ऊर्जा– कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं। जब किसी वस्तु में कार्य करने की क्षमता होती है तो हम कहते हैं कि वस्तु में ऊर्जा है।
ऊर्जा के अनेक रूप हैं। जैसे यांत्रिक ऊर्जा (जिसमें गतिज ऊर्जा और स्थितिज ऊर्जा दोनों शामिल है।) रासायनिक ऊर्जा, ऊष्मा ऊर्जा, प्रकाश ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा आदि।
ऊर्जा के स्त्रोत– जिस वस्तु से हमें ऊर्जा प्राप्त होती है, उसे ऊर्जा के स्त्रोत कहते हैं। जैसे- LPG
ऊर्जा संरक्षण सिद्धांत के अनुसार ऊर्जा न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है।
ईंधन– वैसे पदार्थों को ईंधन कहते हैं जो दहन पर ऊष्मा उत्पन्न करते हैं।
अच्छा इंर्धन की विशेषताएँ–
1. जो जलने पर अधिक ऊष्मा निर्मुक्त करें,
2. जो आसानी से उपलब्ध हो,
3. जो अधिक धुआँ उत्पन्न न करें,
4. जिसका भंडारण और परिवहन आसान हो,
5. जिसके दहन की दर मध्यम हो, और
6. जिसके जलने पर विषैले उत्पाद पैदा न हों।
ऊर्जा के परंपरागत स्त्रोत– ऐसे ऊर्जा के स्त्रोत जो बहुत लंबे समय से चले आ रहे हैं, उसे ऊर्जा के परंपरागत स्त्रोत कहते हैं। जैसे- कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस।
ऊर्जा के गैर परंपरागत स्त्रोत– ऐसे ऊर्जा के स्त्रोत जिनका हम लंबे समय से उपयोग नहीं कर रहें है, उसे ऊर्जा के गैर परंपरागत स्त्रोत कहते हैं। जैसे- सौर ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा, तरंग ऊर्जा आदि।
जीवाश्म ईंधन– करोड़ों वर्षों तक पृथ्वी की सतह में गहरे दबे हुए पौधे और पशुओं के अवशेषों से बने ईंधन को जीवाश्म ईंधन कहते हैं। जैसे- कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस।
जल–विद्युत के लाभः
1. ऊर्जा का यह स्त्रोत नवीकरणीय है और प्रदूषणमुक्त है।
2. अन्य प्रकार के शक्ति संयंत्रों की तुलना में जलविद्युत उत्पादन की कीमत कम होती है।
3. जल-विद्युत संयंत्र के लिए बनाए गए बाँध बाढ़-नियंत्रण और सिंचाई में भी सहायक होते हैं।
जल–विद्युत की हानियाँः
1. सिर्फ सीमित संख्या में ऐसे स्थानों पर विशेषकर, पहाड़ी भू-भागों पर बाँध बनाए जा सकते हैं।
2. बाँध के कारण कृषियोग्य भूमि और मानव निवास के बड़े क्षेत्र को त्यागना पड़ता है, क्योंकि वह स्थान जलमग्न हो जाता है। विशाल पारिस्थितिक तंत्र नष्ट हो जाते हैं जब बाँध में पानी के अंदर डूब जाते हैं।
3. जलमग्न वनस्पति अनॉक्सि शर्तों के अधीन सड़ती है और मेथेन की बड़ी मात्रा उत्पन्न करती है, मेथेन ग्रीनहाउस गैस है। जो वायुमंडल पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
4. बड़े बाँध निर्माण के साथ कुछ समस्याएँ जुड़ी होती है। यह विस्थापित व्यक्तियों के संतोषजनक पुनर्वास की समस्या उत्पन्न करता है।
बायोगैस संयंत्रः
यह संयंत्र ईंटों से बना एक गुबंद रूप संरचना है। गोबर और पानी का गारा मिश्रण टंकी में बनाया जाता है।
विघटन प्रक्रिया को पूरा होने से कुछ दिन लगते हैं और तब यह मेथेन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन और हाइड्रोजन सल्फाइड जैसे गैसों को उत्पन्न करती है। बायोगैस को पाचित्र के ऊपर गैस टंकी में जमा किया जाता है जहाँ इसे पाइपों द्वारा उपयोग के लिए भेजा जाता है।
बायोगैस संयंत्र की विशेषताएँ–
1. बायोगैस में 75 प्रतिशत तक मेथेन होता है। अतः यह एक उत्तम ईंधन है।
2. यह बिना धुआँ के जलता है।
3. यह राख जैसा कोई अवशेष नहीं छोड़ता है।
4. इससे तापन की उच्च क्षमता प्राप्त होती है।
5. प्रकाश-व्यवस्था के लिए भी बायोगैस का उपयोग होता है।
6. यह ऊर्जा की नवीकरणीय स्त्रोत है।
7. बचा हुआ अपशिष्ट उŸाम खाद के रूप में होता है।
बायोगैस संयंत्र के लाभ :
1. बायोगैस संयंत्र सस्ता होता है।
2. बायोगैस संयंत्र चलाने में यह संयंत्र सुविधाजनक होता है।
3. बायोगैस सभी जगह आसानी से बनाया जा सकता है।
पवन ऊर्जा के लाभ :
1. पवन ऊर्जा नवीकरणीय ऊर्जा का पर्यावरण-अनुकूल और दक्ष स्त्रोत है।
2. विधुत उत्पादन के लिए आवर्तक व्यय आवश्यक नहीं होता है।
पवन ऊर्जा की सीमाएँ
पवन ऊर्जा के दोहन में अनेक सीमाएँ हैं–
1. पवन ऊर्जा फार्म उन्हीं स्थानों पर स्थापित किए जा सकते हैं जहाँ वर्ष के अधिक भाग तक पवन चलता है।
2. टरबाइन की आवश्यक चाल को बनाए रखने के लिए पवन चाल 15 km/h से अधिक होनी चाहिए।
3. जब पवन नहीं है तब उस अवधि के दरम्यान ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति के लिए संचालक सेलों जैसी कोई सहायक सुविधा होनी चाहिए।
4. पवन ऊर्जा फार्म की स्थापना के लिए भूमि का बड़ा क्षेत्र आवश्यक होता है। 1 MW जनित्र के लिए फार्म को लगभग 2 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता होती है।
5. फार्म के संस्थापन की प्रारंभिक लागत बहुत अधिक होती है।
6. चूँकि टावर और ब्लेड वर्षा, सूर्य, आँधी और चक्रवात जैसे प्राकृतिक आपदाओं के लिए खुले रहते हैं, अतः उनके उच्च स्तरीय रख-रखाव की आवश्यकता होती है।
डेनमार्क को पवनों का देश कहा जाता है। भारत विद्युत उत्पदान के लिए पवन ऊर्जा दोहन में पाँचवें स्थान पर है।
सौर कुकर से होने वाला लाभ–
1. सौर कुकर सस्ता होता है।
2. अनेक बर्तनों में विभिन्न खाद्य पदार्थों को कुकर के भीतर रखा जा सकता है और इसलिए वे एक साथ पकाए जा सकते हैं।
3. ये कुकर ईंधन (जैसे- जलावन लकड़ी, रसोई गैस आदि) की खपत कम करते हैं।
4. ये धुआँ उत्पन्न नहीं करते हैं।
सौर कुकर से होने वाला हानियाँ
1. सौर कुकरों का उपयोग सिर्फ दिन के समय किया जा सकता है।
2. सिर्फ गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में इनका उपयोग प्रभावकारी ढंग से किया जा सकता है।
3. जाड़े और बादल वाले दिनों में ये भोजन पकाने में लंबा समय लेते हैं।
4. भोजन तलने या रोटी पकाने के लिए इनका उपयोग नहीं किया जा सकता है।
सौर सेल- उस युक्ति को जो सौर ऊर्जा को सीधे विद्युत में बदलता है, सौर सेल कहते हैं। सिलिकन से सौर सेल बनाया जाता है।
सौर सेल से होनेवाला लाभ
1. सौर सेलों का कोई चल हिस्से नहीं होते हैं।
2. कम रख-रखाव की जरूरत होती है।
3. सुदुर और बहुत कम बसे हुए क्षेत्रों जिनमें शक्ति संचरण लाइन खर्चीला होता है, वहाँ सौर सेल लगाया जाता है।
4. उच्च किमत और निम्न दक्षता के बावजूद सौर सेलों का उपयोग वैज्ञानिक और शिल्पवैज्ञानिक अनुप्रयोगों के लिए होता है।
5. कृत्रिम उपग्रह और अंतरिक्ष प्रोब में ऊर्जा के लिए मुख्य स्त्रोत के रूप में सौर सेलों का उपयोग किया जाता है।
6. यातायात सिग्नलों, कैलकुलेटरों और अनेक खिलौनों में सौर सेल लगे होते हैं।
7. रेडियो या बेतार संचार प्रणाली या सुदूर स्थानों में टीवी रिले स्टेशन सौर सेल पैनल का उपयोग करते हैं।
सौर सेल से होनेवाला हानियाँ
1. सिलिकन जो सौर सेलों को बनाने के लिए इस्तेमाल होता है, प्रकृति में भरपूर हैं, किन्तु सौर सेल को बनाने के लिए विशिष्ट ग्रेड वाले सिलिकॉन की उपलब्धता सीमित है।
2. निर्माण की संपूर्ण प्रक्रिया अभी भी बहुत खर्चीली है, पैनेल के सेलों के अंतःसंबंध के लिए प्रयुक्त चाँदी इसकी कीमत को और भी बढ़ा देती है।
3. उच्च कीमत के कारण सौर सेलों का घरेलू उपयोग सीमित है।
ज्वारीय ऊर्जा
घूमति पृथ्वी पर मुख्यतः चंद्रमा के गुरूत्वीय खिंचाव के कारण सागर में पानी का तल उठता और गिरता है। इस घटना को उच्च ज्वार और निम्न ज्वार कहते हैं। सागर तलों में इस अंतर से हमें ज्वारीय ऊर्जा प्राप्त होता है।
भूऊष्मीय ऊर्जा
पृथ्वी के पर्पटी के गहरे गर्म क्षेत्रों में बने पिघले चट्टान ऊपर की ओर धकेले जाते हैं और निश्चित क्षेत्रों में फँस जाते है जिन्हें गर्म स्पॉट कहते हैं। जब भूमिगत पानी गर्म स्पॉट के संपर्क में आता है तो भाप उत्पन्न होती है। कभी-कभी उस क्षेत्र के गर्म पानी के निकास पृथ्वी की सतह पर निकलते हैं। उस निकासों को गर्म झरना या स्त्रोत कहते हैं। चट्टानों में फँसी भाप पाइप से होकर टरबाइन तक भेजी जाती है और विद्युत उत्पादन के लिए इस्तेमाल होती है।
भूऊष्मीय ऊर्जा के लाभ
1. सौर और ज्वारीय ऊर्जा से भिन्न भूऊष्मीय ऊर्जा संयंत्र रात-दिन कार्य कर सकते हैं।
2. भूऊष्मीय ऊर्जा लगभग प्रदुषण मुक्त है।
3. कोयला-आधारित संयंत्र की अपेक्षा भूऊष्मीय ऊर्जा संयंत्र को चलाना सस्ता होता है।
4. ऊर्जा का यह स्त्रोत मुफ्त और नवीकरणीय है।
नाभिकीय विखंडन में कोई भारी नाभिक दो अपेक्षाकृत हलके नाभिक में टूट जाता है।
नाभिकीय संलंयन में दो हलके नाभिक एक भारी नाभिक बनाने के लिए संयोजन करते हैं।
सूर्य में ऊर्जा चार हाइड्रोजन नाभिकों के संलंयन से बने एक हीलियम द्वारा उत्पन्न होती है।
हाइड्रोजन बम नाभिकीय संलयन के सिद्धांत पर कार्य करता है।
आजकल सभी व्यवसायिक रिऐक्टर नाभिकीय विखंडन पर आधारित है। जैसे तारापुर, राणा प्रताप सागर
ऐसे स्त्रोत जो किसी दिन समाप्त हो जाएँगे, ऊर्जा के अनवीकरणीय स्त्रोत कहे जाते हैं। जैसे कोयला, पेट्रोलियम
ऐसे ऊर्जा स्त्रोत जो पुनः उत्पन्न किए जा सकते हैं, ऊर्जा के नवीकरणीय स्त्रोत कहे जाते हैं। जैसे सूर्य, पवन, बहता पानी।
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