रासायनिक संघटक तथा कार्यविधि के आधार पर पादप हार्मोन को पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है- 1. ऑक्जिन, 2. जिबरेलिन्स, 3. साइटोकाइनिन, 4. ऐबसिसिक एसिड और 5. एथिलीन
ऑक्जिन के कार्य- यह कोशिका विभाजन और कोशिका दिर्घन में सहायक होता है। ऑक्जिन तने के वृद्धि में भी सहायक होते हैं। यह प्रायः बीजरहित फलों के उत्पादन में भी सहायक होते हैं।
जिबरेलिन्स के कार्य- यह पौधे के स्तंभ की लंबाई में वृद्धि करते हैं। इनके उपयोग से बड़े आकार के फलों एवं फूलों का उत्पादन किया जाता है। बीजरहित फलों के उत्पादन में ये ऑक्जिन की तरह सहायक होते हैं।
साइटोकाइनिन के कार्य- ये पौधों में जीर्णता को रोकते हैं एवं पर्णहरित को काफी समय तक नष्ट नहीं होने देते हैं। इससे पत्तियों अधिक समय तक हरी और ताजी बनी रहती है।
ऐबसिसिक एसिड के कार्य- यह ऐसा रासायनिक यौगिक है, जिसे किसी भी पौधे पर छिड़कने पर शीघ्र ही पत्तियों का विलगन हो जाता है।
एथिलीन के कार्य- यह पौधे के तने के अग्रभाग में बनता है और विसरित होकर फलों के पकाने में सहायता करता है। अतः इसे फल पकानेवाला हार्मोन भी कहा जाता है। कृत्रिम रूप से फलों को पकाने में इसका उपयोग किया जाता है।
मनुष्य की मस्तिष्क- मस्तिष्क एक अत्यंत महत्वपूर्ण कोमल अंग है। तंत्रिका तंत्र के द्वारा शरीर की क्रियाओं के नियंत्रण और समन्वय में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका इसी की होती है।
इसका औसतन आयतन लगभग 1650 ml तथा औसत भार करीब 1.5 Kg होता है। मस्तिष्क को प्रमुख तीन भागो में बाँटा गया है-
अग्रमस्तिष्क
मध्यमस्तिष्क
पश्चमस्तिस्क
अग्रमस्तिष्क – यह दो भागों (क) प्रमस्तिष्क या सेरिब्रम तथा (ख)डाईएनसेफ़्लॉन में बाँटा होता है।
(क) प्रमस्तिष्क या सेरिब्रम- यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग है। यह मस्तिष्क का अत्यंत महत्वपूर्ण भाग है। यह बुद्धि और चतुराई का केंद्र है। मानव में किसी बात को सोचने-समझने की शक्ति, स्मरण शक्ति, कार्य को करने की प्रेरणा, घृणा, प्रेम, भय, हर्ष, कष्ट के अनुभव जैसी क्रियाओ का नियंत्रण और समन्वय सेरीब्रम के द्वारा ही होता है। यह मस्तिष्क के अन्य भागों के कार्यो पर भी नियंत्रण रखता है। जिस व्यक्ति में यह औसत से छोटा होता है। वह व्यक्ति मंदबुद्धि होता है।
(ख) डाइएनसेफ्लोन- यह कम या अधिक ताप के आभास तथा दर्द और रोने जैसी क्रियाओ का नियंत्रण करता है।
मध्यमस्तिष्क- यह संतुलन एवं आँख की पेशियों को नियंत्रित करने के केंद्र होते हैं।
पश्चमस्तिस्क- यह दो प्रकार के होते हैं।
(क) अनुमस्तिष्क या सेरीबेलम
(ख) मस्तिष्क स्टेम
(क) अनुमस्तिष्क या सेरीबेलम- अनुमस्तिष्क मुद्रा समन्वय, संतुलन, ऐक्षिक पेशियों की गति इत्यादि का नियंत्रण करता है। यदि मस्तिष्क से सेरीबेलम को नष्ट कर दिया जाय तो सामान्य ऐच्छिक गतियाँ असंभव हो जाएगी। उदहारण के लिए हाथों का परिचलन ठीक से नहीं होगा, अर्थात वस्तुओं को पकड़ने में हाथों को कठिनाई होगी। पैरों द्वारा चलना मुश्किल हो जायेगा आदि। इसका कारण यह है की हाथों और पैरों की ऐक्षिक पेशियों का नियंत्रण सेरीबेलम के नष्ट होने से समाप्त हो जाता है। इसी प्रकार, बातचीत करने में कठिनाई होगी, क्यूंकि तब जीभ और जबरों की पेशियों के कार्यों का समन्वय नहीं हो पायेगा इत्यादि।
ख. मस्तिष्क स्टेम –
पॉन्स बैरोलाई
मेडुला आब्लांगेटा
पॉन्स बैरोलाई – यह श्वसन को नियंत्रित करता है।
मेडुला आब्लांगेटा- मेडुला द्वारा आवेगो का चालन मस्तिष्क और मेरुरज्जु के बीच होता है। मेडुला में अनेक तंत्रिका केंद्र होते है जो हृदय स्पंदन या हृदय की धड़कन, रक्तचाप और श्वसन गति की दर का नियंत्रण करते है। मस्तिष्क के इसी भाग द्वारा विभिन्न प्रतिवर्ती क्रियाओ जैसे खाँसना, छींकना, उलटी करना पाचक रसो के स्त्राव इत्यादि का नियंत्रण होता है।
मस्तिष्क के कार्य
1. आवेग ग्रहण- मस्तिष्क सभी संवेदी अंगों से आवेगो को ग्रहण करता है। मस्तिष्क में ही ग्रहण किये गए आवेगों का विश्लेषण भी होता है।
2. ग्रहण किये गए आवेगों की अनुक्रिया- विभिन्न संवेदी अंगों से जो आवेग मस्तिष्क में पहुँचते हैं, विश्लेषन के बाद मस्तिष्क उनकी अनुक्रिया के लिए उचित निर्देश निर्गत करता है।
3. विभिन्न आवेगो का सहसम्बन्ध- मस्तिष्क को भिन्न-भिन्न संवेदी अंगो से एक साथ कई तरह के आवेग या संकेत प्राप्त होते है। मस्तिष्क इन आवेगों को सहसंबंधित कर विभिन्न शारीरिक कार्यों का कुशलतापूर्वक समन्वय करता है।
4. सूचनाओं का भण्डारण- मानव मस्तिष्क का यह सबसे महत्वपूर्ण कार्य सूचनाओं को भंडार करना है। मस्तिष्क में विभिन्न सूचनाएं चेतना या ज्ञान के रूप में संचित रहती है। इसलिए मस्तिष्क को ‘चेतना का भंडार‘ या ‘ज्ञान का भंडार‘ कहा जाता है।
प्रतिवर्ती चाप
न्यूरोनों में आवेग का संचरण एक निश्चित पथ में होता है। इस पथ को प्रतिवर्ती चाप कहते है।
हार्मोन- ये विशिष्ट कार्बनिक यौगिक है जो बहुत कम मात्रा में अन्तः स्त्रावी ग्रंथियों द्वारा स्त्रावित होते है। इनकी बहुत थोड़ी मात्रा ही विभिन्न प्रकार के शारीरिक क्रियात्मक कार्यों के नियंत्रण और समन्वय के लिए पर्याप्त होती है।
मनुष्य के अंतःस्त्रावी तंत्र
मनुष्य के शरीर में पाई जानेवाली अंतःस्त्रावी ग्रंथियाँ निम्नलिखित हैं- 1. पिट्युटरी ग्रंथि, 2. थाइरॉइड ग्रंथि, 3. पाराथाइरॉइड ग्रंथि, 4. एड्रिनल ग्रंथि, 5. अग्न्याशय की लैंगरहैंस की द्वीपिकाएँ और 6. जनन ग्रंथियाँ : अंडाशय तथा वृषण
1. पिट्युटरी ग्रंथि-
पिट्युटरी ग्रंथि कई अन्य अंतःस्त्रावी ग्रंथियों का नियंत्रण करती है, इसलिए इसे मास्टर ग्रंथि कहते हैं।
पिट्युटरी ग्रंथि दो भागों में बँटा होता है- अग्रपिंडक और पश्चपिंडक
अग्रपिंडक द्वारा स्त्रावित वृद्धि हार्मोन है तथा पश्चपिंडक द्वारा स्त्रावित हार्मोन शरीर में जल-संतुलन को बनाए रखने में सहायक होता है।
2. थाइरॉइड ग्रंथि-
इस ग्रंथि से थाइरॉक्सिन हार्मोण प्रवाहित होता है। इस हार्मोन में आयोडीन अधिक मात्रा में रहता है। थाइरॉक्सिन कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा के सामान्य उपापचय का नियंत्रण करता है। अतः यह शरीर के सामान्य वृद्धि, विशेषकर हड्डियों, बालों इत्यादि के विकास के लिए अनिवार्य है।
आयोडिन की कमी से थाइरॉइड ग्रंथि द्वारा बननेवाला हॉर्मोन थाइरॉक्सिन कम बनता है। इस हार्मोन के बनने की गति को बढ़ाने के प्रयास में कभी-कभी थाइडॉइड ग्रंथि बढ़ जाती है, जिसे घेघा या गलगंड कहते है। थाइरॉक्सिन की कमी से शारीरिक तथा मानसिक वृद्धि प्रभावित होती है।
3. पाराथाइरॉइड ग्रंथि- इसके द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन रक्त में कैल्सियम की मात्रा नियंत्रण करते हैं।
4. एड्रिनल ग्रंथि- एड्रीनल ग्रंथि के दो भाग होते हैं- बाहरी कॉर्टेक्स और अंदरूनी मेडुला
एड्रीनल कॉर्टेक्स (बाहरी कॉर्टेक्स) द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन-
1. ग्लूकोकॉर्टिक्वायड्स- ये कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं वसा-उपापचय का नियंत्रण करते हैं।
2. मिनरलोकॉर्टिक्वायड्स- इनका मुख्य कार्य वृक्क नलिकाओं द्वारा लवण के पुनः अवशोषण एवं शरीर में अन्य लवणों की मात्रा का नियंत्रण करना है। यह शरीर में जल संतुलन को भी नियंत्रित करता है।
3. लिंग हार्मोन- ये हार्मोन पेशियों तथा हड्डियों के परिवर्द्धन, बाह्यलिंगों बालों के आने का प्रतिमान एवं यौन-आचरण का नियंत्रण करते हैं।
एड्रीनल मेडुला (अंदरूनी मेडुला) द्वारा स्त्रावित हार्मोन और उसके कार्य
एड्रीनल ग्रंथि के इस भाग द्वारा निम्नलिखित दो हार्मोन स्त्रावित होते हैं-
1. एपिनेफ्रीन- अत्यधिक शारीरिक एवं मानसिक तनाव, डर, गुस्सा एवं उत्तेजना की स्थिति में इस हार्मोन का स्त्राव होता है।
2. नॉरएपिनेफ्रीन- ये समान रूप से हृदय-पेशियों की उत्तेजनशीलता एवं संकुचनशीलता को तेज करते है
3. अग्नयाशय की लैंगरहैंस की द्विपिकाएँ
इसके हार्मोन रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित करते है
4. जनन ग्रन्थियाँ ( अंडाशय तथा वृषण )
अंडाशय के द्वारा कई हार्मोन का स्त्राव होता है बालिकाओ के शरीर में यौवनावैवस्था होनेवाले सभी परिवर्तन इन हार्मोन के कारण होते है।
वृष्ण द्वारा स्त्राव हार्मोन को एंड्रोजेंस कहते है। सबसे प्रमुख एंड्रोजेंस हार्मोन को टेस्टोस्टेरॉन कहते हैं।
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