विधुत धारा– आवेश के प्रवाह को विधुत धारा कहते हैं।
चालक– ऐसे पदार्थ जिनसे होकर विधुत आवेश एक भाग से दूसरे भाग तक जाता है, चालक कहे जाते हैं।
जैसे- धातु, मनुष्य या जानवर का शरीर, पृथ्वी आदि।
विधुतरोधी– ऐसे पदार्थ जिनसे होकर विधुत आवेश एक भाग से दूसरे भाग तक नहीं जाता है, विधुत रोधी कहे जाते हैं। जैसे- काँच, प्लैस्टिक, रबर, लकड़ी आदि।
विधुत विभव– किसी बिंदु पर विधुत विभव कार्य का वह परिणाम है जो प्रति एकांक (इकाई) आवेश को अनंत से उस बिंदु तक लाने में किया जाता है।
यदि आवेश q को अनंत से किसी बिंदु p तक लाने में किया गया कार्य w हो, तो उस बिंदु p पर विधुत विभव होता है-
V = W/q
विभवांतर– किन्ही दो बिन्दुओं के बीच विभवांतर की माप उस कार्य से होती है जो प्रति एकांक आवेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किया जाता है।
यदि एक आवेश q को बिंदु B से बिंदु A तक लाने में किया गया कार्य VAB हो, तो A और B के बीच विभवांतर
VAB= W/q
सेल या बैटरी– सेल या बैटरी एक ऐसी युक्ति है, जो अपने अंदर हो रहेरासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा सेल के दोनों इलेक्ट्रोडों के बीच विभवांतर बनाए रखती है।
विधुत परिपथ– जिस पथ से होकर विधुत-धारा का प्रवाह होता है, उसे विधुत-परिपथ कहते हैं।
ऐमीटर– जिस यंत्र द्वारा किसी विधुत-परिपथ की धारा मापी जाती है, उसे ऐमीटर कहते है।
वोल्टमीटर– जिस यंत्र द्वारा किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच विभ्वांतर को मापा जाता है, उसे वोल्टमीटर कहते हैं।
ऐमीटर और वोल्टमीटर में अंतर–
ऐमीटर–
1. यह किसी विधुत-परिपथ में धारा की प्रबलता को मापता है।
2. यह किसी विधुत परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है।
3. इसका स्केल ऐम्पियर (A) में अंकित होता है।
वोल्टमीटर–
1. यह किसी विधुत परिपथ में किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच विभवांतर को मापता है।
2. यह किसी विधुत परिपथ में समांतरक्रम में जोड़ा जाता है।
3. इसका स्केल वोल्ट (V) में अंकित होता है।
ओम का नियम
1826 में जर्मन वैज्ञानिक जॉर्ज साइमन ओम ने किसी चालक के सिरों पर लगाए विभवांतर तथा उसमें प्रवाहित होनेवाली विधुत-धारा का संबंध एक नियम द्वारा व्यक्त किया। इस नियम को उन्हीं के नाम पर ‘ओम का नियम‘ कहा जाता है।
ओम के नियम के अनुसार,
यदि किसी चालक के ताप में परिवर्तन न हो, तो उसमें प्रवाहित विधुत-धारा उसके सिरों के बीच आरोपित विभवांतर के समानुपाती होती है।
I = V/R
जहाँ, R एक नियतांक है जिसे चालक का प्रतिरोध कहते हैं।
ओम का नियम का सत्यापन–
ओम का नियम के सत्यापन के लिए एक शुष्क सेल, एक ऐमीटर A, एक वोल्टमीटर V, एक स्विच S तथा एक नाइक्रोम तार के टुकड़े PQ को संयोजित किया जाता है।
स्विच S को बंद करने पर परिपथ में धारा प्रवाहित होने लगती है। ऐमीटर A परिपथ में प्रवाहित होनेवाली धारा I को मापता है तथा वोल्टमीटर V नाइक्रोम के तार PQ के सिरों P एवं Q के बीच का विभवांतर V मापता है।
अब एक के स्थान पर दो सेल लगाकर पुनः ऐमीटर तथा वोल्टमीटर के पठन नोट करते हैं। इस प्रयोग को बारी-बारी से तीन, चार और पाँच सेलों को परिपथ में जोड़कर दुहराते हैं। हम पाते हैं कि प्रत्येक बार अनुपात V/I का मान लगभग समान आता है।
अब यदि विभवांतर V को X-अक्ष पर तथा धारा I को Y-अक्ष पर लेकर V तथा I के बीच एक ग्राफ खींचा जाए, तो प्राप्त ग्राफ एक सरल रेखा होता है। इससे यह सिद्ध होता है कि विधुत-धारा I विभवांतर V के समानुपाती होती है।
प्रतिरोध– किसी पदार्थ के वह गुण जो उससे होकर धारा के प्रवाह का विरोध करता है, उस पदार्थ का विधुत प्रतिरोध या केवल प्रतिरोध कहलाता है।
प्रतिरोध का SI मात्रक ओम Ω होता है। एक ओम एक वोल्ट प्रति ऐम्पियर होता है।
प्रतिरोधक– उच्च प्रतिरोध वाले पदार्थों को प्रतिरोधक कहा जाता है।
प्रतिरोधक एक युक्ति है और प्रतिरोध उसका एक गुण है।
किसी चालक का प्रतिरोध निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है-
1. तार की लंबाई पर– किसी तार का प्रतिरोध R उसकी लंबाई l के समानुपाती होता है।
2. तार की मोटाई पर– किसी तार का प्रतिरोध उसके अनुप्रस्थ-काट के क्षेत्रफल A के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
3. चालक के पदार्थ पर– यदि विभिन्न पदार्थों के तार समान लंबाई और समान मोटाई के हों, तो उनके प्रतिरोध भिन्न-भिन्न होंगे।
4. चालक के ताप पर– ताप बढ़ने से चालक का ताप बढ़ता है।
प्रतिरोधकों का समुहन–
दो या दो से अधिक प्रतिरोधकों को एक-दूसरे से कई विधियों द्वारा जोड़ा जा सकता है। इसमें दो विधियाँ मुख्य हैं-
1. श्रेणीक्रम समूहन तथा
2. समांतरक्रम समूहन
3. श्रेणीक्रम समूहन– श्रेणीक्रम में जुड़े हुए प्रतिरोधकों का समतुल्य प्रतिरोध उन प्रतिरोधकों के अलग-अलग प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है।
4. समांतरक्रम समूहन– पार्श्वक्रम या समांतरक्रम में जुड़े हुए प्रतिरोधकों के समतुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम उन प्रतिरोधकों के अलग-अलग प्रतिरोधों के व्युत्क्रमों के योग के बराबर होता है।
प्रतिरोधकों के श्रेणीक्रम तथा समांतरक्रम समुहन में अंतर–
श्रेणीक्रम समुहन–
1. सभी प्रतिरोधकों में एक ही धारा प्रवाहित होती है, परन्तु उनके सिरों के बीच विभवांतर उनके प्रतिरोधकों के अनुसार अलग-अलग होता है।
2. प्रतिरोधकों का समतुल्य प्रतिरोध सभी प्रतिरोधकों के अलग-अलग प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है।
3. समतुल्य प्रतिरोध का मान प्रत्येक प्रतिरोधकों के प्रतिरोध के मान से अधिक होता है।
समांतरक्रम समुहन–
1. सभी प्रतिरोधकों के सिरों के बीच एक ही विभवांतर होता है, परंतु उनके प्रतिरोधों के मान के अनुसार उनमें भिन्न-भिन्न धारा प्रवाहित होती है।
2. प्रतिरोधकों के समतुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम सभी प्रतिरोधकों के अलग-अलग प्रतिरोधों के व्युत्क्रम के योग के बराबर होता है।
समतुल्य प्रतिरोध का मान प्रत्येक प्रतिरोधक के प्रतिरोध के मान से कम होता है।
3. विधुत–शक्तिः किसी विधुत-परिपथ में विधुत ऊर्जा के व्यय की दर को उस परिपथ की विधुत-शक्ति कहते हैं।
Note: विधुत-शक्ति का मात्रक वाट होता है। इसे संकेत में W से सुचित किया जाता है।
बिजली के उपकरणों की सुरक्षा के लिए फ्यूज का उपयोग किया जाता है।
फ्यूज के तार ऐसे पदार्थ के बने होते हैं जिनकी प्रतिरोधकता अधिक होती है और गलनांक कम।
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