संविधान में विधानपरिषद को स्थिति (विधानसभा को तुलना में) का दो कोणों से अध्ययन किया जा सकता है:-
- जहां परिषद सभा के बराबर हो।
- जहां परिषद सभा के बराबर न हो
विधानसभा से समानता:-
निम्नलिखित मामलों में परिषद को शक्तियों एवं स्थिति को विधानसभा के बराबर माना जा सकता है:
विधानपरिषद और विधानसभा के बीच कुछ महत्वपूर्ण समानताएं:
1. कानून निर्माण: दोनों सदनों का मुख्य कार्य कानून बनाना होता है। विधानसभा और विधानपरिषद द्वारा पारित विधेयक राज्यपाल के अनुमोदन के बाद कानून बन जाते हैं।
2. सरकार पर नियंत्रण: विधानसभा और विधानपरिषद दोनों ही सरकार पर नियंत्रण रखते हैं। सदस्य प्रश्न पूछकर, बहस करके और अविश्वास प्रस्ताव लाकर सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करते हैं।
3. बजट पर अनुमोदन: विधानसभा और विधानपरिषद दोनों को राज्य बजट पर अनुमोदन देना होता है।
4. सदस्यों का कार्यकाल: विधानसभा और विधानपरिषद दोनों के सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
5. विशेषाधिकार: विधानसभा और विधानपरिषद दोनों के सदस्यों को संविधान द्वारा कुछ विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं, जैसे कि गिरफ्तारी से छूट और सदन में बोलने की स्वतंत्रता।
6. जनता का प्रतिनिधित्व: विधानसभा और विधानपरिषद दोनों के सदस्य जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनके मुद्दों को सदन में उठाते हैं।
विधानसभा से असमानता
- वित्त विधेयक सिर्फ विधानसभा में पुर: स्थापित किया जा सकता है |
- विधानपरिषद वित्त विधेयक में न संशोधन औरन ही इसे अस्वीकृत कर सकती है । इसे विधानसभा को 14दिन के अंदर सिफारिश के साथ या बिना सिफारिश के होता है।
- विधानसभा परिषद की सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है। दोनों मामलों में वित्त विधेयक दोनों सदनों द्वारा पास माना जाता है ।
- कोई विधेयक वित्त विधेयक है या नहीं, यह तय करने का अधिकार विधानसभा के अध्यक्ष को है ।
- एक साधारण विधेयक को पास करने का अंतिम अधिकार विधानसभा को ही है | कुछ मामलों में परिषद इसे अधिकतम चार माह के लिए रोक सकती है । पहली बार में विधेयक को तीन माह और दूसरी बार में एक माह के लिए रोका जा सकता है । दूसरे शब्दों में परिषद् राज्यसभा कौ तरह पुनरीक्षण निकाय भी नहीं है। यह एक विलंबकारी चैम्बर या परामर्शी निकाय मात्र है।
- परिषद बजट पर सिर्फ बहस कर सकती है लेकिन अनुदान की मांग पर मत नहीं कर सकती (यह विधानसभा का विशेष अधिकार है) |
- परिषद् अविश्वास प्रस्ताव पारित कर मंत्रिपरिषद् को नहीं हटा सकती | ऐसा इसलिए है क्योंकि मंत्रिपरिषद् की सामूहिक जिम्मेदारी विधानसभा के प्रति है । लेकिन परिषद राज्यपाल के क्रियाकलापों और नीतियों पर बहस और आलोचना कर सकती है।
- जब एक साधारण विधेयक परिषद से आया हो और सभा में भेजा गया हो, यदि सभा अस्वीकृत कर दे तो विधेयक खत्म हो जाता है।
- परिषद भारत के राष्ट्रपति और राज्यसभा में राज्य के प्रतिनिधि के चुनाव में भाग नहीं ले सकती।
- संविधान संशोधन विधेयक में परिषद् प्रभावी रूप में कुछ नहीं कर सकती । इस मामले में भी विधानसभा ही अभिभावी रहती है।
- अंततः परिषद का अस्तित्व ही विधानसभा पर निर्भर करता है। विधानसभा की सिफारिश के बाद संसद विधान परिषद को समाप्त कर सकती है।
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