क्षेत्रीय भाषाएँ:-
क्षेत्रीय भाषा एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल उस भाषा के लिये किया जाता है जो बड़ी संख्या में लोगों द्वारा बोली जाती है लेकिन देश के बाकी हिस्सों में संचार की वास्तविक भाषा नहीं है।
- एक भाषा को क्षेत्रीय तब माना जाता है जब वह ज़्यादातर उन लोगों द्वारा बोली जाती है जो बड़े पैमाने पर किसी राज्य या देश के एक विशेष क्षेत्र में रहते हैं।
- भले ही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343(1) में कहा गया है कि संघ की आधिकारिक भाषा देवनागरी लिपि में हिंदी होगी।
क्षेत्रीय भाषा की आवश्यकता:-
- दुविधा दूर करना:
- किसी भी स्थानीय भाषा की अपेक्षा अंग्रेजी भाषा को प्राथमिकता देने संबंधी दुविधा को दूर करना तथा बच्चे को अपनी मातृभाषा में स्वाभाविक रूप से सोचने देना।
- औपनिवेशिक मानसिकता:
- हमें अपने नजरिए में बदलाव लाने की जरूरत है , ताकि जब कोई कक्षा में क्षेत्रीय भाषा में प्रश्न पूछे तो उसे हीन भावना महसूस न हो।
- दुविधा दूर करना:
फ़ायदे:
- विषय-विशिष्ट सुधार : भारत और अन्य एशियाई देशों में किए गए कई अध्ययनों से पता चलता है कि अंग्रेजी माध्यम के बजाय क्षेत्रीय माध्यम का उपयोग करने वाले छात्रों के सीखने के परिणामों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- विशेष रूप से विज्ञान और गणित में, अंग्रेजी की तुलना में अपनी मूल भाषा में अध्ययन करने वाले छात्रों का प्रदर्शन बेहतर पाया गया है ।
- भागीदारी की उच्च दर: मूल भाषा में अध्ययन करने से छात्रों की उपस्थिति बढ़ती है, उनमें बोलने के लिए प्रेरणा और आत्मविश्वास बढ़ता है, तथा मातृभाषा से परिचित होने के कारण माता-पिता की भागीदारी और पढ़ाई में सहयोग भी बढ़ता है ।
- कई शिक्षाविदों का मानना है कि अंग्रेजी पर खराब पकड़ के कारण प्रमुख इंजीनियरिंग शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई छोड़ देने की दर और कुछ छात्रों का खराब प्रदर्शन होता है।
- कम सुविधा प्राप्त लोगों के लिए अतिरिक्त लाभ: यह विशेष रूप से उन छात्रों के लिए प्रासंगिक है जो पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी हैं (अपनी पूरी पीढ़ी में स्कूल जाने और शिक्षा प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति) या ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले छात्र, जो किसी विदेशी भाषा में अपरिचित अवधारणाओं से भयभीत महसूस कर सकते हैं।
- विषय-विशिष्ट सुधार : भारत और अन्य एशियाई देशों में किए गए कई अध्ययनों से पता चलता है कि अंग्रेजी माध्यम के बजाय क्षेत्रीय माध्यम का उपयोग करने वाले छात्रों के सीखने के परिणामों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिये सरकार की पहल:-
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिये बार काउंसिल ऑफ इंडिया जैसे विभिन्न नियामक निकायों के साथ बातचीत कर रहा है इसलिये भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई है जो यह देखेगी कि संस्थान स्थानीय भाषाओं में कानूनी शिक्षा कैसे प्रदान कर सकते हैं?
- भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (All India Council for Technical Education-AICTE) ने भी 10 कॉलेजों में क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम शुरू किए थे।
- इसके अलावा, यह विशेषज्ञों के साथ-साथ 10-12 विषयों की पहचान करने के लिये शिक्षा मंत्रालय द्वारा स्थापित भारतीय भाषा विकास पर उच्चाधिकार प्राप्त समिति के साथ भी कार्य कर रहा है ताकि पुस्तकों का या तो अनुवाद किया जा सके या उन्हें नए सिरे से लिखा जा सके।
- नियामक संस्था अगले एक वर्ष में विभिन्न विषयों में क्षेत्रीय भाषाओं में 1,500 पुस्तकें तैयार करने का लक्ष्य लेकर चल रही थी।
- वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग (Commission for Scientific and Technical Terminology-CSTT) क्षेत्रीय भाषाओं में विश्वविद्यालय स्तरीय पुस्तकों के प्रकाशन को बढ़ावा देने हेतु प्रकाशन अनुदान प्रदान कर रहा है।
- राष्ट्रीय अनुवाद मिशन (The National Translation Mission-NTM) को केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (Central Institute of Indian Languages-CIIL) के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है।
शिक्षा में क्षेत्रीय भाषा को बढ़ावा देने के उपाय:-
- संस्थान एक क्षेत्रीय भाषा को शिक्षा के माध्यम के रूप में अपनाएँगे अथवा वह अंग्रेजी माध्यम में उन छात्रों को इसे सीखने में सहायता प्रदान करेगा जो किसी क्षेत्रीय भाषा में कुशल नहीं हैं।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग: भविष्य में कक्षाओं में देखे जाने वाले वास्तविक समय के अनुवादों को सक्षम करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता-आधारित तकनीक उपलब्ध कराना।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति: राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2022 मातृभाषा को बढ़ावा देने पर ज़ोर देती है जो कम से कम पाँचवीं या आठवीं कक्षा तक शिक्षा का माध्यम होना चाहिये और उसके बाद इसे एक भाषा के रूप में पेश किया जाना चाहिये ।
- यह विश्वविद्यालयों से क्षेत्रीय भाषाओं में अध्ययन सामग्री विकसित करने का भी आग्रह करता है।
क्षेत्रीय भाषा से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:-
- अनुच्छेद 345: अनुच्छेद 346 और 347 के प्रावधानों के अनुसार किसी राज्य का विधानमंडल कानून द्वारा राज्य में प्रयोग में आने वाली किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिंदी को उस राज्य के सभी या किसी भी आधिकारिक उद्देश्यों के लिये इस्तेमाल की जाने वाली भाषा अथवा भाषाओं के रूप में अपना सकता है।
- अनुच्छेद 346: संघ में आधिकारिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अधिकृत भाषा एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच एवं एक राज्य तथा संघ के बीच संचार के लिये आधिकारिक भाषा होगी।
- उदाहरण: यदि दो या दो से अधिक राज्य सहमत हैं कि ऐसे राज्यों के बीच संचार के लिये हिंदी भाषा, आधिकारिक भाषा होनी चाहिये तो उस भाषा का उपयोग ऐसे संचार के लिये किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 347: यह राष्ट्रपति को किसी दिये गए राज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में किसी भाषा को मान्यता देने की शक्ति प्रदान करता है, बशर्ते कि राष्ट्रपति संतुष्ट हो कि उस राज्य का एक बड़ा हिस्सा भाषा को मान्यता देना चाहता है। ऐसी मान्यता राज्य के किसी हिस्से या पूरे राज्य के लिये हो सकती है।
- अनुच्छेद 350A: प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधा।
- अनुच्छेद 350B: यह भाषाई अल्पसंख्यकों के लिये एक विशेष अधिकारी की स्थापना का प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 351: यह केंद्र सरकार को हिंदी भाषा के विकास हेतु निर्देश जारी करने की शक्ति प्रदान करता है।
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