प्रश्न 1. मंगम्मा का अपनी बहू के साथ किस बात को लेकर विवाद था?
उत्तर-
मंगम्मा ने अपनी बहू नंजम्मा को पोते को लेकर डाँटा था। एक दिन अपने बेटे की किसी गलती पर उनकी माँ नंजम्मा उसे पीट रही थी। पहले तो कुछ देर मंगम्मा चुप रही किन्तु जब रहा न गया तो मंगम्मा ने बहू से कहाँ- “क्यों री राक्षसी इस छोटे से बच्चे को क्यों पीट रही है ?” बस बहू चढ़ बैठी। खूब सुनाई उसने। जब मंगम्मा ने कहा कि मैं तुम्हारे घरवाले की माँ हूँ तो बहू ने भी कहा-“मैं भी इसकी माँ हूँ। मुझे क्या अकल सिखाने चली है ?” बात बढ़ गई। जब मंगम्मा ने बेटे से शिकायत की तो उसने कहा वह अपने बेटे को मारती है तो तुम क्यों उस झगड़े में पड़ती हो? मंगम्मा ने कहा- ‘बीबी ने तुझ पर जादू फेरा है बस, उसी दोपहर बहू ने मंगम्मा के बर्तन भांडे अलग कर दिए।
प्रश्न 2. रंगप्पा कौन था और वह मंगम्मा से क्या चाहता था?
उत्तर-
रंगजा रंगप्पा के गाँव का आदमी था। बड़ी शौकीन तबीयत का। कभी-कभार जूआ भी खेलता था। जब उसे पता चला कि मंगम्मा बेटे से अलग रहने लगी है तो वह मंगम्मा के पीछे पड़ गया। एक दिन उससे हाल-चाल पूछा और बोला कि मुझे रुपयों की जरूरत है। दे दो लौटा दूँगा। मंगम्मा ने जब कहा कि पैसे कहाँ हैं तो बोला कि पैसे यहाँ-वहाँ गाड़कर रखने से क्या फायदा दूसरे दिन रंगप्पा ने अमराई के पीछे रोककर बाँह पकड़ ली और कहा- ‘जरा बैठो मंगम्मा, जल्दी क्या है ? दरअसल, रंगप्पा लालची और लम्पट दोनों ही था।
प्रश्न 3. बहू ने सास को मनाने के लिए कौन-सा तरीका अपनाया ?
उत्तर-
बहू को जब पता चला कि रंगप्पा उसकी सास मंगम्मा के पीछे पड़ गया है तो उसके कान खड़े हो गए। कहीं सास के रुपये-पैसे रंगप्पा न ले ले, इस आशंका से वह बेचैन हो गई। तब उसने योजना बनाई और अपने बेटे से कहा कि जा दादी पास तुझे मिठाई देती है न? अगर मेरे पास आया तो पीढूंगी। बस, बच्चा मंगम्मा के पास आकर रहने लगा। मंगम्मा भी उसे चाहती ही थी। एक दिन पोता जिद कर बैठा कि मैं भी बैंगलर चलँग। मंगम्मा क्या करे? माथे पर टोकरा, बगल में बच्चा! मुसीबत हो गई। तब बेटे-बहू ने आकर कहा कि उस दिन गलती हो गई। यूँ कैसे चलेगा? मंगम्मा अब खुशी-खुशी बेटे-बहू के साथ रहने लगी। धीरे-धीरे बहू ने शहर में दही बेचने का धंधा भी अपने हाथ में ले लिया। उसकी मंशा पूरी हो गई।
प्रश्न 4. इस कहानी का कथावाचक कौन है ? उसका परिचय दीजिए।
उत्तर-
इस कहानी का कथावाचक लेखक की माँ है। लेखक की माँ प्रस्तुत कहानी का द्वितीय केन्द्रीय चरित्र है। कहानी की कथावस्तु लेखक की माँ के द्वारा ताना-बाना बुना गया है। मंगम्मा जब दही बेचने के लिए आती है तो लेखक के घर आती है और बढ़िया दही कुछ-न-कुछ बेचकर जाती है। धीरे-धीरे मगम्मा और लेखक की माँ में घनिष्ठता बढ़ती चली गई।
मगम्मा अपने घर-गृहस्थी का सारा हाल सुनाती है और लेखक की माँ उसे कुछ-न-कुछ सुझाव देती है। सास और बहू के अन्तर्कलह से परिवार बिखर जाता है। बेटे को समस्त सुख अर्पित करनेवाला माँ बहू के आते ही बेटे से अलग हो जाती है। मगम्मा के अन्तर्व्यथा को सुनकर लेखक की माँ का मन भी बोझिल हो जाता है। ममता की मूर्तिमान रहनेवाली नारी दुर्गा क्यों बन जाती है। इसका ज्वलंत उदाहरण लेखक की माँ को देखना-सुनना पड़ता है। जब कोई एक दूसरे को पसंद नहीं करता तब छोटी बातें भी बड़ी हो जाती है। मंगम्मा की बातें सुनते-सुनते लेखक की माँ का हृदय द्रवित हो जाता है।
प्रश्न 5. मंगम्मा का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर-
मंगम्मा प्रस्तुत कहानी का प्रमुख केन्द्रीय चरित्र है। कहानी की कथावस्तु इसके इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है। पति से विरक्त रहनेवाली मंगम्मा शायद कभी ऐसी नहीं सोची होगी कि उसका बेटा पत्नी के दबाव में आकर उसको छोड़ सकता है। पत्नी का शृंगार पति है। मंगम्मा और उसकी बहू इस तथ्य को भली-भाँति समझती है। मंगम्मा दही बेचकर अपना जीवन-यापन करती है। दही लेकर वह अपने गाँव से शहर जाती है। और उसे बेचकर जो आमदनी होती है। उसी में वह कुछ संचय करती है।
वह जानती है कि पैसा ही उसका अपना जमा पूँजी हो वह भोली-भाली और सहृदयता वाली नमी है। अपने पोते के प्रति उसका अधिक झुकाव हो वस्तुतः मानव मूलधन से कहीं अधिक ब्याज पर जोर देता है। वह अपना सतीत्व बचाये रखना चाहती है। रंगप्पा द्वारा बार-बार उसका पीछे करने पर भी अपने कर्मपथ से विचलित नहीं होती है। पात का अभाव उसे रूप खटकता है। किन्तु पति के प्रति श्लेष मन्त्र भी क्षोभ नहीं है। मंगम्मा सम्पूर्ण भारतीय नारीत्व का प्रतिनिधित्व करती है।
प्रश्न 6. मंगम्मा का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर-
मंगम्मा कथा-नायिका मंगम्मा की बहू है। वह बहुत तेज-तर्रार है। अपने काम में किसी प्रकार की दखलंदाजी सहन नहीं करती। बेटे की किसी गलती पर जब उसे पीटती और मंगम्मा जब मना करती है तो उस पर चढ़ बैठती है। कहती है कि मैं बेटे की माँ हूँ-जैसे चाहूँगी रखुंगी। वह अपने पति पर भी काबू रखती है और तर्क से सबको हराती भी है। मंगम्मा जब मखमल का जाकिट पहनती है तो व्यंग्य भी करती है और लेन-देन की बात उठने पर मंगम्मा के लिए गहने-जेवर महिला को वापस ले लेने को भी कह देती है।
नंगम्मा तेज-तर्रार होने के साथ लोगों की कमजोरी जाननेवाली अत्यन्त चतुर भी है जब उसे मंगम्मा द्वारा रुपया-पैसा किसी और को दिए जाने की आशंका होती है तो अपने बेटे को मंगम्मा के पास रहने के लिए भेज देती है और मौका देखकर पति के साथ जाकर माफी माँग लेती है और अपने यहाँ ले आती है। इतना ही नहीं वह धीरे-धीरे मंगम्मा का दही बेचने का धंधा भी खुद शुरू कर देती है।
इस प्रकार नंजम्मा तेज-तर्रार, दूरदर्शी और व्यवहार कुशल नारी है।
प्रश्न 7. कहानी का सारांश प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कहानी कन्नड़ कहानियाँ (नेशल बुक ट्रस्ट, इंडिया) से सभार ली गयी है। इस कहानी का अनुवाद बी आर नारायण ने किया है। इस कहानी का प्रमुख केन्द्रीय चरित्र मंगम्मा और द्वितीय चरित्र लेखक की माँ है। मंगम्मा पति विरक्ता हो घर के अन्तर्कलह से दुःखी होकर वह जीवन-यापन करने के लिए दही बेचती है। वह गांव से शहर जाती है और दही बेचकर कुछ पैसे संचय करती है। संचय का सत्य है कि सास और बहू में स्वतंत्रता की होड़ लगी रहती है। माँ बेटे पर से अपना हक नहीं छोड़ती और बहू पति पर अधिकार जमाना चाहती है। पोते की पिटाई से क्षुब्ध मंगम्मा अपनी बहू को भला-बुरा कह देती है।
सास और बहू का विवाद घर में अन्तर्कलह को जन्म दे देता है। बहू-और-बेटे मंगम्मा को अलग रहने के लिए विवश कर देते हैं। दही बेचकर किसी तरह जीवन मापन करने वाली मंगम्मा कुछ पैसे इकट्ठा कर लेती है। जब बहू को यह ज्ञात हो जाता है कि उसकी सास रंगप्पा को कर्ज देनेवाली ही तो वह अपने को बेटे को ढाल बनाती है। वह बेटे को दादी के पास ही रहने के लिए उसकाती है। धीरे-धीरे सास और बहू में संबंध सुधरता जाता है। एक दिन मंगम्मा स्वयं बहू को लेकर दही बेचने के लिए जाती है।
लोगों से अपनी बहू का परिचय देती है और कहती है कि अब दही उसकी बहू ही बेचने के लिए आयेगी। वस्तुतः इस कहानी के द्वारा यह सीख दी गई है कि पानी में खड़े बच्चे का पाव खींचनेवाले मगरमच्छ जैसी दशा बहू की है और ऊपर से बाँह पकड़कर बचाने जैसी दशा माँ की होती है।
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