भारत में मौलिक अधिकारों का निलंबन एक महत्वपूर्ण मुद्दा है
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा के दौरान कुछ मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है।
यह अनुच्छेद सरकार को देश की सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था को खतरे से बचाने के लिए असाधारण शक्तियां प्रदान करता है।
निलंबित(Suspension) किए जा सकने वाले मौलिक अधिकार:
- अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता का अधिकार
- अनुच्छेद 19: स्वतंत्रता का अधिकार (भाषण और अभिव्यक्ति, सभा, संघ, आवागमन, निवास, व्यवसाय)
- अनुच्छेद 21: जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार
- अनुच्छेद 22: निरोध के संबंध में संरक्षण का अधिकार
- अनुच्छेद 23: शोषण के विरुद्ध अधिकार (बंधुआ मजदूरी और मानव तस्करी)
- अनुच्छेद 24: बाल श्रम का प्रतिषेध
- सभी मौलिक अधिकारों को निलंबित नहीं किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 20, 21A और 22 को किसी भी परिस्थिति में निलंबित नहीं किया जा सकता है।
- निलंबन केवल आपातकाल की अवधि तक ही लागू होता है।
- निलंबन न्यायिक समीक्षा के अधीन है, अर्थात नागरिक निलंबन को उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दे सकते हैं।
आपातकाल की घोषणा कब की जा सकती है?
- बाहरी आक्रमण या युद्ध की स्थिति में
- आंतरिक विद्रोह या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में
- वित्तीय संकट की स्थिति में
- प्राकृतिक आपदा की स्थिति में
आपातकाल की घोषणा का प्रभाव:
- राष्ट्रपति को अतिरिक्त शक्तियां प्राप्त होती हैं।
- संसद की शक्तियों को निलंबित किया जा सकता है।
- मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है।
- राज्य सरकारों को केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन करना होता है।
- राष्ट्रपति को नियम बनाने और कानूनों को लागू करने का अधिकार होता है।
आलोचना:
- आपातकाल की शक्तियों का दुरुपयोग होने की संभावना रहती है।
- मौलिक अधिकारों को निलंबित करने से नागरिकों की स्वतंत्रता को खतरा हो सकता है।
- आपातकाल का उपयोग विपक्षी दलों को दबाने के लिए किया जा सकता है।
मौलिक अधिकारों का निलंबन एक असाधारण शक्ति है जिसका उपयोग केवल आखिरी उपाय के रूप में किया जाना चाहिए।
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