन्न होती है
द्विखंडन एवं
बहुखंडन
(क) द्विखंडन या द्विविभाजन– वैसा विभाजन जिसके द्वारा एक व्यष्टि से खंडित होकर दो या अधिक का निर्माण होता हो, उसे द्विखंडन या द्विविभाजन कहते हैं।
जैसे- जीवाणु, पैरामीशियम, अमीबा, यीस्ट, यूग्लीना आदि में द्विखंडन विधि से जनन होता है।
(ख). बहुखंडन या बहुविभाजन– वैसा विभाजन जिसके द्वारा एक व्यष्टि खंडित होकर अनेक व्यष्टियों की उत्पिŸा करता हो, उसे बहुखंडन या बहुविभाजन कहते हैं। जैसे- अमीबा, प्लैज्मोडियम (मलेरिया परजीवी) आदि में बहुखंडन विधि से जनन होता है।
मुकुलन– मुकुलन एक प्रकार का अलैंगिक जनन है जो जनक के शरीर से कलिका फूटने या प्रवर्ध निकलने के फलस्वरूप संपन्न होता है। जैसे- यीस्ट
अपखंडन या पुनर्जनन– इस प्रकार के जनन में जीवों का शरीर किसी कारण से दो या अधिक टुकड़ों में खंडित हो जाता है तथा प्रत्येक खंड अपने खोए हुए भागों का विकास कर पूर्ण विकसित नए जीव में परिवर्तित हो जाता है। जैसे- स्पाइरोगाइरा, प्लेनेरिया आदि में जनन अपखंडन विधि से होता है।
बीजाणुजनन– इस प्रकार के जनन में सामान्यतः सूक्ष्म थैली जैसी बीजाणुधानियों का निमार्ण होता है। हवा के द्वारा इनका प्रकीर्णन दूर-दूर तक होता है। अनुकूल जगह मिलने पर बीजाणु अंकुरित होते हैं तथा उनके भीतर की कोशिकीय रचनाएँ बाहर निकलकर वृ़द्ध करने लगती है। जब ये विकसित होकर परिपक्व हो जाती है तो इनमें पुनः जनन करने की क्षमता पैदा हो जाती है।
पौधों मे कायिक प्रवर्धन
जनन कि वह प्रक्रिया जिसमे पादप शरीर का कोई कायिक या वर्धी भाग जैसे जड़ तना पत्ता आदि उससे विलग और परिवर्द्धित होकर नए पौधे का निर्माण करता है, उसे कायिक प्रवर्धन कहते हैं।
लैंगिक जनन- जनन की वह विधि जिसमें नर और मादा भाग लेते हैं, उसे लैंगिक जनन कहते हैं।
लिंग के आधार पर जीवों को दो वर्गों मे बाँटा गया है–
1. एकलिंगी और 2. द्विलिंगी
एकलिंगी– वे जीव जिसमें सिर्फ एक व्यष्टि होते हैं, अर्थात नर और मादा नहीं होते हैं। उसे एकलिंगी कहते हैं।
जैसे- अमीबा, जीवाणु आदि।
द्विलिंगी– वे जीव जिसमें नर और मादा दोनो होते हैं, उसे द्विलिंगी कहते हैं। जैसे- मनुष्य, घोड़ा आदि।
निषेचन– नर युग्मक और मादा युग्मक के संगलन को निषेचन कहा जाता हैं।
मनुष्य का प्रजनन अंग– मानव जननांग साधारणतः लगभग 12 वर्ष की आयु मे परिपक्व एवं क्रियाशिल होने लगते हैं। इस अवस्था में बालक-बालिकाओ के शरीर में कुछ परिवर्तन होना प्रारंभ हो जाता हैं। यह अवस्था किशोरावस्था कहलाता हैं।
निषेचन– नर युग्मक शुक्राणु तथा मादा युग्मक अंडाणु का संयोजन या युग्मन ही निषेचन कहलाता है।
लैंगिक जनन संचारित रोग– यौन संबंध से होनेवाले संक्रामक रोग को लैंगिक जनन संचारित रांग कहते हैं।
बैक्टीरिया–जनित रोग– गोनोरिया, सिफलिस, यूरेथ्राइटिस तथा सर्विसाइटिस आदि।
वाइरस–जनित रोग– सर्विक्स कैंसर, हर्पिस तथा एड्स आदि।
प्रोटोजोआ–जनित रोग– स्त्रियों के मूत्रजनन नलिकाओं में एक प्रकार के प्रोटोजोआ के संक्रमन से होने वाले रोग ट्राइकोमोनिएसिस है।
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