राम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै
Short Questions (with Answers)
1. गुरु नानक का जन्म कब और कहाँ हुआ?
उत्तर- गुरु नानक का जन्म 1469 ई. में तलबंडी (अब ननकाना साहिब, पाकिस्तान) में हुआ।
2. गुरु नानक के माता-पिता का नाम क्या था?
उत्तर- उनके पिता का नाम कालूचंद खत्री और माता का नाम तृप्ता था।
3. गुरु नानक की पत्नी का नाम क्या था?
उत्तर- उनकी पत्नी का नाम सुलक्षणी था।
4. गुरु नानक ने किस धर्म की स्थापना की?
उत्तर- उन्होंने सिख धर्म की स्थापना की।
5. गुरु नानक की प्रमुख रचनाएँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर- उनकी प्रमुख रचनाएँ ‘जपुजी’, ‘आसादीवार’, ‘रहिरास’ और ‘सोहिला’ हैं।
6. गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन किसने किया?
उत्तर- सिखों के पाँचवें गुरु अर्जुनदेव ने 1604 ई. में गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन किया।
7. गुरु नानक ने किन भाषाओं में रचना की?
उत्तर- उन्होंने हिंदी, ब्रजभाषा और पंजाबी में रचनाएँ कीं।
8. गुरु नानक ने मक्का-मदीना की यात्रा क्यों की?
उत्तर- उन्होंने धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का संदेश फैलाने के लिए मक्का-मदीना की यात्रा की।
9. गुरु नानक की मृत्यु कब हुई?
उत्तर- सन् 1539 में उन्होंने ‘वाह गुरु’ कहते हुए प्राण त्याग दिए।
10. गुरु नानक ने वर्ण व्यवस्था का विरोध क्यों किया?
उत्तर- उन्होंने समानता और भाईचारे के सिद्धांत को बढ़ावा देने के लिए वर्ण व्यवस्था और कर्मकांड का विरोध किया।
11. गुरु नानक की वाणी का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर- उनकी वाणी का मुख्य संदेश ईश्वर की सर्वव्यापकता और भक्ति की महिमा है।
12. गुरु नानक के पदों में किस प्रकार की भाषा का प्रयोग हुआ है?
उत्तर- उनके पदों में पंजाबी मिश्रित ब्रजभाषा और खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
13. गुरु नानक ने ईश्वर को कैसे परिभाषित किया?
उत्तर- उन्होंने ईश्वर को निर्गुण और निराकार बताया।
14. गुरु नानक ने किसे सच्ची पूजा माना?
उत्तर- उन्होंने सच्चे हृदय से राम-नाम का कीर्तन सच्ची पूजा मानी।
15. गुरु नानक की रचनाएँ किन भावों पर आधारित हैं?
उत्तर- उनकी रचनाएँ भक्ति, प्रेम और सामाजिक सद्भाव पर आधारित हैं।
Medium Questions (with Answers)
1. गुरु नानक ने धर्म-साधना के किस स्वरूप का प्रचार किया?
उत्तर- गुरु नानक ने निर्गुण ब्रह्म की उपासना का प्रचार किया और बाहरी कर्मकांड, जातिवाद, तथा धर्म के संकीर्ण स्वरूप का विरोध किया। उन्होंने भक्ति के माध्यम से प्रेम, समानता और सरलता पर बल दिया। उनके उपदेशों में धार्मिक एकता और मानवता के लिए सेवा का संदेश निहित था।
2. गुरु नानक ने अपने समय के सामाजिक भेदभाव के खिलाफ क्या कहा?
उत्तर- गुरु नानक ने सामाजिक भेदभाव और जातिवाद को कठोरता से अस्वीकार किया। उन्होंने समानता के आधार पर समाज की कल्पना की, जहाँ हर व्यक्ति ईश्वर के समक्ष समान हो। उनके उपदेशों में प्रेम और सहिष्णुता को महत्त्व दिया गया।
3. गुरु नानक ने राम-नाम को जीवन में क्यों महत्त्व दिया?
उत्तर- गुरु नानक का मानना था कि बाहरी दिखावे, जैसे कर्मकांड और तीर्थ यात्रा, बिना राम-नाम के व्यर्थ हैं। राम-नाम का जप व्यक्ति के मन और आत्मा को शुद्ध करता है, और सच्चे ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करता है।
4. गुरु नानक ने शिक्षा और साधना में क्या भिन्नता बताई?
उत्तर- गुरु नानक ने शिक्षा को ज्ञान का साधन माना लेकिन साधना को आत्मिक उन्नति का मार्ग बताया। उन्होंने सच्चे हृदय से नाम जप और जीवन में शुद्धता को साधना का सार माना, जो मात्र पुस्तक पढ़ने या कर्मकांड करने से नहीं मिलती।
5. गुरु नानक ने बाहरी वेश-भूषा के प्रति क्या दृष्टिकोण रखा?
उत्तर- गुरु नानक ने कहा कि बाहरी वेश-भूषा, जैसे डंडा, कमंडल या जटा, व्यक्ति को ईश्वर के निकट नहीं ला सकती। इसके बजाय, सच्चा ईश्वर-प्रेम और सरलता से भरा जीवन ही मोक्ष का मार्ग है।
6. गुरु नानक के समय के धार्मिक समाज की मुख्य समस्या क्या थी?
उत्तर- उस समय धर्म केवल कर्मकांड और जातिगत भेदभाव में उलझा हुआ था। गुरु नानक ने इसे मानवता के लिए बाधक माना और भक्ति तथा प्रेम पर आधारित धर्म की स्थापना की।
7. गुरु नानक ने ‘हरि रस’ को किससे जोड़ा?
उत्तर- गुरु नानक ने ‘हरि रस’ को ईश्वर के सान्निध्य और उसकी कृपा के अमृत से जोड़ा। यह रस व्यक्ति के भीतर शांति और संतोष लाता है, जो सांसारिक सुखों से परे है।
8. गुरु नानक ने गुरु की महत्ता को कैसे दर्शाया?
उत्तर- गुरु नानक ने कहा कि सच्चा गुरु व्यक्ति को अज्ञानता से ज्ञान की ओर और संसार की क्षणभंगुरता से आत्मिक मोक्ष की ओर ले जाता है। गुरु के उपदेशों का अनुसरण ही जीवन को सार्थक बनाता है।
9. ‘कंचन माटी जानै’ का क्या अर्थ है?
उत्तर- ‘कंचन माटी जानै’ का अर्थ है कि ज्ञानी व्यक्ति सोने और मिट्टी को समान मानता है। गुरु नानक ने कहा कि ऐसे व्यक्ति सांसारिक मोह और लोभ से ऊपर उठकर ईश्वर में लीन हो जाते हैं।
10. गुरु नानक के पदों की भाषा-शैली कैसी है?
उत्तर- उनके पद सरल और प्रभावशाली भाषा में लिखे गए हैं। उन्होंने पंजाबी मिश्रित ब्रजभाषा का प्रयोग किया, जिसमें सहज भावनाओं और जीवन के गहरे सत्य को प्रकट किया गया है।
Long Questions (with Answers)
1. गुरु नानक ने नाम-स्मरण को क्यों जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य बताया?
उत्तर- गुरु नानक ने नाम-स्मरण को जीवन का सबसे बड़ा कार्य माना क्योंकि यह व्यक्ति को मानसिक और आत्मिक शुद्धता प्रदान करता है। उनका कहना था कि तीर्थ यात्रा, कर्मकांड, और बाहरी आडंबर केवल दिखावे हैं। राम-नाम का जप ही सच्चा मोक्ष का मार्ग है। यह आत्मा को शांति और सच्चे ईश्वर से जोड़ता है। उनके अनुसार, नाम-स्मरण सांसारिक दुखों को समाप्त करता है और व्यक्ति को ईश्वर के करीब लाता है।
2. गुरु नानक ने धर्म और समाज में समानता के लिए क्या कदम उठाए?
उत्तर- गुरु नानक ने धर्म और समाज में समानता के लिए जातिवाद और भेदभाव का विरोध किया। उन्होंने कहा कि सभी मनुष्य ईश्वर की संतान हैं और उनके बीच कोई ऊँच-नीच नहीं है। उन्होंने लंगर प्रथा शुरू की, जिसमें हर जाति और धर्म के लोग एक साथ भोजन करते थे। उनके विचारों ने सामाजिक समरसता और सह-अस्तित्व का संदेश दिया। उनकी शिक्षाएँ जातिगत बाधाओं को तोड़ने और समानता का आधार बनाने में सहायक थीं।
3. गुरु नानक के पदों में समाज सुधार का कौन-सा संदेश है?
उत्तर- गुरु नानक के पदों में समाज सुधार का मुख्य संदेश मानवता, प्रेम और समानता है। उन्होंने कर्मकांड, जातिवाद और धर्म के आडंबरों का विरोध किया। उन्होंने बाहरी दिखावे की बजाय सच्चे मन और भक्ति पर जोर दिया। उनके अनुसार, सच्चा धर्म वही है जो मानवता की सेवा और ईश्वर की उपासना से जुड़ा हो। उनके पदों ने लोगों को अपने भीतर झाँकने और नैतिकता की ओर प्रेरित किया।
4. गुरु नानक ने जीवन की क्षणभंगुरता को कैसे समझाया?
उत्तर- गुरु नानक ने अपने पदों में बताया कि यह संसार और इसका मोह माया क्षणभंगुर है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को सांसारिक सुखों और लोभ से बचकर ईश्वर का स्मरण करना चाहिए। उनका कहना था कि धन और पदवी का मोह केवल दुःख का कारण बनता है। जीवन का असली उद्देश्य आत्मिक उन्नति और ईश्वर से जुड़ना है।
5. गुरु नानक के उपदेशों की वर्तमान समय में क्या प्रासंगिकता है?
उत्तर- गुरु नानक के उपदेश आज भी समाज में प्रेम, समानता और सह-अस्तित्व के लिए प्रेरणा देते हैं। जातिवाद, धार्मिक भेदभाव और असमानता जैसे मुद्दे आज भी प्रासंगिक हैं। उनकी शिक्षाएँ हमें दिखावे और आडंबर से दूर रहकर सच्चाई, सरलता, और सेवा की भावना को अपनाने की प्रेरणा देती हैं। उनकी लंगर प्रथा और सामाजिक समानता का विचार आज के समय में भी सामूहिक एकता और मानवता के लिए उदाहरण है।
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