न्यायिक समीक्षा का विषय क्षेत्र:- भारत में न्यायिक समीक्षा का दायरा काफी व्यापक है, और इसमें न केवल विधायिका द्वारा पारित कानून बल्कि कार्यपालिका के कार्य भी शामिल हैं। न्यायालयों के पास संविधान का उल्लंघन करने वाले किसी भी कानून को रद्द करने की शक्ति है, और वे नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण , परमादेश, निषेध, उत्प्रेषण और अधिकार-पृच्छा जैसे रिट भी जारी कर सकते हैं।
संविधान में पांच प्रकार के रिट का प्रावधान है:
- बंदी प्रत्यक्षीकरण – एक रिट जो किसी ऐसे व्यक्ति को पेश करने के लिए जारी की जाती है जिसे गैरकानूनी रूप से हिरासत में लिया गया हो।
- परमादेश – एक रिट जो किसी सार्वजनिक अधिकारी को कानून द्वारा अपेक्षित कर्तव्य का पालन करने के लिए बाध्य करने के लिए जारी की जाती है।
- प्रतिषेध – एक रिट जो किसी निचली अदालत या न्यायाधिकरण को उसके अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करने से रोकने के लिए जारी की जाती है।
- उत्प्रेषण-पत्र (Certiorari) – एक रिट जो निचली अदालत या न्यायाधिकरण के आदेश को रद्द करने के लिए जारी की जाती है।
- क्वो वारंटो – एक रिट जो किसी सार्वजनिक पद पर आसीन व्यक्ति की वैधता की जांच करने के लिए जारी की जाती है।
सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर किसी भी विधायी या कार्यकारी आदेश की संवैधानिकता को चुनौती दे सकते हैं।
वे उस स्थिति में भी चुनौती दे सकते हैं जब आदेश उस प्राधिकरण के अधिकार क्षेत्र से बाहर हो जिसने इसे बनाया है, और यदि यह संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है।
भारत में न्यायिक समीक्षा का दायरा संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में संकीर्ण है क्योंकि भारत संविधान के अनुच्छेद 21 (Article 21) के तहत “कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया” के सिद्धांत का पालन करता है।
न्यायिक समीक्षा का प्रकार:-
1.विधायी कार्यों की समीक्षा:- भारतीय संविधान में न्यायपालिका को विधायिका द्वारा पारित कानूनों की संवैधानिकता की समीक्षा करने का अधिकार प्रदान किया गया है। यह शक्ति न्यायिक समीक्षा के रूप में जानी जाती है।
- यदि कोई कानून असंवैधानिक पाया जाता है, तो उसे अमान्य घोषित करें।
- संविधान की व्याख्या करें और उसके प्रावधानों को लागू करें।
विधायी कार्यों की समीक्षा के महत्व:
- यह सुनिश्चित करता है कि कानून संविधान के अनुरूप हों और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न करें।
- यह मनमानी कानून बनाने से विधायिका को रोकता है।
- यह कानून के शासन को बनाए रखने में मदद करता है।
- यह नागरिकों को सरकार द्वारा किए गए किसी भी मनमाने कार्य के खिलाफ खड़े होने का एक साधन प्रदान करता है।
उदाहरण:
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य: इस ऐतिहासिक मामले में, न्यायालय ने फैसला सुनाया कि संविधान का मूल ढांचा संसद द्वारा भी संशोधन योग्य नहीं है।
- मीनाक्षी बनाम तमिलनाडु सरकार: इस मामले में, न्यायालय ने महिलाओं के लिए 33% आरक्षण का प्रावधान करने वाले कानून को संवैधानिक ठहराया।
2. प्रशासनिक कार्यों की समीक्षा:
प्रशासनिक कार्यों की समीक्षा का महत्व:
- यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी अधिकारी कानून के अनुसार कार्य करें और मनमानी ढंग से न चलें।
- यह भ्रष्टाचार और दुरुपयोग को रोकने में मदद करता है।
- यह नागरिकों को सरकार द्वारा किए गए किसी भी मनमाने कार्य के खिलाफ खड़े होने का एक साधन प्रदान करता है।
- यह प्रशासनिक कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने में मदद करता है।
उदाहरण:
- लखीराम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य: इस मामले में, न्यायालय ने सरकारी नौकरी में आरक्षण के लिए निर्धारित आय सीमा को असंबद्ध घोषित कर दिया।
- सोनल मंगल बनाम भारत संघ: इस मामले में, न्यायालय ने एक महिला को पुलिस बल में शामिल होने का निर्देश दिया, भले ही नियमों में कहा गया था कि केवल पुरुषों को ही भर्ती किया जाएगा।
3. न्यायिक निर्णयों की समीक्षा:
- इस समीक्षा का उपयोग न्यायपालिका द्वारा पूर्व में लिए गए निर्णयों को सुधारने या उनमें कोई परिवर्तन करने के लिए किया जाता है।
- न्यायिक निर्णयों की समीक्षा एक जटिल विषय है जिसमें कई पहलू हैं।
सामान्य तौर पर, न्यायिक निर्णयों की समीक्षा दो प्रकार से की जा सकती है:
1. अपील:
- उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर करके: यदि कोई व्यक्ति किसी निचली अदालत के फैसले से असंतुष्ट है, तो वे उस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर कर सकते हैं।
- अपील की प्रक्रिया: अपील की प्रक्रिया विशिष्ट कानूनों और नियमों द्वारा निर्धारित की जाती है।
- न्यायालय का दायरा: अपील पर सुनवाई करते समय, उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय निचली अदालत के फैसले की कानूनी शुद्धता की समीक्षा करेगा।
- नया फैसला: यदि उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय यह पाता है कि निचली अदालत का फैसला गलत था, तो वे इसे रद्द कर सकते हैं या संशोधित कर सकते हैं और एक नया फैसला सुना सकते हैं।
2. न्यायिक समीक्षा:
- उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करके: यदि कोई व्यक्ति मानता है कि कोई प्रशासनिक निर्णय या कानून गैरकानूनी है, तो वे उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सकते हैं।
- न्यायिक समीक्षा की प्रक्रिया: न्यायिक समीक्षा की प्रक्रिया विशिष्ट कानूनों और नियमों द्वारा निर्धारित की जाती है।
- न्यायालय का दायरा: न्यायिक समीक्षा करते समय, उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय यह जांच करेगा कि क्या प्रशासनिक निर्णय या कानून संविधान और अन्य लागू कानूनों के अनुरूप है।
- निर्णय: यदि उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय यह पाता है कि प्रशासनिक निर्णय या कानून गैरकानूनी है, तो वे इसे रद्द कर सकते हैं।
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