Short Questions (with Answers)
1. हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म कब और कहाँ हुआ?
- उनका जन्म 1907 ई. में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के ‘आरत दुबे का छपरा’ नामक स्थान पर हुआ था।
2. द्विवेदी जी की साहित्यिक दृष्टि का मुख्य आधार क्या था?
- उनकी साहित्यिक दृष्टि भारतीय संस्कृति के विविध पहलुओं और मानवीय संवेदनाओं पर आधारित थी।
3. द्विवेदी जी को कौन-कौन से पुरस्कार मिले?
- उन्हें ‘आलोक पर्व’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारत सरकार से ‘पद्मभूषण’ और लखनऊ विश्वविद्यालय से डी.लिट्. की उपाधि मिली।
4. द्विवेदी जी की सांस्कृतिक दृष्टि कैसी थी?
- उनकी दृष्टि यह मानती थी कि भारतीय संस्कृति विभिन्न जातियों और परंपराओं के समन्वय से विकसित हुई है।
5. ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ का प्रश्न लेखक के मन में कैसे आया?
- यह प्रश्न उनकी छोटी बेटी ने पूछा, जिससे उन्होंने मानव सभ्यता और संस्कृति पर गहराई से विचार किया।
6. प्राचीन काल में नाखूनों का उपयोग कैसे होता था?
- प्राचीन मनुष्य नाखूनों का उपयोग अस्त्र के रूप में करता था क्योंकि यह उसकी रक्षा का साधन था।
7. मानव सभ्यता में नाखूनों का सौंदर्य से क्या संबंध है?
- प्राचीन काल में लोग नाखूनों को सजाने और विभिन्न आकारों में काटने का प्रयोग करते थे।
8. प्रकृति नाखून बढ़ाकर मनुष्य को क्या याद दिलाती है?
- यह याद दिलाती है कि मनुष्य का पशुत्व अभी समाप्त नहीं हुआ है।
9. नाखून काटने की प्रवृत्ति को लेखक ने क्या कहा?
- इसे उन्होंने मनुष्य की सांस्कृतिक और सभ्य होने की निशानी बताया।
10. लेखक ने भारतीय संस्कृति की मुख्य विशेषता क्या बताई?
- भारतीय संस्कृति स्व-निर्मित बंधनों और संयम पर आधारित है।
11. ‘स्वाधीनता’ शब्द का अर्थ लेखक ने कैसे समझाया?
- इसका अर्थ है अपने ऊपर स्व-निर्मित नियंत्रण रखना, जो भारतीय परंपरा का हिस्सा है।
12. द्विवेदी जी ने ‘सफलता’ और ‘चरितार्थता’ में क्या अंतर बताया?
- सफलता बाहरी उपकरणों और साधनों से प्राप्त होती है, जबकि चरितार्थता प्रेम, त्याग और मानवता में निहित है।
13. नाखून काटने की प्रवृत्ति को लेखक कैसे देखता है?
- यह मनुष्य की सभ्यता की ओर बढ़ने की प्रवृत्ति को दर्शाती है।
14. मानवता का आदर्श क्या है?
- मानवता का आदर्श संयम, प्रेम, त्याग और दूसरों के सुख-दुख को समझना है।
15. लेखक के अनुसार ‘स्वराज’ और ‘स्वाधीनता’ में क्या समानता है?
- दोनों शब्द ‘स्व’ पर आधारित हैं और अपने ऊपर नियंत्रण रखने की भावना को व्यक्त करते हैं।
Medium Questions (with Answers)
1. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भारतीय संस्कृति के विकास को कैसे समझाया?
- उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति किसी एक जाति की देन नहीं है। यह समय-समय पर विभिन्न जातियों और उनके श्रेष्ठ तत्वों के योगदान से विकसित हुई है। यह संस्कृति सहिष्णुता और समरसता का प्रतीक है, जो विविधता में एकता को प्रोत्साहित करती है।
2. द्विवेदी जी ने ‘नाखून’ को संस्कृति से कैसे जोड़ा?
- द्विवेदी जी ने नाखूनों को मनुष्य की प्राचीन पाशविक वृत्ति का प्रतीक बताया। उनका बार-बार बढ़ना प्रकृति द्वारा यह स्मरण कराता है कि मनुष्य अपने पशुत्व को पूरी तरह नहीं छोड़ सका है। लेकिन नाखूनों को काटकर और संवारकर वह अपनी सांस्कृतिक चेतना का परिचय देता है।
3. ‘स्वाधीनता’ शब्द को लेखक ने किस दृष्टिकोण से देखा है?
- लेखक ने ‘स्वाधीनता’ को अपने अधीन रहकर स्वयं को नियंत्रित करने की प्रक्रिया बताया। यह शब्द भारतीय परंपरा में ‘स्व’ के महत्व को दर्शाता है। यह न केवल स्वतंत्रता, बल्कि संयम और आत्म-नियंत्रण का भी प्रतीक है।
4. द्विवेदी जी ने प्राचीन और नवीन विचारों के संतुलन को कैसे समझाया?
- उन्होंने कालिदास का हवाला देते हुए कहा कि सभी पुराने विचार अच्छे नहीं होते और सभी नए विचार बुरे नहीं होते। हमें पुराने और नए विचारों का परीक्षण कर उन्हें अपनाना चाहिए, जो हमारे हित में हों।
5. वात्स्यायन के समय में नाखूनों का महत्व क्या था?
- वात्स्यायन के ‘कामसूत्र’ में नाखूनों को अलंकरण और सुकुमार विनोदों के लिए उपयोगी बताया गया है। नाखूनों को अलग-अलग आकृतियों में काटा और सजाया जाता था। यह प्राचीन समाज के सौंदर्यबोध का प्रतीक था।
6. लेखक ने भारतीय समाज को मानवीय क्यों कहा है?
- उन्होंने कहा कि भारतीय समाज में संयम, सहानुभूति, श्रद्धा और त्याग जैसे गुण हैं। यह समाज न केवल अपने सुख-दुख में जीता है, बल्कि दूसरों के प्रति सहानुभूति रखता है। यही इसे मानवीय और सांस्कृतिक बनाता है।
7. द्विवेदी जी के अनुसार ‘सफलता’ और ‘चरितार्थता’ में क्या अंतर है?
- सफलता बाहरी साधनों और मारक शक्ति से प्राप्त होती है, जबकि चरितार्थता प्रेम, मैत्री और आत्म-नियंत्रण से। मनुष्य का उद्देश्य चरितार्थता है, क्योंकि यह उसे मानवीय बनाता है।
8. ‘मनुष्य का पशुत्व’ विषय पर लेखक ने क्या कहा है?
- लेखक के अनुसार, नाखूनों का बढ़ना मनुष्य के भीतर बची हुई पशुता का प्रतीक है। हालांकि, मनुष्य ने इसे काटने और नियंत्रित करने की आदत डालकर अपनी मनुष्यता को बढ़ाया है।
9. लेखक ने ‘स्व’ के महत्व को कैसे समझाया?
- उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में ‘स्व’ का महत्व आत्म-नियंत्रण और आत्म-प्रबंधन का प्रतीक है। यह न केवल स्वतंत्रता है, बल्कि अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का बोध भी है।
10. द्विवेदी जी के साहित्यिक योगदान का महत्व क्या है?
- उन्होंने साहित्य, इतिहास, संस्कृति और दर्शन के क्षेत्र में गहरा योगदान दिया। उनकी रचनाएँ भारतीय संस्कृति की जड़ों को समझने में सहायक हैं और आधुनिक मानवीय मूल्यों को प्रोत्साहित करती हैं।
Long Questions (with Answers)
1. द्विवेदी जी ने भारतीय संस्कृति को किस प्रकार विशिष्ट बताया?
- द्विवेदी जी ने भारतीय संस्कृति को विभिन्न जातियों और संस्कृतियों के सामंजस्य का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि यह सहिष्णुता और आत्म-नियंत्रण पर आधारित है। भारतीय संस्कृति का विकास अलग-अलग समय पर विभिन्न जातियों के योगदान से हुआ है। यह संस्कृति हर चुनौती का सामना कर खुद को नए रूप में ढालती रही है।
2. नाखून बढ़ने की प्रक्रिया से लेखक ने मानव सभ्यता का कौन-सा संदेश दिया?
- लेखक ने नाखूनों को आदिम पाशविकता का प्रतीक कहा। नाखूनों का बढ़ना यह दर्शाता है कि मनुष्य पूरी तरह अपने पशुत्व से मुक्त नहीं हुआ है। लेकिन नाखूनों को काटना और सजाना उसकी सांस्कृतिक प्रगति का प्रतीक है। यह प्रक्रिया बताती है कि मनुष्य अपने भीतर बर्बरता को नियंत्रित कर सकता है।
3. लेखक ने प्राचीन और नवीन विचारों के महत्व को कैसे संतुलित किया?
- लेखक ने कालिदास का उल्लेख करते हुए कहा कि पुराना हमेशा अच्छा नहीं होता और नया हमेशा बुरा नहीं होता। बुद्धिमान लोग दोनों का परीक्षण कर उपयोगी विचारों को अपनाते हैं। उन्होंने हमें यह समझने की प्रेरणा दी कि परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन आवश्यक है।
4. ‘स्व’ और ‘स्वाधीनता’ के बीच लेखक का क्या दृष्टिकोण है?
- लेखक ने ‘स्व’ को आत्म-नियंत्रण और ‘स्वाधीनता’ को आत्म-निर्भरता का प्रतीक बताया। भारतीय परंपरा में यह आत्मा की शुद्धता और समाज के प्रति जिम्मेदारी का प्रतीक है। स्वाधीनता केवल बाहरी स्वतंत्रता नहीं, बल्कि आंतरिक अनुशासन भी है।
5. ‘सफलता’ और ‘चरितार्थता’ के संदर्भ में लेखक का क्या मत है?
- लेखक ने सफलता को बाहरी उपकरणों और साधनों से प्राप्त परिणाम कहा। दूसरी ओर, चरितार्थता प्रेम, मैत्री और आत्म-संयम पर आधारित है। मनुष्य को केवल सफलता तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि चरितार्थता को अपना लक्ष्य बनाना चाहिए।
6. द्विवेदी जी ने मानव सभ्यता की उन्नति में नाखूनों की भूमिका कैसे देखी?
- लेखक ने नाखूनों को पाशविकता और सौंदर्यबोध का प्रतीक बताया। पहले नाखून अस्त्र थे, फिर उन्हें सजाया जाने लगा। यह मानव सभ्यता की प्रगति और आदिम वृत्तियों को नियंत्रित करने की क्षमता का परिचायक है।
7. लेखक ने ‘स्वाधीनता’ और ‘इंडिपेंडेंस’ शब्दों में क्या अंतर बताया?
- लेखक ने कहा कि ‘इंडिपेंडेंस’ केवल अधीनता से मुक्ति को दर्शाता है, जबकि ‘स्वाधीनता’ में आत्म-नियंत्रण और जिम्मेदारी का भाव भी है। यह भारतीय संस्कृति के गहरे आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों का परिचायक है।
8. ‘मनुष्य का पशुत्व’ और उसकी समाप्ति पर लेखक का दृष्टिकोण क्या है?
- लेखक ने कहा कि मनुष्य के भीतर पशुत्व के अवशेष अभी भी मौजूद हैं, जो नाखूनों के रूप में दिखते हैं। लेकिन मनुष्य इन्हें काटकर अपनी सांस्कृतिक और नैतिक चेतना को व्यक्त करता है। लेखक को उम्मीद है कि एक दिन पशुत्व पूरी तरह समाप्त हो जाएगा और मनुष्य का जीवन केवल प्रेम और मैत्री पर आधारित होगा।
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