- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366(25) के अनुसार, “अनुसूचित जनजातियों का अर्थ है ऐसी जनजातियाँ या जनजातीय समुदाय या जनजातीय समुदायों के उन समूहों से है जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों (purpose) के लिए अनुच्छेद 342 के अंतर्गत अनुसूचित जनजाति माना जाता है।”
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 342 के अनुसार, “राष्ट्रपति किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में और जहाँ यह एक राज्य है वहाँ उसके राज्यपाल के परामर्श से सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा जनजातियों या जनजातीय समुदायों या जनजातियों समूहों को उस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में अनुसूचित जनजाति के रूप में निर्दिष्ट(Specified) कर सकता है।”
- ये अनुसूचित जनजातियाँ पूरे देश में बड़े पैमाने पर वन और पहाड़ी क्षेत्रों में फैली हुई हैं।
– इन समुदायों की मुख्य विशेषताएँ हैं:-
- प्रिमिटिव अर्थात् आदिम लक्षण (Primitive Traits)
- भौगोलिक अलगाव
- विशिष्ट संस्कृति
- बड़े पैमाने पर अन्य समुदायों के साथ संपर्क नहीं,
- सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ापन
- 2011 की जनगणना के अनुसार, अनुसूचित जनजातियाँ देश की जनसंख्या का 8.6% हैं।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत 700 से अधिक जनजातियों को अधिसूचित किया गया है। ये सभी जनजातियाँ विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फैली हुई हैं।
- 2011 की जनगणना के अनुसार, सबसे अधिक जनजातीय समुदाय मध्य प्रदेश में हैं, उसके बाद ओडिशा में।
- हालाँकि हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, दिल्ली और पुदुचेरी राज्यों में कोई अनुसूचित जनजाति नहीं है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए विशेष अधिकारी:-
- मूल रूप से, संविधान का अनुच्छेद 338 अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान करता था।
- विशेष अधिकारी को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयुक्त के रूप में नामित किया गया था।
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयुक्त का प्राथमिक कार्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जांच करना और उनके कार्यों पर राष्ट्रपति को रिपोर्ट करना था।
65वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 1990:-
- इसने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338 में संशोधन किया तथा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए एक उच्च-स्तरीय बहु-सदस्यीय राष्ट्रीय आयोग के गठन का प्रावधान किया।
- इस संवैधानिक निकाय ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयुक्त का स्थान लिया।
89वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 2003:-
- इसने अनुच्छेद 338 में संशोधन किया तथा संविधान में एक नया अनुच्छेद 338-A को जोड़ा गया।
- इस संशोधन के परिणामस्वरूप, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग को दो अलग-अलग निकायों में विभाजित किया गया:
- राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) – अनुच्छेद 338।
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) – अनुच्छेद 338-A
नोट: 1999 में, अनुसूचित जनजातियों के कल्याण एवं विकास पर विशेष ध्यान देने के लिए एक नया जनजातीय कार्य मंत्रालय बनाया गया था।
NCST की स्थापना:- अनुच्छेद 338 में संशोधन कर और 89वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के माध्यम से संविधान में एक नया अनुच्छेद 338A सम्मिलित कर अंततः 2004 में स्थापित किया गया था। यह एक संवैधानिक निकाय है।
- इस संशोधन द्वारा पूर्ववर्ती राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग को दो निम्नलिखित अलग-अलग आयोगों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था:
- राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC), और
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग
- इस संशोधन द्वारा पूर्ववर्ती राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग को दो निम्नलिखित अलग-अलग आयोगों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था:
संरचना:-
इसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और 3 अन्य सदस्य होते हैं जिन्हें राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुहर के तहत अधिपत्र द्वारा नियुक्त करेगा।
- इसमें एक महिला सदस्य का होना अनिवार्य है।
- अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य 3 वर्ष की अवधि के लिये पद धारण करते हैं।
- अध्यक्ष को केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के दर्जे के समकक्ष माना गया है, उपाध्यक्ष को राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त है और अन्य सदस्य भारत सरकार के सचिव दर्जे के होते हैं।
- सदस्य दो से अधिक कार्यकाल हेतु नियुक्ति के लिये पात्र नहीं हैं।
- इसमें एक महिला सदस्य का होना अनिवार्य है।
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