Short Questions (with Answers)
1. डॉ. भीमराव अंबेदकर का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर- डॉ. भीमराव अंबेदकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू, मध्यप्रदेश में एक दलित परिवार में हुआ था।
2. डॉ. अंबेदकर ने प्राथमिक शिक्षा के बाद उच्च शिक्षा के लिए कहाँ का रुख किया?
उत्तर- उन्होंने बड़ौदा नरेश के प्रोत्साहन पर न्यूयॉर्क और फिर लंदन में उच्च शिक्षा प्राप्त की।
3. डॉ. अंबेदकर के चिंतन और रचनात्मकता के प्रेरक कौन थे?
उत्तर- बुद्ध, कबीर, और ज्योतिबा फुले उनके प्रमुख प्रेरक थे।
4. भारतीय संविधान निर्माण में डॉ. अंबेदकर की क्या भूमिका थी?
उत्तर- उन्होंने संविधान निर्माण में महती भूमिका निभाई, जिससे उन्हें ‘भारतीय संविधान का निर्माता’ कहा गया।
5. ‘जाति-भेद का उच्छेद’ पाठ किससे लिया गया है?
उत्तर- यह पाठ उनके प्रसिद्ध भाषण ‘एनीहिलेशन ऑफ कास्ट’ के हिंदी रूपांतर से लिया गया है।
6. जाति प्रथा का श्रम विभाजन दोषपूर्ण क्यों है?
उत्तर- यह व्यक्तिगत रुचि और योग्यता पर आधारित नहीं है, बल्कि जन्म से निर्धारित है।
7. जाति प्रथा बेरोजगारी का कारण क्यों है?
उत्तर- यह पेशा बदलने की अनुमति नहीं देती, जिससे रोजगार के अवसर सीमित हो जाते हैं।
8. जातिवाद के पोषक इसे किससे जोड़ते हैं?
उत्तर- वे इसे श्रम विभाजन का रूप मानते हैं, जो आधुनिक समाज के लिए आवश्यक है।
9. डॉ. अंबेदकर के अनुसार आदर्श समाज का आधार क्या है?
उत्तर- स्वतंत्रता, समता, और भ्रातृत्व आदर्श समाज के प्रमुख स्तंभ हैं।
10. लोकतंत्र का डॉ. अंबेदकर द्वारा क्या अर्थ बताया गया है?
उत्तर- लोकतंत्र सामूहिक जीवनचर्या और आपसी अनुभवों के आदान-प्रदान का नाम है।
11. जाति प्रथा की सबसे बड़ी कमजोरी क्या है?
उत्तर- यह सामाजिक और आर्थिक असमानता को बढ़ावा देती है।
12. जातिवाद का लोकतंत्र पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर- यह लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है और भाईचारे की भावना को कमजोर करता है।
13. डॉ. अंबेदकर की कौन-कौन सी पुस्तकें प्रसिद्ध हैं?
उत्तर- ‘एनीहिलेशन ऑफ कास्ट,’ ‘द अनटचेबल्स,’ और ‘बुद्धा एंड हिज धम्मा’ उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।
14. डॉ. अंबेदकर का निधन कब हुआ?
उत्तर- उनका निधन दिसंबर 1956 में दिल्ली में हुआ।
15. जाति प्रथा से संबंधित डॉ. अंबेदकर का विचार क्या है?
उत्तर- उनके अनुसार जाति प्रथा मानवाधिकारों के खिलाफ है और इसे समाप्त करना चाहिए।
Medium Questions (with Answers)
1. डॉ. भीमराव अंबेदकर ने भारतीय समाज में जाति प्रथा को किस दृष्टि से देखा?
उत्तर- डॉ. अंबेदकर ने जाति प्रथा को मानव अधिकारों के खिलाफ और असमानता का प्रतीक माना। उन्होंने इसे श्रम और श्रमिक दोनों के विभाजन का दोषपूर्ण रूप कहा। उनके अनुसार, यह मानव की स्वाभाविक प्रेरणा और रुचि को दबा देती है। उन्होंने इसे लोकतंत्र और समानता के लिए हानिकारक बताया।
2. डॉ. अंबेदकर के अनुसार आदर्श समाज के क्या लक्षण होने चाहिए?
उत्तर- आदर्श समाज स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व पर आधारित होना चाहिए। इसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपने पेशे और रुचि के अनुसार जीवन जीने का अधिकार हो। समाज में गतिशीलता और संपर्क के पर्याप्त साधन होने चाहिए। यह लोकतंत्र का सच्चा स्वरूप है।
3. जाति प्रथा के कारण भारत में बेरोजगारी कैसे बढ़ती है?
उत्तर- जाति प्रथा के कारण व्यक्ति अपने पैतृक पेशे तक सीमित रहता है, भले ही वह उसमें पारंगत न हो। यह पेशा बदलने की स्वतंत्रता नहीं देती, जिससे आधुनिक तकनीकी और उद्योगों के अनुकूलन में रुकावट आती है। परिणामस्वरूप, बेरोजगारी बढ़ती है।
4. डॉ. अंबेदकर ने जाति प्रथा को श्रम विभाजन का दोषपूर्ण रूप क्यों कहा?
उत्तर- उन्होंने कहा कि जाति प्रथा श्रमिकों को उनकी रुचि और क्षमता के अनुसार काम करने का अवसर नहीं देती। यह केवल पैतृक आधार पर पेशा चुनने को बाध्य करती है। यह मानव के स्वाभाविक विकास में बाधक है और कुशलता को खत्म करती है।
5. डॉ. अंबेदकर ने अपने भाषण ‘जाति-भेद का उच्छेद’ में किस पर जोर दिया?
उत्तर- उन्होंने जाति प्रथा के खिलाफ नैतिक और सामाजिक तर्क दिए। उन्होंने इसे मानव अधिकारों, लोकतंत्र और सामाजिक सद्भाव के लिए अवरोधक बताया। उन्होंने आदर्श समाज के निर्माण की आवश्यकता पर बल दिया।
6. डॉ. अंबेदकर की प्रमुख कृतियों में से दो का नाम बताइए।
उत्तर- उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं – ‘एनीहिलेशन ऑफ कास्ट’ और ‘द कास्ट्स इन इंडिया: देयर मैकेनिज्म, जेनेसिस एंड डेवलपमेंट’। ये पुस्तकें सामाजिक असमानता और जाति प्रथा पर आधारित हैं।
7. जाति प्रथा का आर्थिक पहलू से क्या नुकसान है?
उत्तर- जाति प्रथा मानव की रुचि और क्षमता को बाधित करती है, जिससे कुशलता में कमी आती है। यह उद्योगों और पेशेवर क्षेत्रों में आर्थिक प्रगति को रोकती है। इसका परिणाम गरीबी और सामाजिक उत्पीड़न के रूप में सामने आता है।
8. ‘जाति-पाँति तोड़क मंडल’ सम्मेलन क्यों स्थगित हुआ?
उत्तर- इस सम्मेलन में डॉ. अंबेदकर का भाषण ‘जाति-भेद का उच्छेद’ प्रस्तावित था। लेकिन इसकी क्रांतिकारी दृष्टि से आयोजकों की सहमति नहीं बन पाई। परिणामस्वरूप, यह सम्मेलन स्थगित कर दिया गया।
9. डॉ. अंबेदकर के विचारों का प्रभाव किन क्षेत्रों में पड़ा?
उत्तर- उनके विचारों ने संविधान निर्माण, समाज सुधार, महिला सशक्तिकरण और मजदूर अधिकारों पर गहरा प्रभाव डाला। उन्होंने लोकतंत्र और समानता की नींव रखी।
10. डॉ. अंबेदकर को आधुनिक मनु क्यों कहा जाता है?
उत्तर- उन्होंने भारतीय संविधान का मसौदा तैयार किया, जो आधुनिक समाज के लिए नैतिक और कानूनी आधार प्रदान करता है। इस कारण उन्हें आधुनिक मनु कहा जाता है।
Long Questions (with Answers)
1. डॉ. अंबेदकर के विचारों में जाति प्रथा के मानवता पर क्या प्रभाव बताए गए हैं?
उत्तर- डॉ. अंबेदकर के अनुसार, जाति प्रथा मानवता के खिलाफ है क्योंकि यह व्यक्ति को जन्म से ही ऊँच-नीच के दायरे में बाँध देती है। यह समानता, भाईचारे और स्वतंत्रता की अवधारणा को खत्म करती है। जाति प्रथा इंसान को उसकी क्षमता के अनुसार काम करने से रोकती है। यह सामाजिक भेदभाव और असमानता को जन्म देती है। इसके कारण समाज में नफरत, अलगाव और हिंसा बढ़ती है।
2. जाति प्रथा को समाप्त करने के लिए डॉ. अंबेदकर ने क्या समाधान सुझाए?
उत्तर- डॉ. अंबेदकर ने जाति प्रथा समाप्त करने के लिए शिक्षा को सबसे जरूरी साधन बताया। उन्होंने कहा कि सभी को समान अधिकार और स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। संविधान के माध्यम से उन्होंने अस्पृश्यता उन्मूलन और समानता के सिद्धांतों को लागू किया। उन्होंने समाज में जागरूकता फैलाने और भाईचारे की भावना को प्रोत्साहित करने पर बल दिया। इसके साथ ही, आर्थिक और सामाजिक सुधार को भी आवश्यक बताया।
3. डॉ. अंबेदकर ने श्रम विभाजन और श्रमिक विभाजन में क्या अंतर बताया?
उत्तर- श्रम विभाजन समाज के विकास के लिए जरूरी है, लेकिन यह व्यक्ति की रुचि और क्षमता के अनुसार होना चाहिए। श्रमिक विभाजन जाति प्रथा का हिस्सा है, जिसमें व्यक्ति को जन्म के आधार पर पेशा चुनने पर बाध्य किया जाता है। श्रम विभाजन प्रगति को बढ़ावा देता है, जबकि श्रमिक विभाजन कुशलता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को खत्म करता है। यह सामाजिक असमानता और बेरोजगारी का कारण बनता है।
4. डॉ. अंबेदकर ने आदर्श लोकतंत्र की क्या विशेषताएँ बताईं?
उत्तर- डॉ. अंबेदकर ने आदर्श लोकतंत्र को भ्रातृत्व, स्वतंत्रता और समानता पर आधारित बताया। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र केवल शासन की एक पद्धति नहीं, बल्कि समाज के सम्मिलित अनुभवों का आदान-प्रदान है। इसमें सभी को समान अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए। समाज में व्यक्ति की स्वेच्छा और रुचि का आदर होना चाहिए। उन्होंने भाईचारे और समर्पण को लोकतंत्र का मूल सिद्धांत माना।
5. डॉ. अंबेदकर ने जाति प्रथा को आर्थिक दृष्टि से हानिकारक क्यों माना?
उत्तर- जाति प्रथा व्यक्तियों को उनकी क्षमता और रुचि के अनुसार पेशा चुनने से रोकती है। यह कुशलता और उत्पादन क्षमता को घटाती है। इसके कारण लोग मजबूरी में अनुपयुक्त काम करते हैं, जिससे आर्थिक प्रगति रुक जाती है। यह उद्योग और व्यवसाय के विकास में बाधा बनती है। उन्होंने इसे गरीबी और बेरोजगारी का प्रमुख कारण बताया।
6. डॉ. अंबेदकर ने ‘जाति-भेद का उच्छेद’ भाषण क्यों तैयार किया, और यह भाषण क्यों नहीं दिया गया?
उत्तर- उन्होंने यह भाषण जाति प्रथा के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए ‘जाति-पाँति तोड़क मंडल’ के सम्मेलन में तैयार किया। लेकिन इसकी क्रांतिकारी दृष्टि से आयोजकों की सहमति नहीं बन पाई। परिणामस्वरूप, यह सम्मेलन स्थगित हो गया और भाषण नहीं दिया जा सका। बाद में उन्होंने इसे पुस्तिका के रूप में प्रकाशित किया।
7. डॉ. अंबेदकर के अनुसार जाति प्रथा ने भारतीय समाज को कैसे प्रभावित किया है?
उत्तर- जाति प्रथा ने भारतीय समाज को विभिन्न वर्गों में बाँटकर सामाजिक एकता को कमजोर किया। यह मानव अधिकारों का हनन करती है और असमानता को बढ़ावा देती है। इसके कारण शोषण, भेदभाव और बेरोजगारी जैसी समस्याएँ उत्पन्न हुईं। यह न केवल व्यक्ति की स्वतंत्रता को खत्म करती है, बल्कि समाज के विकास में भी बाधा बनती है।
8. डॉ. अंबेदकर का शिक्षा के महत्व पर क्या विचार था?
उत्तर- डॉ. अंबेदकर ने शिक्षा को सामाजिक सुधार और व्यक्तिगत विकास का सबसे शक्तिशाली माध्यम माना। उनके अनुसार, शिक्षा से व्यक्ति अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक हो सकता है। यह जाति प्रथा और अन्य सामाजिक बुराइयों को खत्म करने में सहायक है। उन्होंने समान शिक्षा को समाज में समानता स्थापित करने का साधन बताया।
9. डॉ. अंबेदकर ने लोकतंत्र और भाईचारे के बीच क्या संबंध बताया?
उत्तर- उन्होंने कहा कि भाईचारा लोकतंत्र का मुख्य आधार है। इसके बिना समानता और स्वतंत्रता का कोई महत्व नहीं है। भाईचारा समाज में सहयोग और सद्भाव को बढ़ावा देता है। यह सामाजिक गतिशीलता और एकता का प्रतीक है। उनके अनुसार, भाईचारे के बिना लोकतंत्र केवल एक शासन पद्धति बनकर रह जाएगा।
10. डॉ. अंबेदकर ने संविधान निर्माण में किन मूलभूत सिद्धांतों को लागू किया?
उत्तर- संविधान निर्माण में उन्होंने स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व के सिद्धांतों को मुख्य आधार बनाया। उन्होंने समाज के हर वर्ग को समान अधिकार और न्याय सुनिश्चित किया। अस्पृश्यता उन्मूलन और सभी के लिए शिक्षा, रोजगार और अवसर की समानता को संविधान में शामिल किया। उनका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक समानता स्थापित करना था।
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